Jharkhand विधानसभा भर्ती घोटाला: नियुक्तियों में हुए फर्जीवाड़े की रिपोर्ट आई सामने, अंकपत्र से की गई छेड़छाड़
झारखंड विधानसभा में हुई नियुक्तियों में बड़े पैमाने पर हुई अनियमितताओं की परतें धीरे-धीरे खुल रही हैं। इसकी जांच को लेकर गठित जस्टिस विक्रमादित्य आयोग की रिपोर्ट में कई ऐसी गड़बड़ियों को चिन्हित करते हुए कार्रवाई की अनुशंसा की गई थी जो चौंकाने वाली हैं। इसमें विभिन्न पदों पर की गई नियुक्ति में स्थापित नियमों का उल्लंघन समेत पक्षपात के भी कई प्रमाण मिले हैं।
By Jagran NewsEdited By: Paras PandeyUpdated: Mon, 30 Oct 2023 04:35 AM (IST)
प्रदीप सिंह, रांची। झारखंड विधानसभा में हुई नियुक्तियों में बड़े पैमाने पर हुई अनियमितताओं की परतें धीरे-धीरे खुल रही हैं। इसकी जांच को लेकर गठित जस्टिस विक्रमादित्य आयोग की रिपोर्ट में कई ऐसी गड़बड़ियों को चिन्हित करते हुए कार्रवाई की अनुशंसा की गई थी, जो चौंकाने वाली हैं।
इसमें विभिन्न पदों पर की गई नियुक्ति में स्थापित नियमों का उल्लंघन समेत पक्षपात के भी कई प्रमाण मिले हैं। आयोग की रिपोर्ट अभी इसके निष्कर्षों और अनुशंसाओं की पड़ताल करने के उद्देश्य से जस्टिस मुखोपाध्याय आयोग को प्रेषित की गई है।
हाल ही में हाईकोर्ट द्वारा जांच आयोग की रिपोर्ट मांगे जाने पर झारखंड सरकार ने कहा था कि उसके पास आयोग की रिपोर्ट ही नहीं है, क्योंकि इस रिपोर्ट की समीक्षा के लिए एक और आयोग (जस्टिस मुखोपाध्याय आयोग) का गठन किया गया है, जिसे पहले आयोग की रिपोर्ट दे दी गई है।
विक्रमादित्य आयोग की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि एक आवेदक की बहाली कांग्रेस के तत्कालीन विधायक नियेल तिर्की (अब स्वर्गीय) की ओर से लेटर पैड पर जारी अनुभव प्रमाणपत्र के आधार पर हुई, जबकि विधायक ऐसे प्रमाणपत्र जारी करने के लिए कोई मान्य अथारिटी नहीं हैं। बहाली में कंप्यूटर अनिवार्य विषय था, लेकिन ज्यादातर सफल अभ्यर्थियों के मूल आवेदन में यह अन्य विषय था। कई में अन्य योग्यता का स्थान ही खाली है।
ज्यादातर के प्राप्तांक (मार्क्स) पर व्हाइटनर का प्रयोग किया गया है, जो यह प्रमाणित करता है कि अभ्यर्थियों को मिले अंकों में भी बड़े पैमाने पर हेराफेरी की गई। एक अभ्यर्थी का अनुभव प्रमाणपत्र तो उस पदाधिकारी ने जारी किया था जो स्वयं साक्षात्कार बोर्ड में थे।
कुल 30 पदों की बहाली में 26 में अनियमितता पाई गई। क्या है मामला?
वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य गठन के बाद वर्ष 2000-2004 तक विधानसभाध्यक्ष रहे इंदर सिंह नामधारी के कार्यकाल में विधानसभा में 150 पदों पर तथा वर्ष 2006-2009 तक स्पीकर रहे आलमगीर आलम के कार्यकाल में 374 पदों पर हुई नियुक्तियों में अनियमितता के आरोप लगे थे।
2013-2014 तक विधानसभाध्यक्ष रहे शशांक शेखर के कार्यकाल में विधानसभा के अधिकारियों-कर्मचारियों के प्रोन्नति देने के मामले में भी गड़बड़ी के आरोप लगे। 2017 में रघुवर दास की सरकार ने मामले की जांच के लिए जस्टिस विक्रमादित्य आयोग का गठन किया। आयोग ने वर्ष 2018 में रिपोर्ट तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मु को सौंपी थी।राज्यपाल ने दोषियों पर कार्रवाई की अनुशंसा के साथ रिपोर्ट स्पीकर को भेजी। 15 वर्ष बाद भी अब तक किसी पर कार्रवाई नहीं हुई है। बाद में हेमंत सरकार ने 2022 में इस जांच रिपोर्ट के निष्कर्षों और विधिक पहलुओं पर अध्ययन के लिए एक अन्य एक सदस्यीय जांच आयोग (जस्टिस मुखोपाध्याय आयोग) का गठन किया, जिसकी रिपोर्ट अभी नहीं आई है।
इस बीच शिवशंकर शर्मा नाम के व्यक्ति ने झारखंड हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर झारखंड विधानसभा में बड़े पैमाने पर गलत तरीके से नियुक्ति का आरोप लगाते हुए सीबीआइ जांच की मांग की।
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