Move to Jagran APP

Birsa Munda Punyatithi: चुआं से प्यास बुझा रहे बिरसा मुंडा के वंशज

रांची से उलिहातू तक गाड़ियां सरपट भागती हैं। चकाचक सड़कें हैं। उलिहातू यानी बिरसा मुंडा का जन्म स्थान। बिरसा जिसे धरती आबा कहा जाता। ठीक जन्म स्थान के सामने एक जंग खाये लोहे की पाइप पर छोटा सा बोर्ड लगा है--बिरसा भगवान है आदर्श हमारा हमको है प्राणों से प्यारा।

By Vikram GiriEdited By: Updated: Wed, 09 Jun 2021 09:20 AM (IST)
Hero Image
चुआं से प्यास बुझा रहे बिरसा मुंडा के वंशज। जागरण
रांची, [संजय कृष्ण]। रांची से उलिहातू तक गाड़ियां सरपट भागती हैं। चकाचक सड़कें हैं। उलिहातू यानी बिरसा मुंडा का जन्म स्थान। बिरसा जिसे धरती आबा कहा जाता है। ठीक जन्म स्थान के सामने एक जंग खाये लोहे की पाइप पर छोटा सा बोर्ड लगा है -- बिरसा भगवान है आदर्श हमारा, हमको है प्राणों से प्यारा। लेकिन जब बिरसा मुंडा के परपोते की बहू गांगी मुंडा से मिलिए तो यह आदर्श भरभरा कर गिर जाता है। धरती आबा के वंशज चुआं का पानी पीते हैं , पिछले कई महीने से। गांगी कहती है, नल से पानी आता नहीं। साल भर से सोलर संचालित जलापूर्ति ठप है। साल भर से पूरा गांव प्रदूषित पानी ही पी रहा है।

समस्या सिर्फ पानी की ही नहीं है। आवास की भी है। यहां साल में सिर्फ दो बार नेता अवतरित होते हैं- 15 नवम्बर जयंती पर और 9 जून शहादत दिवस पर। गांगी शहादत दिवस को देखते हुए स्मारक स्थल के परिसर के चिलचिलाती धूप में साफ सफाई में जुटी थी। बड़ी मायूसी से कहती हैं- नेता लोग आता है, आश्वासन देता है फिर भूल जाता है। 4 साल से आवास दे रहा है, ऐसा आवास जिसमें इतना बड़ा परिवार का रहना मुश्किल है। हम बड़ा आवास मांगते हैं। सरकार या प्रसाशन के हाथ उनके बनाये नियमों ही बांध रखें हैं। यद्यपि देखिये कि राज्य सरकार बिरसा मुंडा के नाम पर आदिवासियों को आवास भी देती है।

स्मारक भी बदहाल

वैसे तो बिरसा मुंडा की जन्मस्थली का स्मारक भी बदहाल है। बैठने के लिए बने दीवार से सटे सीमेंट के बने बेंच के संगमरमर उखड़ रहे हैं। किवाड़ दीमक चट कर रहे हैं। बाकी वहां ऐसा कुछ नहीं है जो दर्शनीय है। बिरसा के जीवन संघर्ष की कहानी, उनके संगी साथी, जिन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया, कुछ भी नहीं। बस, एक आवक्ष प्रतिमा है घर के अंदर।

आज बिरसा मुंडा का शहादत दिवस है। रांची के जेल में उनकी मौत हो गई। यह मौत स्वाभाविक नहीं थी। मुंडा के अनुयायियों का मानना था कि उन्हें जहर दे दिया गया था और आनन फानन में उनका अंतिम क्रिया डिस्टिलरी पुल के पास कर दिया गया। तब यह बहुत ही सुनसान था। बिरसा मुंडा 25 साल में विदा हो गए। ठीक से जवानी की ओर कदम बढ़ाने की उम्र थी लेकिन वे छोटे और सार्थक जीवन का सबक दे गए। बिरसा के पथ पर भगत सिंह सरीखे क्रांतिकारी चले...अपने देश के लिए। अबुआ दिशुम के लिए...!

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।