बेतला नेशनल पार्क के रूप में प्रसिद्ध पीटीआर (पलामू टाइगर रिजर्व) झारखंड के पलामू प्रमंडल के लातेहार जिले के पश्चिमी भाग में स्थित है। यह जंगल दक्षिण में नेतरहाट वन, उत्तर में औरंगा नदी, पूर्व में लातेहार वन प्रभाग और पश्चिम में गढ़वा वन प्रभाग और छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले से घिरा हुआ है। बेतला राष्ट्रीय उद्यान का वन क्षेत्र 1129.93 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें से 414.08 वर्ग किलोमीटर को कोर एरिया (महत्वपूर्ण बाघ निवास स्थान) के रूप में चिह्नित किया गया है।
वर्तमान में एक ही बाघ, 200 से अधिक हाथी
पीटीआर का गठन वर्ष 1974 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत किया गया था। यह 'प्रोजेक्ट टाइगर' की शुरुआत में देश में बनाए गए पहले नौ बाघ अभयारण्यों में से एक है। हालांकि उससे काफी पहले 1932 की शुरुआत में पलामू के तत्कालीन डीएफओ जेडब्ल्यू निकोलसन की देखरेख में यहां पगमार्क गणना के माध्यम से बाघों की गणना की गई थी।भारत बाघ-गणना-2022 के अनुसार यहां पर वर्तमान में एक बाघ है। हालांकि पहले यहां बड़ी संख्या में बाघ थे। अभी पीटीआर में 200 से अधिक हाथी हैं। इसके अलावा भालू, तेंदुआ, जंगली भैंसा, हिरण, नीलगाय जंगल में भरे पड़े हैं। पर्यटकों के लिए नेशनल पार्क तीन महीने-जुलाई, अगस्त और सितंबर में बंद रहते हैं। मानसून का यह काल वन्यजीवों के प्रजनन और संवर्द्धन का होता है। पीटीआर के निदेशक कुमार आशुतोष कहते हैं, एक बार जो यहां आएगा उसका बार-बार आने को मन करेगा।
एस्ट्रो फोटोग्राफी के लिए हिमालय जैसा वातावरण
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर फोटोग्राफी के लिए 100 से ज्यादा पुरस्कार जीत चुके धनबाद के मुकेश कुमार श्रीवास्तव का दावा है कि पीटीआर भारत का डार्केस्ट साइट है। यहां पर हवा में गैस और डस्ट नहीं है। इस कारण वह पीटीआर को एस्ट्रो फोटोग्राफी के लिए हिमालय जैसे चुनिंदा स्थानों में से एक मानते हैं। पीटीआर में मनोमार से नेतरहाट तक डार्क जोन है।
एस्ट्रो फोटोग्राफी की बेहतर परिस्थिति का प्रमाण देता आसमान का साफ नजारा। फोटो- जागरणरात के अंधेरे में की जाने वाली एस्ट्रो फोटोग्राफी डार्क जोन में की जाती है। इसके तहत खगोलीय तस्वीरें खींचकर तारामंडल और आकाशगंगा आदि को कैमरे में कैद किया जाता है। यह फोटोग्राफी उस स्थान पर की जाती है जहां रोशनी और प्रदूषण बिल्कुल न हो। आकाश में तारे देखने के लिए चारों तरफ साफ अंधेरा होना चाहिए।
एस्ट्रो फोटोग्राफी मुख्यत: दो तरह की होती है। इनमें पहला-मूवमेंट आफ स्टार है, जो मुख्य तौर पर अमावस्या से एक सप्ताह पहले और एक सप्ताह बाद तक की जाती है। दूसरा मिल्की वे फोटोग्राफी (आकाश गंगा के लिए) है। इस फोटोग्राफी के लिए अप्रैल से सितंबर तक का महीना उपयुक्त माना जाता है।
जब सारा जंगल हो उठता लाल
पीटीआर में लगभग 970 प्रकार के पेड़-पौधे हैं, जिनमें 139 तरह की जड़ी-बूटियां भी शामिल हैं । पलामू के प्रमुख वनस्पतियों में साल, पलाश, महुआ, आम, आंवला और बांस शामिल हैं। पीटीआर के जंगल बांस से भरे पड़े हैं। झारखंड का राजकीय फूल पलाश यहां बहुतायत मे पाया जाता है। गर्मियों में बड़े आकार के पलाश के लाल फूलों से सारा जंगल लाल हो उठता है।
बेतला नेशनल पार्क के मुख्य द्वार पर हाथी की सवारी करता पर्यटक। फोटो- जागरणपीटीआर के अंतर्गत जंगलों में वनस्पतियों के साथ-साथ जीवों को भी पिछले 40 वर्षों में संरक्षित और संरक्षित किया गया है। इनमें बाघ, हाथी, तेंदुआ, ग्रे वुल्फ, गौर, स्लाथ, भालू, चार सींग वाला मृग, भारतीय रैटल, भारतीय ऊदबिलाव और भारतीय पैंगोलिन प्रमुख हैं। यहां पर स्तनधारियों की 47 प्रजातियों और पक्षियों की 174 प्रजातियों की पहचान की गई है।
पलामू किला भी है खास
जनजातीय समुदाय से आने वाले राजा मेदिनी राय को झारखंड का गौरव कहा जाता है। पलामू के राजा मेदिनी राय का साम्राज्य दक्षिण गया, हजारीबाग और सरगुजा तक फ़ैला हुआ था। चेरो वंश से संबंध रखने वाले राजाओं में मेदिनी राय का इतिहास सबसे महत्वपूर्ण हैं। इनका शासनकाल सन 1658 से 1674 तक ( 16 वर्षों तक) रहा। मेदिनी राय वीर योद्धा थे। मेदिनी राय ने पलामू में एक दुर्ग का निर्माण करवाया था। पलामू किला नाम से प्रसिद्ध यह दुर्ग आज भी बेतला में मौजूद है।
पलामू टाइगर रिजर्व से होकर बहती कोयल नदी पर सूर्यास्त का नजारा। फोटो- जागरण
नेतरहाट नाम ही काफी है
पीटीआर रेंज में ही नेतरहाट है। यह पहाड़ियों में स्थित एक पर्यटक स्थल है। इसे "छोटानागपुर की रानी" भी कहा जाता है। यह एक पहाड़ी पर्यटन-स्थल है। प्रकृति ने इसे बहुत ही खूबसूरती से संवारा है। नेतरहाट सनराइज और सनसेट प्वाइंट का नजारा देखते ही बनता है। यहां पर लोग सूर्योदय व सूर्यास्त देखने आते हैं। इसके अलावा यहा घाघरी एवं लोअर घाघरी नमक दो छोटे-छोटे जलप्रपात भी हैं, जो प्रसिद्ध स्थल हैं।
यहीं पर प्रसिद्व नेतरहाट विद्यालय भी है। राज्य सरकार द्वारा स्थापित और गुरुकुल की तर्ज पर बने इस स्कूल में अभी भी प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर नामांकन होता है। यहां के अनेक छात्र ने हरेक क्षेत्र में इस विद्यालय का नाम रौशन किया है। इसे आइएएस-आइपीएस की फैक्ट्री भी कहा जाता है। पीटीआर की खूबसूरती में लोध फाल, मिरचइया फाल, सुग्गा बांध और कमलदह झील चार चांद लगाते हैं।
पलामू टाइगर रिजर्व के अंदर मौजूद बाघ। फोटो- जागरण
ऐसे पहुंच सकते हैं पलामू
देश की राजधानी दिल्ली या झारखंड की राजधानी रांची से ट्रेन मार्ग से सीधे पलामू पहुंच सकते हैं। रांची-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस से यात्री डालटनगंज रेलवे स्टेशन पर पहुंच सड़क मार्ग से बेतला नेशनल पार्क जा सकते हैं। स्टेशन से पार्क की दूरी करीब 30 किलोमीटर है। रांची से सड़क मार्ग से यह 170 किमी दूर है। पीटीआर के अंदर रहने के लिए खास व्यवस्था है। जंगल और पार्क के बीच अच्छे-अच्छे होटल और अतिथि गृह बने हुए हैं। इनमें मड हाउस और ट्री हाउस में रहने का आनंद ही कुछ और है। परंपरा और आधुनिकता के अद्भुत संगम का एहसास होता है। इसकी बुकिंग पीटीआर की वेबसाइट पर जाकर की जा सकती है। अगर आप टाइगर रिजर्व से बाहर रहना चाहते हैं तो पलामू जिला मुख्यालय डालटनगंज में थ्री स्टार रेंज तक के होटल मिल जाएंगे।
हनुमानजी की 105 फीट ऊंची प्रतिमा
प्रकृति के बीच रोमांचकारी यात्री के साथ ही पलामू में कई धार्मिक और अध्यात्मिक केंद्र भी हैं। बेतला नेशनल पार्क से करीब 90 किमी की दूरी पर पलामू के बराही गांव में 105 फीट ऊंची हनुमानजी की प्रतिमा है। यह देश-दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची रामभक्त हनुमान की प्रतिमा है। दर्शन को दूर-दूर से लोग आते हैं। 70 किमी की दूरी पर गढ़वा जिले के बंशीधर नगर में श्री बंशीधर मंदिर है। यह मंदिर झारखंड की ऐतिहासिक धरोहर के रुप में है। इस मंदिर में शुद्ध सोने से निर्मित भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा के साथ वाराणसी से मंगाई गई अष्टधातु की मां राधिका की प्रतिमा स्थापित है। भगवान बंशीधर का दर्शन करने दूर-दूर से लोग यहां आते हैं।
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