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पूजा-पाठ से करें New Year के पहले दिन की शुरुआत, ये रही बेस्ट तीर्थ स्थल की लिस्ट

कुछ लोग नए साल पर घूमने के लिए बाहर जाते हैं। वहीं कई ऐसे भी होते हैं जो भगवान का नाम लेकर नए साल की शुरुआत करना चाहते हैं। झारखंड में भी ऐसे बहुत से पवित्र स्थल हैं जहां आप जा सकते हैं। इसके साथ ही झारखंड की सीमा से सटे भी कुछ ऐसे पवित्र तीर्थ स्थल हैं जहां लोग जाते हैं।

By sanjay krishna Edited By: Aysha SheikhUpdated: Sat, 30 Dec 2023 12:17 PM (IST)
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पूजा-पाठ से करें New Year के पहले दिन की शुरुआत, ये रही बेस्ट तीर्थ स्थल की लिस्ट
जागरण संवाददाता, रांची। नया साल सामने है। कुछ ही दिन शेष है। कुछ लोग नए साल पर घूमने के लिए बाहर निकल गए हैं। कुछ तैयारी कर रहे हैं। कुछ साल का पहला दिन भगवान के चरणों में बिताना चाहते हैं। नए साल में नए संकल्प के साथ।

झारखंड में भी ऐसे बहुत से पवित्र स्थल हैं, जहां लोग नए साल में जाना चाहेंगे। इसके साथ ही झारखंड की सीमा से सटे भी कुछ ऐसे पवित्र तीर्थ स्थल हैं, जहां लोग जाते हैं। चाहे बनारस की बात हो या फिर पं बंगाल के तारापीठ की तो आइए, कुछ ऐसे ही स्थलों की ओर जाते हैं। नए साल में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।

बाबा भोले की नगरी काशी

  • रांची से काशी 450 किमी
  • ट्रेन, बस या निजी साधन से जा सकते हैं
काशी बाबा विश्वनाथ की नगरी है। यहां नया और पुराना दो मंदिर है। नया बीएचयू परिसर में बना है। पुराना शहर के बीच में है। इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार हो गया है। अब दिव्य-भव्य बन गया है। यहां अब देखने वालों की भीड़ उमड़ रही है। नए साल में आप यहां जा सकते हैं।

काशी में और भी बहुत कुछ है। यहां संध्या गंगा आरती देख सकते हैं। संकट मोचन मंदिर में हनुमान का दर्शन कर सकते हैं। यहां कई प्राचीन मंदिर हैं। मां गायत्री का भी मंदिर है। मानस मंदिर भी है। इसके साथ यहां सारनाथ में बौद्ध स्थलों को भी देख सकते हैं।

शक्ति का केंद्र तारापीठ

  • रांची से तारापीठ की दूरी 340 किमी
  • ट्रेन, बस या निजी साधन
तारा पीठ पं बंगाल में शक्तिपीठ है। यह झारखंड से सटा हुआ है। यह बंगाल की पहचान है। बंगाल मां का उपासक है। घर-घर शक्ति की पूजा की जाती है। 51 शक्तिपीठों में इसकी गणना होती हे। सिद्ध तांत्रिक वामाखेपा का जन्म यहीं हुआ था, वामाखेपा आटला गांव के रहने वाले थे, जो तारापीठ मंदिर से दो किमी की दूरी है।

लोगो का मानना है कि है वामाखेपा को मां तारा के मंदिर के समीप महाश्मशान में तारा देवी के दर्शन हुए थे। यहीं पर वामाखेपा को सिद्धि प्राप्त हुई थी। मां तारा, काली माता का एक रूप है। मां काली ही माता तारा है। वहीं, झारखंड के मलूटी में मां मौलिक्षा का मंदिर है। मौलिक्षा देवी को मां तारा की बड़ी बहन कहा जाता है। मलूटी को गुप्तकाशी भी कहा जाता है। तो, मौलिक्षा और मां तारा दोनों का दर्शन कर सकते हैं।

बाबा की नगरी

  • रांची से देवघर की दूरी 250 किमी
  • ट्रेन, बस या निजी साधन से
बाबा बैजनाथ की नगरी है देवघर। देवघर यानी देवताओं का घर। 12 ज्योतिर्लिंगों में एक हैं। रावण ने स्थापित किया था। यहां बाबा का मंदिर तो है ही। यहां बाजार में घंटाघर के पास बैजू बाबा का भी मंदिर है। यहां देखने के लिए बहुत कुछ है। त्रिकुट पर्वत है। देवघर से 16 किलोमीटर दूर दुमका रोड पर स्थित है। इस पहाड़ पर बहुत सारी गुफाएं और झरने हैं।

देवघर के बाहरी हिस्से में नौलखा मंदिर अपने वास्तुशिल्प की खूबसूरती के लिए जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण बालानंद ब्रह्मचारी के एक अनुयायी ने किया था। नंदन पर्वत की महत्ता यहां बने मंदिरों के झुंड के कारण है जो विभिन्न देवों को समर्पित हैं। पहाड़ की चोटी पर कुंड भी है जहां लोग पिकनिक मनाने आते हैं। यहां ठाकुर अनुकूलचंद्र का सत्संग आश्रम भी है। देवघर से 42 किलोमीटर दूर जरमुंडी गांव के पास बासुकीनाथ मंदिर भी है।

टांगीनाथ धाम

  • रांची से दूरी 190 किमी
  • निजी साधन से
रांची से यहां निजी साधन से ही जाया जा सकता है। गुमला जिले में बाबा टांगीनाथ प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यहां हजारों साल पुराना त्रिशूल है। लोहे के इस त्रिशूल में आज तक जंग नहीं लगा है। लोग इसे परशुराम का फरसा भी कहते हैं। छोटी सी पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है। यहां सैकड़ों खंडित प्रतिमाएं व शिवलिंग देख सकते हैं। इसके बाद आस पास भी पिकनिक का आनंद उठाते हैं।

धाम स्थल से कुछ दूरी पर स्थित बासा नदी के किनारे हजारों की संख्या में लोग पहली जनवरी को पहुंचते हैं। गुमला जिला मुख्यालय से 75 किलोमीटर दूर है। आवागमन के लिए कुछ बस सेवाएं भी संचालित हैं। बाबा टांगीनाथ धाम के इर्द गिर्द घूमने योग्य कई स्थल हैं।

डुमरी प्रखंड में ही स्थित सधनी वाटरफाल है। टांगीनाथ धाम से महज 26 किलोमीटर दूर है। सूर्योदय व सूर्यास्त का मनोरम दृश्य देखने के लिए नेतरहाट जा सकते हैं। यहां से 60 किलोमीटर दूर है। वहीं, लोध जलप्रपात भी 50 किमी की दूरी पर है। नए साल पर भरपूर आनंद यहां ले सकते हैं।

मां छिन्नमस्तिके

  • रांची से दूरी 80 किमी
  • निजी साधन या बस से
मां छिन्नमस्तिके भी शक्तिपीठ है। यह रजरप्पा में है। रजरप्पा संताली भाषा का शब्द है। भैरवी नदी और दामोदर नद के संगम पर मंदिर है। रामगढ़ से 28 किमी दूर स्थित है। झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल से लोग यहां आते हैं। दीवाली के समय यहां देश भर के तांत्रिकों का जमावड़ा भी लगता है। यहां, मां काली मंदिर के अलावा, विभिन्न देवताओं और देवी-देवताओं जैसे सूर्य भगवान और भगवान शिवा के दस मंदिर मौजूद हैं।

आवास के लिए धर्मशाला, आराम घर और गेस्ट हाउस रजरप्पा में आसानी से उपलब्ध हैं। यह स्थान सड़क से रामगढ़ से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहां सालों भर भीड़ रहती है, लेकिन नए साल और नवरात्र पर श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ जाती है। यहां प्राकृतिक नजारा भी देखने को मिलता है। वर्षा के समय संगम का नजारा अलग ही होता है। रांची शहर से यह निकट है।

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