झाखंड में कांग्रेस को उल्टी पड़ी अपनी चाल, देश भर में मांग रही OBC के लिए आरक्षण; गठबंधन सरकार ने ही कर दी बगावत
कांग्रेस पूरे देश में ओबीसी की आवाज बनने की मुहिम चला रही है। हालांकि उसके अपने गठबंधन वाली सरकार झारखंड में आरक्षण दिलाने में पसीने छूट रहे हैं। ऐसे में पार्टी अपनी ओर से लिस्ट तैयार कर रही है और एक बार फिर मुख्यमंत्री से आग्रह कर सकती है। कयास यह लगाए जा रहे हैं कि अगर कांग्रेस आरक्षण लागू नहीं करवा पाई तो कार्यकर्ताओं को समझाने में परेशानी आएगी।
राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड में गठबंधन सरकार में शामिल कांग्रेस के लाख प्रयासों के बावजूद पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिलाने का वादा पूरा करने में पार्टी विफल हो रही है। नगर निकायों में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने का मामला ऐसा लटका कि चुनाव को लेकर ही बैठ गया।
राज्य सरकार ने नगर निकायों के चुनाव में ट्रिपल टेस्ट कराकर पिछड़ों को आरक्षण देने की घोषणा तो कर दी, लेकिन वह भी नहीं हो सका। तय किया गया कि पूरा काम पिछड़ा वर्ग आयोग की देख-रेख में होना है। अभी तक आयोग का गठन नहीं हो सका है।
मुख्यमंत्री से आग्रह कर सकती है कांग्रेस
कांग्रेस अपनी ओर से सूची लेकर तैयारियों में जुटी हुई है और एक बार फिर मुख्यमंत्री से आग्रह कर सकती है। विपक्षी दल भाजपा कांग्रेस की गठबंधन वाली सरकार पर नगर निकाय चुनाव में पिछड़ों की अनदेखी का आरोप लगा रही है।
पार्टी अगर आरक्षण लागू नहीं करवा सकी तो अपने कार्यकर्ताओं को समझाने में भी परेशानी आएगी। पूरे देश में पिछड़ा वर्ग के लिए आवाज बनने की मुहिम को भी यहां से झटका लग सकता है।
लोकसभा और विधानसभा चुनाव होंगे जल्द
झारखंड में भी चुनाव दूर नहीं है। लोकसभा चुनाव पहले होंगे और इसके छह महीने के अंदर विधानसभा चुनाव भी हो जाएंगे। ऐसे में कम से कम कांग्रेस पार्टी को हर मोर्चे पर पिछड़ा वर्ग आरक्षण को लागू नहीं करवाने के कारण जवाब देना होगा। पिछले चुनाव में पार्टी की ओर से हुई प्रमुख घोषणाओं में पिछड़ों को आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने का वादा प्रमुख था।
इस दौरान पार्टी में पिछड़ा वर्ग के कई प्रमुख नेता जैसे पूर्व विधायक जलेश्वर महतो, विधायक प्रदीप यादव आदि की एंट्री हुई है और इन्हें बरकरार रखने के लिए भी पार्टी पर पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण लागू करने का दबाव होगा।
राज्यपाल ने राज्य सरकार को भेज दिया था प्रस्ताव
राज्य में पिछड़ों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण को लेकर एक बार कैबिनेट से प्रस्ताव पास कराकर राज्यपाल को भेजा गया था, लेकिन उन्होंने इसे वापस राज्य सरकार को भेज दिया था।
इसके बाद नगर निकायों में पिछड़े वर्गों को मिल रहे आरक्षण को ही लागू रखने की बातें हुईं, जिसके लिए राज्य सरकार ने ट्रिपल टेस्ट कराने का फैसला लिया। इसके लिए पिछड़ा वर्ग आयोग को लीड एजेंसी बनाने का फैसला लिया, लेकिन अभी तक आयोग का गठन नहीं हुआ है। देखना है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस का दबाव कितना कारगर साबित होता है।
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