जैव विविधता संरक्षण की कवायद... जीव-जंतु व वनस्पतियों की इंट्री... झारखंड में बने तीन हजार रजिस्टर
Biodiversity Conservation Day झारखंड में चार हजार से ज्यादा जैव विविधता प्रबंधन कमेटी का गठन किया गया है। तीन हजार रजिस्टर बनाए गए हैं। पंचायत स्तर पर बने इन रजिस्टर में जीव-जंतु व वनस्पति की इंट्री होती है। ग्रामीणों की मदद से इस कार्य को अंजाम दिया जा रहा है।
By M EkhlaqueEdited By: Updated: Sat, 21 May 2022 10:59 PM (IST)
रांची, राज्य ब्यूरो। जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए राज्य में करीब चार हजार से ज्यादा जैव विविधता प्रबंधन कमेटी का गठन स्थानीय स्तर पर किया है। इसके लिए अभी तक तीन हजार से ज्यादा जैव विविधता रजिस्टर बनाया गया है। इसके तहत गांव वालों की मदद से उस क्षेत्र में पाए जाने वाले जीव-जंतु और वनस्पति की प्रजातियों को अंकित किया जाता है। दिसंबर 2021 में जैव विविधता बोर्ड ने सभी दस्तावेजों की छपाई कर स्थानीय स्तर पर भेजा है। ताकि इनके संरक्षण का काम किया जा सके। कुछ माह बाद फिर से ग्रामीणों के साथ बैठक होगी और उस दौरान मिलने वाले अन्य प्रजाति के वनस्पति या जीव-जंतु का नाम फिर से रजिस्टर पर अंकित किया जाएगा।
पंचायत, ब्लाक और जिलास्तर पर बना है रजिस्टरबोर्ड के चेयरमैन आशीष रावत ने बताया कि जैव विविधता एक्ट-2002 के तहत राज्य में जैव विविधता बोर्ड का गठन किया गया। इसके बाद राज्य में पाए जाने वाले जीव-जंतु और वनस्पतियों के संरक्षण के लिए जैव विविधता प्रबंधन का गठन किया। इसी के तहत पंचायत, ब्लाक और जिला स्तर पर जैव विविधता रजिस्टर बनाया गया है। वन विभाग का दावा है कि राज्य में वन क्षेत्र बढ़ रहा है, जिससे जीव-जंतुओं के संरक्षण में सहायता मिल रही है।
इन जिलों में पाए जाते हैं ये प्राणी बता दें कि राज्य में सारंडा वन क्षेत्र में साल के जंगल वाला इलाका माना जाता है। इसके अलावा पलामू, रांची, खूंटी सहित अन्य जिलों में भी जंगल है। इन जंगलों में हाथी, बंदर, लंगूर जैसे अन्य वन्य जीव पाए जाते हैं। इन जंगलों में सरीसृप व कीटों की भी कई प्रजातियां भी हैं। कुछ दिनों पहले वन विभाग कहा था कि पलामू में बाघ देखे गए हैं। पलामू टाइगर रिजर्व में उनके संरक्षण और संवर्धन को बढ़ावा देने के लिए झारखंड हाई कोर्ट ने भी कई निर्देश दिया है। दलमा के जंगलों में हाथी पाए जाते हैं।
मसालों, फल-फूल और सब्जी पर होगा रिसर्च बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा अब्दुल मजीद अंसारी ने बताया कि राज्य में कई प्रकार के मसाले, फल-फूल और सब्जियां पाई जाती हैं। दिसंबर 2021 से पूरे राज्य से इनका संग्रह किया जा रहा है। इसके बाद इनका वैज्ञानिक जांच शुरू किया जाएगा, ताकि इसके व्यवसायिक महत्व को सामने लाया जा सके। उन्होंने बताया कि राज्य में आदिवासी कई ऐसे फल-फूल, सब्जी या जड़ी-बूटी का इस्तेमाल करते हैं, जिनका अभी तक वैज्ञानिक परीक्षण नहीं हुआ है। इसलिए विश्वविद्यालय की ओर से इस पर रिसर्च किया जा रहा है।
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