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BU के इस पायलट एक्सपेरिमेंट से खुश हो जाएंगे झारखंड के किसान! सेब की खेती को लेकर सामने आई ये बड़ी गुड न्यूज

Apple Cultivation in Jharkhand झारखंड के किसानों के लिए बीयू से एक अच्छी खबर सामने आई है। दरअसल बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने सेब की खेती को लेकर पायलट प्रयोग किया है जिसमें यह साबित हुआ है कि झारखंड में भी सेब की खेती की जा सकती है। बीयू के कृषि विज्ञानियों ने बताया कि रांची की मिट्टी और आबोहवा फलों की खेती के अनरूप है।

By kumar Gaurav Edited By: Mohit Tripathi Updated: Tue, 09 Jul 2024 02:31 PM (IST)
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झारखंड की जमीन पर भी की जा सकती है सेब की खेती। (सांकेतिक फोटो)

जागरण संवाददाता, रांची। पोषक तत्वों से भरपूर शीतोष्ण फल सेब की खेती मुख्य रूप से जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में तथा कुछ मात्रा में पूर्वोत्तर राज्यों एवं पंजाब में होती है।

विटामिन सी, फाइबर और पोटेशियम से भरपूर सेब हृदय को स्वस्थ रखने, इम्यूनिटी बढा़ने, पाचन एवं वजन प्रबंधन में मददगार है। कोल्ड एवं इंफेक्शन से लड़ने में सहायक है। यह स्किन एवं बालों को स्वस्थ रखने तथा कोलेस्ट्राल घटाने में मददगार होता है।

आरंभिक प्रयोगों से क्या पता चला? 

बिरसा एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी रांची में हुए आरंभिक प्रयोगों से साबित हुआ है कि यह फल रांची में भी उगाया सकता है। बीएयू के हार्टिकल्चरल बायोडायवर्सिटी पार्क में फरवरी 2022 में सेब के तीन प्रभेदों स्कारलेट स्पर, जेरोमिन तथा अन्ना के पौधे लगाए गए थे।

अन्ना प्रभेद में इस वर्ष अच्छी संख्या में फल लगे हैं। बीएयू के इस पार्क में अन्ना प्रभेद के 18 पौधे लगे हैं। गत वर्ष भी इसमें कुछ फल लगे थे, लेकिन अन्य दो प्रभेदों में कोई भी फलन नहीं हुआ।

पिछले 2 वर्षों की अवधि में अन्ना प्रभेद का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा और इसके पौधों का बेहतर विकास हुआ। सभी पौधे डॉ. वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन, हिमाचल प्रदेश से लाए गए थे।

पिछले दो वर्षों में इन प्रभेदों के कुछ पौधे मर भी गए। सेब के पौधों में पुष्पण फरवरी माह में होता है जबकि इसके फल जुलाई-अगस्त में परिपक्व होते हैं।

बीएयू में हो चुका है पायलट प्रयोग

बायोडाइवर्सिटी पार्क के प्रभारी विज्ञानी डॉ. अब्दुल माजिद अंसारी ने बताया यह पायलट प्रयोग इन सेब प्रभेदों की फलन क्षमता की जांच के लिए चलाया गया। अन्न प्रभेद रांची की मिट्टी एवं आबोहवा में फल देने में समर्थ है।

उन्होंने कहा कि इसकी गुणवत्ता, स्वाद, प्रति हेक्टेयर उपज तथा इस क्षेत्र के लिए पैकेज ऑफ प्रेक्टिसेज के बारे में समुचित प्रयोग एवं अध्ययनों के बाद ही इस क्षेत्र में इसकी व्यावसायिक खेती के लिए कोई अनुशंसा दी जा सकती है।

उन्होंने बताया कि सेब की सफल खेती के लिए ऊपरी भूमि की अच्छी जल निकासी वाली बलुआही दोमट मिट्टी और सिचाई व्यवस्था आवश्यक है।

बीएयू के कुलपति डॉ. एससी दुबे ने वानिकी संकाय के डीन डॉ. एमएस मलिक और अनुसंधान निदेशक डॉ. पीके सिंह के साथ बायोडाइवर्सिटी पार्क का भ्रमण किया।

उन्होंने सुझाव दिया कि झारखंड में सेब की व्यावसायिक खेती की संभावनाओं का पता लगाने के लिए इसके और भी प्रभेदों का आकलन करना तथा इसकी खेती से संबंधित पूरी पैकेज प्रणाली का विकास करना चाहिए।

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