संविधान दिवस: संविधान के निर्माण में झारखंड का भी है अहम योगदान
संविधान के निर्माण में झारखंड का भी अहम योगदान रहा है।
जागरण संवाददाता, रांची : संविधान के निर्माण में झारखंड का भी अहम योगदान रहा है। जयपाल सिंह मुंडा, बोनीफेस लकड़ा व देवेंद्र नाथ सामंत वे तीन लोग हैं जिन्हें झारखंड की तरफ इस विशिष्ट कार्य का हिस्सा बनने का गौरव प्राप्त है। मूल संविधान की प्रति के अंत में इन तीनों के हस्ताक्षर शामिल हैं। इसमें सबसे अहम योगदान जयपाल सिंह मुंडा का है। वर्ष 1947 में जब अल्पसंख्यकों और वंचितों के अधिकारों पर पहली रिपोर्ट प्रकाशित हुई तो उसमें सिर्फ दलितों के लिए ही विशेष प्रावधान शामिल किये गए थे। दलित अधिकारों के लिए लड़ने वाले डॉ अंबेडकर ताकतवर नेता बन चुके थे। संविधान निमार्ण के दौरान आदिवासियों की अनदेखी देख लंदन की मशहूर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़कर आए और भारतीय हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व कर चुके जयपाल सिंह मुंडा आगे आए। उन्होंने संविधान सभा में बेहद यादगार भाषण दिया। उन्होंने कहा कि पिछले छह हजार साल से अगर इस देश में किसी का शोषण हुआ है तो वे आदिवासी ही हैं। अब भारत अपने इतिहास में एक नया अध्याय शुरू कर रहा है तो हमें अवसरों की समानता मिलनी चाहिए। जयपाल सिंह की दखलअंदाजी के बाद देश के नेताओं ने भी जयपाल की बातों की गंभीरता और उपेक्षित आदिवासी समाज के दुख को समझा और 400 आदिवासी समूहों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया। उस समय इनकी आबादी करीब 7 फीसदी आंकी गई थी। जिसके बाद आदिवासी समुदाय के लिए विधायिकाओं और सरकारी नौकरियों में 7.5 फीसद आरक्षण सुनिश्चित किया जा सका। यह जयपाल सिंह ही थे जिनकी कोशिशों के बाद संविधान का पाचवा भाग आदिवासियों के नाम पर समर्पित किया गया।
भारत में संविधान दिवस को राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। भारतीय संविधान के 26 नवंबर को 1949 को औपचारिक रूप से अपनाए जाने के बाद से इस दिन को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है।