हेमंत सोरेन को बड़ा झटका! खुद का विधायक संथाल परगना में मचाएगा तूफान; बाबूलाल मरांडी के साथ साझा किया मंच
Jharkhand Politics अपनी ही सरकार की आलोचना करने वाले सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के बोरियो के विधायक लोबिन हेम्ब्रम अब खुलकर भाजपा के साथ आ गए हैं। साहिबगंज में सोहराय मिलन सामरोह में वे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के साथ हुए। समारोह में भाजपा के कई नेता मौजूद थे। वे हेमंत सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलने का कोई मौका नहीं चूकते।
राज्य ब्यूरो, रांची। अपनी ही सरकार की आलोचना करने वाले सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के बोरियो के विधायक लोबिन हेम्ब्रम अब खुलकर भाजपा के साथ आ गए हैं। साहिबगंज में सोहराय मिलन सामरोह में वे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के साथ हुए।
समारोह में भाजपा के कई नेता मौजूद थे, लोबिन की नाराजगी छिपी नहीं है। वे हेमंत सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलने का कोई मौका नहीं चूकते। विधानसभा के भीतर भी वे सरकार के खिलाफ खुलकर नाराजगी का इजहार करते हैं।
BJP को JMM का गढ़ भेदने के लिए मजबूत नेता की थी तलाश
हालांकि, पूर्व में कभी वे भाजपा के साथ खुलकर सामने नहीं आए, लेकिन अब उन्होंने अपना पैतरा बदल लिया है। वे झामुमो के लिए महत्वपूर्ण संथाल परगना में सक्रिय हैं। उनकी तैयारी आगामी चुनावों में झारखंड मुक्ति मोर्चा को उसके अभेद्य गढ़ में झटका देने की है।
बाबूलाल मरांडी के संथाल दौरे के क्रम में उन्होंने इस रणनीति पर काम आरंभ किया है। इसका असर आने वाले दिनों में दिखेगा। भाजपा को भी इस क्षेत्र में मोर्चा का गढ़ भेदने के लिए मजबूत नेता की तलाश थी।
यह भी उल्लेखनीय है कि लगातार सरकार की नीतियों के साथ-साथ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ बोलने वाले लोबिन हेम्ब्रम के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।
हालांकि, संगठन के भीतर इसे लेकर काफी दबाव है। लोबिन हेम्ब्रम को भी इसका अहसास है। उनकी भरपाई के लिए भी मोर्चा ने हेमलाल मुर्मू की घर वापसी कराई है।
झामुमो में हो गए अलग-थलग
झामुमो लोबिन हेम्ब्रम के विरुद्ध कार्रवाई कर चर्चित नहीं करना चाहता। यही वजह है कि उनके विरोधी रवैये के बावजूद कोई एक्शन नहीं लिया गया। अगले चुनाव में उनका टिकट कटना भी तय है। झामुमो नेताओं के अनुसार, इसी वजह से वे सुरक्षित रास्ते की तलाश कर रहे हैं।
दरअसल, लोबिन हेम्ब्रम झारखंड मुक्ति मोर्चा में ही अलग-थलग पड़ गए हैं। आरंभ में उन्होंने बड़े पैमाने पर समर्थन का दावा किया था, लेकिन कोई साथ नहीं मिला। विधायकों के बीच भी वे अलग-थलग पड़ गए हैं।
संगठन में भी इसका कोई असर नहीं पड़ा। हालांकि, भाजपा के साथ उसकी जुगलबंदी का साइड इफेक्ट भी हो सकता है। स्थानीय राजनीति के कारण साहिबगंज में कुछ नेताओं की नाराजगी सामने आ सकती है।
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