डिलिस्टिंग महारैली के बाद ईसाई मिशनरियों में बढ़ी हलचल, कांग्रेस नेता ने भाजपा पर साधा निशाना; कर दी ये बड़ी घोषणा
मतांतरित आदिवासियों को जनजातीय समुदाय के आरक्षण से वंचित करने की मांग तेजी से जोर पकड़ रही है। इसे लेकर मुंबई समेत देश के विभिन्न शहरों में डिलिस्टिंग महारैली का आयोजन किया गया। इन रैलियों में आदिवासी समुदाय की जोरदार उपस्थिति से ईसाई मिशनरियों के कान खड़े हो गए हैं। रांची में महारैली के बाद अब मिशनरियों ने भी इसके जवाब में रणनीति बनाई है।
राज्य ब्यूरो, रांची। मतांतरित आदिवासियों को जनजातीय समुदाय के आरक्षण से वंचित करने की मांग तेजी से जोर पकड़ रही है। इसे लेकर मुंबई समेत देश के विभिन्न शहरों में डिलिस्टिंग महारैली का आयोजन किया गया। इन रैलियों में आदिवासी समुदाय की जोरदार उपस्थिति से ईसाई मिशनरियों के कान खड़े हो गए हैं।
रांची में महारैली के बाद अब मिशनरियों ने भी इसके जवाब में रणनीति बनाई है। ये भले ही खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं, लेकिन भितरखाने उन नेताओं को आगे बढ़ा रहे हैं, जो इनके कृपापात्र रहे हैं। दरअसल, इस गंभीर मुद्दे पर आदिवासी समुदाय की एकजुटता ईसाई मिशनरियों को खल रही है, क्योंकि जनजातीय समुदाय का सर्वाधिक मतांतरण ईसाई मिशनरियों ने कराया है।
कांग्रेस प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष ने डिलिस्टिंग की मांग का किया विरोध
झारखंड में इनकी बड़ी तादाद है और इनका प्रभाव क्षेत्र भी बड़ा है। यही वजह है कि गांव व पंचायत स्तर से लेकर विधानसभा व लोकसभा चुनावों में चर्च अपनी भूमिका निभाता है। ऐसे में आदिवासी समुदाय में मतांतरण के विरोध में बनते वातावरण को देखते हुए इस मांग के विरोध में वातावरण तैयार किया जा रहा है। झारखंड में कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने डिलिस्टिंग की मांग को सिरे से गलत करार देते हुए इसका विरोध किया है।उन्होंने इसे जनजातीय समुदाय की एकता को तोड़ने का प्रयास करार देते हुए भाजपा पर निशाना साधा है। तिर्की ने अगले वर्ष चार फरवरी को यहां महारैली की घोषणा की है। इसके लिए वे झारखंड जनाधिकार मंच के बैनर का उपयोग करेंगे। इसी बहाने डिलिस्टिंग के समर्थन और विरोध की राजनीति तेज होगी।
कार्तिक उरांव ने जनजातीय समुदाय के लिए उठाई थी मांग
उल्लेखनीय है कि लोकसभा में कार्तिक उरांव ने सबसे पहले जनजातीय समुदाय के लिए यह मांग उठाई थी। जनजाति सुरक्षा मंच ने नए सिरे से इस मांग को लेकर पहल की है। जिसे आदिवासी समुदाय का व्यापक समर्थन मिल रहा है। लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा इस मांग को लेकर मुखर हैं।उनका कहना है कि आदिवासी आरक्षण का 90 प्रतिशत मतांतरित को मिल रहा है, जबकि मतांतरण करने वाले आदिवासी महज 15 से 20 प्रतिशत हैं। ऐसे में ये आदिवासियों का हक मार रहे हैं।
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