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Diwali में स्वाति नक्षत्र व आयुष्मान योग का शुभ संयोग, इस मुहूर्त में करें लक्ष्मी-गणेश की पूजा; मिलेगा विशेष फल

Diwali 2023 कार्तिक माह की अमावस्या तिथि पर दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। इस बार कार्तिक महीने की अमावस्या तिथि 12 और 13 नवंबर दोनों ही दिन रहेगी। हालांकि दिवाली का त्योहार 12 नवंबर को ही मनाया जाएगा। 12 नवंबर को दोपहर अमावस्या तिथि शुरू हो जाएगी ऐसे में रविवार रात ही लक्ष्मी पूजन के साथ पर्व मनाया जाएगा।

By Murtaja AmirEdited By: Shashank ShekharUpdated: Sat, 11 Nov 2023 04:55 PM (IST)
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Diwali में स्वाति नक्षत्र व आयुष्मान योग का शुभ संयोग
जागरण संवाददाता, मेदिनीनगर(पलामू)। कार्तिक माह की अमावस्या तिथि पर दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। इस बार कार्तिक महीने की अमावस्या तिथि 12 और 13 नवंबर दोनों ही दिन रहेगी।

हालांकि, दिवाली का त्योहार 12 नवंबर को ही मनाया जाएगा। 12 नवंबर को दोपहर अमावस्या तिथि शुरू हो जाएगी ऐसे में रविवार रात ही लक्ष्मी पूजन के साथ पर्व मनाया जाएगा।

पंडित संजय कुमार पाठक ने बताया कि 12 नवंबर (रविवार) को दोपहर 2 बजकर 45 मिनट से अमावस तिथि लगने वाली है, जो कि 13 नवंबर को दोपहर 2:57 बजे तक रहेगी। दीपावली पर्व के लिए महत्वपूर्ण प्रदोष एवं महानिसीथ काल 12 नवंबर को ही मिल रहे हैं।

इस कारण से इस वर्ष दीपावली का पर्व उदय चतुर्दशी तिथि को 12 नवंबर को ही मनाया जाएगा। वहीं, इस बार दीपावली में स्वाति नक्षत्र और आयुष्मान योग का भी शुभ संयोग है।

क्या है दीपावली का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, इस साल 12 नवंबर 2023 को 2 बजकर 45 मिनट पर दीपावाली की शुरुआत होगी और 13 नवंबर को 2 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगी। दिवाली पर प्रदोष काल में लक्ष्मी-गणेश की पूजा की जाती है। इसलिए, इस बार 12 नवंबर को दिवाली मनाई जाएगी। इस दिन शाम को 5 बजकर 5 मिनट से 7 बजकर 3 मिनट तक लक्ष्मी-गणेश पूजन का शुभ मुहूर्त रहेगा।

जानें क्या है काली पूजा का मुहूर्त

निशिता काल में काली पूजा का विधान है। पंचांग के अनुसार, 12 नवंबर 2023 को रात्रि 11 बजकर 39 मिनट से लेकर 13 नवंबर को सुबह 12 बजकर 32 मिनट तक काली पूजा का शुभ मुहूर्त बन रहा है।

जानें क्यों है काली पूजा का महत्व

धार्मिक मान्यता है कि काली माता की पूजा-उपासना करने से साधक के सभी दुखों और कष्टों का निवारण होता है। जीवन में आ रहीं सभी बाधाएं दूर होती हैं और घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। अमावस्या की रात्रि में काली माता के साथ भैरवजी की भी पूजा की जाती है। कहा जाता है कि ऐसा करने से जातक के सभी कार्य सफल होते हैं और ग्रह-दोषों से छुटकारा मिलता है।

ऐसे करें लक्ष्मी-गणेश पूजन

सर्वप्रथम पूजा का संकल्प लें। श्रीगणेश, लक्ष्मी, सरस्वती जी के साथ कुबेर का पूजन करें। 'ऊं श्रीं श्रीं हूं नम' का 11 बार या एक माला का जाप करें। एकाक्षी नारियल या 11 कमलगट्टे पूजा स्थल पर रखें। श्रीयंत्र की पूजा करें और उत्तर दिशा में प्रतिष्ठापित करें, देवी सूक्तम का पाठ करें।

मंत्र पढ़ते हुए आचमन करें और हाथ धोएं- 'ॐ केशवाय नम, ॐ माधवाय नम, ॐ नारायणाय नम, ऊँ ऋषिकेशाय नम (श्रीपीठ पर स्थित और देवताओं से पूजि होने वाली हे महामाये, तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करने वाली हे महालक्ष्मी, तुम्हें नमस्कार है।) ॐ गं गणपतये नम बोलते हुए गणेश जी को पानी और पंचामृत से नहलाएं। पूजन सामग्री चढ़ाएं। नैवेद्य लगाएं। धूप-दीप दिखाएं और दक्षिणा चढ़ाएं।

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