Chhath Puja 2022: ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं षष्ठी देवी, ऐसे शुरू हुई छठ पूजा की अनूठी परंपरा
Chhath Puja 2022 लोक आस्था का महापर्व छठ प्रारंभ हो गया है। चहुंओर छठ पूजा का उत्सव नजर आ रहा है। माहौल पूरी तरह से भक्तिमय है। लेकिन क्या आप जानते हैं छठ पूजा क्यों मनाया जाता है? छठ मइया की कहानी क्या है? यह पूजा कैसे शुरू हुई?
By M. EkhlaqueEdited By: M EkhlaqueUpdated: Fri, 28 Oct 2022 12:13 PM (IST)
रांची, डिजिटल डेस्क। Chhath Puja 2022 बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, मुंबई, छत्तीसगढ़ समेत सभी हिंदी भाषी राज्यों में बेहद उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाने वाला लोक पर्व छठ आज शुक्रवार 28 अक्टूबर 2022 से प्रारंभ हो गया है। हर तरफ सिर्फ और सिर्फ छठ के लोकगीत सुनाई दे रहे हैं। घर से नदी-पोखर घाट तक और बाजार से मॉल तक सिर्फ और सिर्फ छठ का उत्सव ही दिखाई दे रहा है। नदी-पोखर घाटों पर जहां लोग सफाई कर सजावट में व्यस्त हैं, वहीं बाजार में शरद ऋतु का हर फल उपलब्ध है। लोग इसकी बड़े पैमाने पर खरीदारी कर रहे हैं।
चूंकि आज छठ का पहला दिन है। इसलिए आज नहाय-खाय के साथ छठ व्रत का संकल्प लिया जाएगा। देसी बाजार हो या मॉल हर जगह कद्दू ही कद्दू नजर आ रहे हैं। छठ का पहला अर्घ्य 30 अक्टूबर 2022 (Chhath Puja, Sunday, 30 October 2022) को दिया जाएगा। वहीं छठ का दूसरा अर्घ्य 31 अक्टूबर 2022 (Chhath Puja, Monday, 31 October 2022) को सुबह में दिया जाएगा।
Chhath Puja Katha: षष्ठी देवी ही छठी मइया के नाम से मशहूर हुईं खैर, छठ पूजा क्यों मनाया जाता है? यह सवाल अक्सर उन राज्यों के लोग पूछते हैं, जहां छठ पर्व नहीं मनाया जाता है। इसलिए यह जान लेना हम-सबके लिए जरूरी है कि यह पर्व क्यों मनाया जाता है। इस पर्व के पीछे की धार्मिक मान्यता क्या है। छठी मइया कौन हैं? जिनकी पूजा की जाती है। धार्मिक कथाओं के अनुसार छठी मइया ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं। इनका नाम षष्ठी देवी है। षष्ठी देवी को देसी भाषा में छठी मइया कहा जाता है। बिहार में यह शब्द इस कदर प्रचलित हो चुका है कि हर जगह लोग षष्ठी देवी से ज्यादा छठी मइया शब्द का ही उच्चारण करते हैं। यानी षष्ठी देवी छठी मइया के नाम से मशहूर हैं।
Chhath Puja 2022 Katha: राजा प्रियव्रत व मालिनी ने की सर्वप्रथम पूजा छठी मइया की कहानी धार्मिक कथाओं और पुराणों में उल्लेखित है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में एक कथा का जिक्र है। इस कथा में बताया गया है कि प्रथम मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत संतानहीन थे। वह संतान के लिए दुखी रहते थे। उनकी बस एक ही तमन्ना थी, एक संतान की प्राप्ति हो जाए। एक दिन उनको महर्षि कश्यप ने राजा से कहा- यदि संतान चाहिए तो यज्ञ करना होगा। राजा तुरंत तैयार हो गए। तमाम तैयारियों के साथ धूमधाम से महर्षि कश्यप की देखरेख में यज्ञ संपन्न हुआ।
इस यज्ञ के कुछ दिनों के बाद ही राजा प्रियव्रत की पत्नी मालिनी गर्भवती हो गईं। उन्होंने एक सुंदर से पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत था। राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी और दुखी हो गए। वह उदास रहने लगे। कहा जाता है कि इसी बीच एक देवी प्रकट हुईं। राजा प्रियव्रत ने उनसे पूछा- आप कौन हैं देवी? तब देवी ने उत्तर दिया- मैं ब्रह्मा जी की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं। मैं सृष्टि में सभी बच्चों की रक्षा करती हूं। जिन्हें संतान नहीं है, उन्हें संतान का वरदान देती हूं। इतना सुनते ही राजा प्रियव्रत का चेहरा खुशी से चमक उठा। उन्होंने षष्ठी देवी को अपनी व्यथा सुनाई। षष्ठी देवी ने राजा के मृत संतान के सिर पर हाथ फेरा। इसके बाद वह नवजात जिंदा हो गया।
Chhath Puja Tradition: इस तरह देश में प्रचलन में आया छठ पूजा कहा जाता है कि इस घटना के बाद से राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी ने सबसे पहले षष्ठी देवी की पूजा की। इसके बाद से यह पूजा चलन में आ गया। यही पूजा आगे चलकर छठ पूजा के नाम से प्रचलित हो गया है। आज भी छठ पूजा के दौरान महिलाएं संतान की कामना करती हैं। बेटी के लिए पढ़े लिखे दामाद की कामना करती हैं। जिन महिलाओं को संतान नहीं होता, वह छठ मइया से मन्नत मांगती हैं। मन्नत पूरा होने पर विशेष रूप से छठ पूजा करती हैं।
Chhath Puja 2022: छठ पूजा में इन बातों का रखा जाता है ध्यान
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।- इस पर्व में छठ व्रती और उसके परिवार को सफाई का विशेष ध्यान रखना पड़ता है।
- इस पूजा के दौरान छठव्रती के घर में लहसुन-प्याज व मांस-मदिरा पर प्रतिबंध रहता है।
- इस व्रत के दौरान घर में चार दिनों तक सिर्फ शाकाहारी भोजन ही पकाया जाता है।
- छठ पूजा का प्रसाद बिना स्नान किए किसी सूरत में ग्रहण नहीं किया जाता है।
- जिस घर में छठ पूजा का आयोजन होता है, खाने में सिर्फ सेंधा नमक का ही प्रयोग किया जाता है।
- नदी-पोखर पर बनाए गए छठ घाट पर पहुंचकर सूर्य को अर्घ्य देना सबसे उत्तम माना जाता है।