बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा: सुधार के साथ-साथ रोजगार
बंदी सृजन में जुटे हैं, जिसमें जेल प्रशासन का भी सहयोग मिल रहा है। बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा में बंद ऐसे कैदियों के हुनर का लोहा पूरा समाज मान रहा है।
दिलीप कुमार, रांची। बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा, एक ऐसा सुधारगृह जहां बंदी न सिर्फ अपराधों की सजा काटते हैं बल्कि जब यहां से निकलते हैं तो यहां सीखा कोई न कोई हुनर उन्हें अपराध के दलदल में फिर से जाने से रोकने में मदद करता है। बंदी सृजन में जुटे हैं, जिसमें जेल प्रशासन का भी सहयोग मिल रहा है। बंदी एक तरफ जहां साबुन, कंबल व फाइल बना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ऊंची शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक शिक्षा भी ग्रहण कर रहे हैं। बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा में बंद ऐसे कैदियों के हुनर का लोहा पूरा समाज मान रहा है।
बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा में तैयार माल जेल में पास बने उनके आउटलेट पर पहुंचते ही बिक जाते हैं। ऊलेन शॉल से लेकर कंबल तक, फिनाइल से लेकर साबुन तक की मांग हजारों में है, जिनके उत्पादन के साथ ही सप्लाई भी हो जाती है। इस कारा से निकले एक पूर्व कैदी ने कहा, यहां आने से पहले कोई रोजगार नहीं था तो पैसे के लिए जुर्म कर डाला। यहां आकर न सिर्फ उसकी सजा काटी बल्कि वहां जो हुनर सीखा उसी से आज अपना और अपने परिवार का पेट चला रहा हूं।
कौन-कौन से हैं उद्योग
1. कपड़ा उद्योग : सरकार बंदियों को धागा उपलब्ध कराती है। कैदी उससे कपड़ा बुनते हैं। यह कपड़ा बाहरी उद्योग से बेहतर व उच्च गुणवत्ता का होता है। फिलहाल इस कपड़े की सप्लाई झारखंड की सभी जेलों में है, जहां कैदियों के वस्त्र बनते हैं। यहां कपड़े की सिलाई भी होती है।
2. कंबल उद्योग : बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा में तीन तरह के कंबल बनते हैं। यहां निर्मित कंबल की काफी मांग है। पहला लाल रंग का कंबल है, जो रिम्स व रिनपास के अलावा प्रदेश के सभी जेलों के अस्पताल में सप्लाई की जाती है। दूसरा काला कंबल है, जो सेंट्रल जेल के अलावा प्रदेश की सभी जेलों में उपयोग में लाया जाता है। तीसरा ऊनी कंबल है, जो सरकारी योजना के अनुसार या ऑर्डर पर बनाए जाते हैं।
3. तसर सिल्क : कैदियों को केवल ककून उपलब्ध कराया जाता है। कैदी इससे धागा तैयार करते हैं और उस धागे से कपड़ा भी बनाते हैं।
4. फिनाइल उद्योग : सेंट्रल जेल में दो तरह के फिनाइल तैयार किए जाते हैं। इसमें उजला व काला फिनाइल शामिल है। प्रत्येक माह 5000 से 7000 लीटर फिनाइल तैयार किया जा रहा है, जिसकी सप्लाई रांची के अलावा प्रदेश की सभी जेलों में होती है।
5. नहाने का साबुन : नहाने का साबुन 'निर्मल ब्रांड' के नाम से तैयार किया जाता है, जो एक महीने में 18000 से 20000 तक तैयार किया जाता है। यह साबुन भी प्रदेश की सभी जेलों में सप्लाई की जाती है। इसके साथ ही कपड़ा धोने के लिए 'रक्षक' ब्रांड का साबुन तैयार किया जा रहा है। यह साबुन प्रति माह 35000 से 40000 तक तैयार किए जा रहे हैं।
60 से 65 हजार रुपये कमा चुका है एक बंदी
उद्योगों में काम केवल सजायाफ्ता बंदियों से लिया जाता है। बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा होटवार में वर्तमान में 1600 सजायाफ्ता बंदी है, जिसके बूते उद्योग चलाए जा रहे हैं। मेहनताना प्रत्येक वर्किंग डे के हिसाब से दिया जाता है। प्रत्येक वर्किंग डे पर औसतन 121 रुपये प्रति बंदी मिलता है। बंदियों के पैसे उनके खाते में डाले जाते हैं। बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा में काम कर कुछ बंदी तो 14 साल की अवधि में 60 से 65 हजार रुपये तक कमा चुके हैं।