Bangladesh Crisis: 'मौत किसे कहते हैं, हुआ महसूस', अब कभी नहीं जाएंगे बांग्लादेश, दहशत में रांची लौटे लोग
बांग्लादेश में हो रही हिंसा के बीच कई भारतीय अब सुरक्षित घर वापस लौटने लगे हैं। घर लौटने के बाद उनके चेहरे पर साफ दहशत देखी जा सकती है। लोग आपबीती सुनाकर रो जा रहे हैं। इस बीच बांग्लादेश से रांची लौटे बूटी स्थित कृष्णपुरी निवासी आशीष कुमार पाल ने आपबीती सुनाई है। उन्होंने कहा कि पहली बार मौत का एहसास हुआ।
मनोरंजन, रांची। Ranchi News: भारी हिंसा और उपद्रव की स्थिति के बीच बांग्लादेश से रांची लौटे बूटी स्थित कृष्णपुरी निवासी आशीष कुमार पाल वहां की स्थिति को याद कर अब भी सिहर उठते हैं। वह कहते हैं कि उपद्रवी निरंकुश हो चुके हैं। वह किसी पर भी हमला कर दे रहे हैं और फिलहाल अराजक हो चुके लोग वहां नियंत्रण से बाहर हैं। उनके मनमाने व्यवहार और लगातार हो रही हिंसा से हमारे जैसे लाखों लोग वहां भय के वातावरण में जी रहे हैं। पिछले एक साल से वहां काम करने के दौरान हम भी इतना कभी नहीं डरे, जितना अब सहमे हुए हैं।
पहले कभी नहीं लगा था कि ऐसा भी हो सकता है। भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि हमलोग किसी तरह जान बचाकर सही-सलामत अपने घर लौट आए। भारत की सीमा में प्रवेश करने के साथ ही धरती मां को नमन किया और भगवान को धन्यवाद दिया।
विद्रोहियों ने बस को घेरकर कर दिया हमला
आशीष ने बताया कि वह एक साल से बांग्लादेश में बीएसआरएम नाम की एक स्टील कंपनी के तकनीकी विभाग में काम कर रहे थे। विद्रोह की स्थिति के बीच ही वह कोलकाता से होकर 18 जुलाई को बांग्लादेश पहुंचे। रात को दो बजे ढ़ाका पहुंचने के बाद बस में सवार हुए।उनके साथ बस में झारखंड के दो और बिहार के तीन लोगों समेत उत्तर प्रदेश और ओडिशा के दर्जनों लोग थे। ढाका के जतराबाड़ी में आधी रात के समय अचानक बड़ी संख्या में विद्रोहियों ने उनकी बस पर हमला कर दिया। इस बीच पुलिस वहां पुलिस पहुंची तो हमलोगों की जान में जान आई।इसके बाद हमलोग ढाका के आरामबाग में स्थित बीएसआरएम स्टील कंपनी के गेस्ट हाउस में पहुंचे और लगातार हालात बिगड़ने के कारण वहां से वापस लौट आए।बड़ी संख्या में उपद्रवी जमा थे। सभी ने बस को घेर लिया था और ईंट-पत्थर चला रहे थे। बस में सवार सभी लोगों को एक बार ऐसा लगा कि अब जान नहीं बचेगी। हमारी आंखों के सामने अपने देश, अपने परिवार का छवि घूमने लगी।
मौत किसे कहते हैं, यह पहली बार महसूस हो रहा था
मौत किसे कहते हैं, यह पहली बार महसूस हो रहा था। सभी लोग बस की खिड़कियां और दरवाजों को बंद कर ऊपरवाले को याद करते रहे। उपद्रवी तोड़फोड़ करते रहे। यह स्थिति करीब 45 मिनट तक रही। सभी को यही लग रहा था कि उपद्रवी कहीं बस को आग न लगा दें, सभी की जान चली जाएगी। 45 मिनट के बाद उस समय कुछ उम्मीद जगी जब हमें पुलिस की गाड़ी का सायरन सुनाई दिया। जान में जान आई क्योंकि बांग्लादेश की पुलिस पहुंच चुकी थी और उपद्रवियों को हटाने की कोशिश कर रही थी। जिस बस से हमलोग जा रहे थे उसका आरामबाग नाम की जगह पर गेस्ट हाउस था।
जब उपद्रवियों की भीड़ छंटी तो बस चालक ने किसी तरह वहां से बस निकाली और हमें लेकर आरामबाग पहुंच गया। वहां से हमलोगों ने किसी तरह भारतीय दूतावास से संपर्क किया। एंबेसी की ओर से व्यवस्था की गई और अगले दिन बांग्लादेश की सेना की सुरक्षा में हमें बस से भारत की सीमा में पहुंचा दिया गया।
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