टंकी बनकर तैयार... पानी पहुंचने का इंतजार, गढ़वा के इस गांव में अब तक नहीं पहुंचीं बुनियादी सुविधाएं; तरस रहे लोग
गढ़वा से 14 किमी दूरी पर अन्नराज घाटी की तलछटी में आदिम जनजाति की बस्ती है। कोरवा जनजाति के दस घर है तथा दो घर परहिया जनजाति की है। बस्ती की जनसंख्या लगभग 110 है। बस्ती तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं होने के कारण वह मुख्यधारा से लगभग कटे हुए हैं। आदिम जनजाति के घरों तक पथरीली ऊंची-नीची और झांडियों से घिरी पगडंडी पहुंचती है।
2018-19 में ग्रामीण जलापूर्ति केंद्र का निर्माण कराया गया था
पगडंगी से होकर स्कूल जाने को विवश बच्चे
बस्ती में स्कूल था, वह भी मर्ज हो गया। बच्चे तलछटी से ऊपर जाकर पथरीली पगडंगी से होकर स्कूल जाने को विवश है। रास्ता मुश्किल होने के कारण नियमित पढ़ाई करने भी नहीं जाते। ज्यादातर लोगों का स्वास्थ्य कार्ड नहीं बना है।इसलिए, बीमार होने पर झोलाछाप चिकित्सक से इलाज कराते हैं। बस्ती के सुरेंद्र कोरवा की पत्नी विमली देवी पथरीली सडृक से आ रही तो गिरकर उसका पैर टूट गया।अच्छी तरह से इलाज नहीं होने के कारण लंगडाते हुए किसी प्रकार चलती है। कान से भी अच्छी तरह से सुनाई नहीं देता।'मुड़कटवा होईब तो घर में मत आईब...'
दैनिक जागरण प्रतिनिधि जब आदिम जनजाति परिवार के घर पहुंचे तो वहां कुछ महिलाएं थी। घर की साफ सफाई कर रही थी। जब उनसे पूछा कि क्या हम उनके घर में आ सकते हैं तो एक महिला की आवाज आई मुड़कटवा होईब तक मत आईब...।जब महिला पूरी तरह से समझ गई तथा हमने बताया कि हम आपकी समस्या जानने आए है तो वह हमें घर में आने की अनुमति दी। महिला ने अपना टूटा-फूटा घर दिखाया। आंगन में बच्चे खेलते दिखे। उसने संकोच करते हुए अपना नाम संतरा देवी बताया तथा आदिम जनजाति परिवार की समस्याओं से अवगत कराया तथा अन्य लोगों से भी मुलाकात करवाई।आदिम जनजाति के लोगों ने बताए दर्द
बस्ती में प्राथमिक स्कूल था मगर अब वह बंद हो गया है। बच्चे अब चढ़ाई चढ़कर स्कूल जाते है। आंगनबाड़ी केंद्र भी दूर है। यहां स्कूल था तो पढ़ाई होती थी अब बच्चे नहीं पढ़ते हैं।- सुनीता देवी
बस्ती में स्वास्थ्य सुविधा नहीं है। मेरा स्वास्थ्य कार्ड भी नहीं बना है, जिसके कारण इलाज कराने के लिए ओबरा, बीरबंधा व गढ़वा जाना पड़ता है। बहुत खर्च होता है। इसलिए, इलाज नहीं करा पाते।- बिगन कोरवा
वर्षों से हमलोग इस बस्ती में रह रहे हैं। मगर हमें सरकार द्वारा सुविधा नहीं दी जा रही है। कच्चा मकान है। आदिम जनजाति के कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाएं हमारी बस्ती तक नही पहुंच रही है।- विजय परहिया
महिलाओं एवं बच्चों के लिए निश्शुल्क दवा का वितरण बस्ती में नहीं किया जाता है। पोषाहार भी नहीं मिलता है। लोग इस बस्ती में आने से हिचकते हैं। ऊपर की बस्ती में ही सुविधाएं देकर चले जाते हैं।- सिलवंती देवी
यह भी पढ़ें: Chatara News: दिवाली के रंग में पड़ा भंग, सड़क हादसे ने छीन ली दो युवकों की जिंदगी; गम में तीसरे की भी चली गई जानसरकार को हमारी सुविधा का ध्यान रखना चाहिए। सभी परिवारों को पेंशन, राशन, आवास का लाभ नहीं मिल रहा है। पेयजल एवं स्वास्थ्य सुविधा से भी हमलोग वंचित है।- पानपति देवी
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