खतरनाक है बाबा परंपरा, ऐसे फंसते हैं लोग; न आएं झांसे में
ढोंगी व पाखंडी बाबाओं का इतिहास पुराना है। रामायण में सीताहरण को रावण द्वारा साधु का वेश धरने का प्रसंग है।
आरपीएन मिश्र, रांची। बाबा परंपरा खतरनाक है। वैज्ञानिक सोच के अभाव में ही राम रहीम जैसे ढोंगी बाबाओं को समाज में प्रश्रय मिलता है। इस स्थिति को बदलने की जरूरत है। यह बातें वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री बलबीर ने कही। वह सोमवार को जागरण विमर्श कार्यक्रम के तहत दैनिक जागरण के संपादकीय कर्मियों से मुखातिब थे।
निर्धारित विषय ‘ढोंगी बाबाओं से कैसे बचे समाज’ पर बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा तो पौराणिक काल के पात्रों से लेकर चैनलों पर दुकान चमका रहे आधुनिक बाबाओं और सत्ता के गलियारों में घूमने वाले प्रभावशाली बाबाओं तक पर चर्चा हुई। दत्त ने ऐसे बाबाओं से समाज को बचने की जरूरत पर जोर दिया। दत्त ने कहा कि हमारा देश ऋषि-मुनियों की परंपरा वाला देश है। यहां त्याग की बड़ी महिमा है और त्यागी व्यक्ति को समाज श्रद्धा की दृष्टि से देखता है।
ढोंगी बाबू लोगों की इसी मनोवृत्ति का फायदा उठाते हैं फिरवो अंदर से कितने भी असाधु हों बाहरी आवरण साधु वाला बनाकर ऐसा आडंबर तैयार करते हैं कि सामान्य समझ के लोग उनके झांसे में आ जाते हैं। ढोंगी और पाखंडी बाबाओं का इतिहास पुराना है। रामायण में भी सीताहरण के लिए रावण द्वारा साधु का वेश धरकर आने का प्रसंग मिलता है। इकबाल के एक शेर पर आकर बात खत्म हुई कि - खुदा के बंदे तो हैं हजारों, फिरते हैं वन में मारे-मारे।
चमत्कार में फंसते हैं लोग
दत्त ने कहा कि ज्यादातर कम पढ़े-लिखे व अंधविश्वासी लोग ही इस तरह के बाबाओं के चक्कर में पड़ते हैं। बिना किसी ठोस आधार व तर्क के ही वह बाबाओं की बात मान लेते हैं। समस्याओं में घिरे लोग चमत्कार की उम्मीद में बाबाओं की शरण में जाते हैं और समस्याओं से निजात पाने की बजाय मुश्किलों के एक नए भंवर में फंस जाते हैं।
राजनेता भी जिम्मेदार
दत्त के अनुसार ढोंगी बाबाओं को अपना मायाजाल फैलाने में नेताओं, अधिकारियों व प्रभावशाली लोगों का संरक्षण भी मिलता है। राम रहीम का ही इतना विशाल साम्राज्य वहां के शासन-प्रशासन व खुफिया की जानकारी में न हो ऐसा नहीं माना जा सकता।
विकृति के हैं कई कारण
दत्त के अनुसार हमारे यहां धर्म के धन से जुड़ाव के कारण काफी विकृति आई है। मंदिरों में सोना-चांदी, पैसे व मुकुट दान कर लोग इसे पुण्य का काम मानते हैं।
कोई भी बन जाता है साधु
दत्त के अनुसार इस मामले का सबसे दुखद पक्ष यह है कि अपने यहां केवल चोला धारण कर व तिलक लगाकर कोई भी बाबा बन जाता है। इसके लिए न कई डिग्री चाहिए ना योग्यता। वैसे यह साधु का विकृत रूप है। आदर्श रूप में संतों की महिमा बड़ी है, लेकिन ऐसे लोग आजकल दुर्लभ हो गए हैं।
कई रूप में हैं ढोंगी बाबा
दत्त का मानना है कि ढोंगी बाबा केवल मठों-मदिरों-आश्रमों तक सीमित नहीं हैं। आज समाज में यह विविध रूपों में यह व्याप्त हैं। राजनेता झूठे वादे कर ख्याली सब्जबाग दिखाकर भोले-भाले लोगों को बरगलाते हैं। यह भी उसी कड़ी के लोगों सा चरित्र है।
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