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बिरसा मुंडा : छोटी-सी जिदगी में दिखते हैं कई आयाम

महज 24 साल छह माह और 21 दिन की जिदगी पाने वाले बिरसा मुंडा ने एक अमिट छाप छोड़ी।

By JagranEdited By: Updated: Wed, 09 Jun 2021 08:02 AM (IST)
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बिरसा मुंडा : छोटी-सी जिदगी में दिखते हैं कई आयाम

महज 24 साल, छह माह और 21 दिन की जिदगी पाने वाले बिरसा मुंडा ने एक अमिट छाप छोड़ी। उनकी छोटी-सी जिदगी में कई आयाम देखने को मिलते हैं। एक साधारण किसान परिवार में जन्मे बिरसा मुंडा कभी जर्मन मिशन में बपतिस्मा उपरांत दाऊद मुंडा बने, बांसुरी बजाते बकरियां चराई, गुरु आनंद पांडा के संरक्षण में रामायण-महाभारत की शिक्षा पाई, जड़ी-बूटी से लोगों का इलाज किया, तीर्थ-यात्रा की, दस आज्ञाओं वाला बिरसाइत धर्म चलाया और अंतत: शोषण के खिलाफ खड़े होकर स्वतंत्रता सेनानी बन गए। अंग्रेजों और मिशनरियों के खिलाफ सशस्त्र आंदोलन किया। उन्होंने 'उलगुलान' यानी 'विद्रोह' का नेतृत्व किया। लोगों का उन पर अटूट विश्वास था। अंग्रेजों का पुतला बनाकर होलिका दहन किया

मार्च 1898 में सिबूआ की पहाड़ी पर एक महासभा का आयोजन किया गया। लोगों ने अंग्रेज का पुतला बनाकर होलिका दहन किया। इस सभा में डुंडीगढ़ा के दुखन साय और रामगढ़ा के रतन साय ने बिरसा के गीत गाए। वह पूर्णमासी की रात थी। वहां बच्चे, युवा, औरत-मर्द सभी थे। बिरसा मुंडा धोती पहने, पिचूड़ी (मोटे कपड़े की चादर) ओढ़े संबोधित करते हुए कहा - 'अबुआ दिशुम, अबुआ राज' अर्थात 'हमारा देश हमारा राज' पाने के लिए संघर्ष शुरू करने का एलान करता हूं। 15 नवंबर को यहां मेला लगता है। 24 दिसंबर 1899 को क्रांति शुरू हुई। गिरजाघरों तथा थानों को निशाना बनाया गया। सरवदा चर्च में क्रिसमस की तैयारी चल रही थी। तीर से हमला किया गया। फादर हॉफमैन को तीर लगा, लेकिन मोटा ओवर कोर्ट पहने होने के कारण तीर अंदर तक नहीं जा पाया। निहत्थे मुंडाओं पर गोलियों की बौछार कर दी

डोंबारी पहाड़ पर अंग्रेजों ने निहत्थे मुंडाओं पर गोलियों की बौछार कर दी। बिरसा वहां से निकलने में सफल रहे। बिरसा के ऊपर 500 रुपये का इनाम रखा गया। 4 फरवरी 1900 को जराइकेला के रोगतो गांव में सोए हुए बिरसा को पकड़कर बंदगांव लाया गया। यी खबर जंगल में आग की तरह फैली। सशस्त्र मुंडा बंदगांव पहुंचने लगे। बिरसा मुंडा को खूंटी होते रांची लाया गया। अदालत में मुकदमा चला। फैसला आने से पहले ही 9 जून 1900 को रांची जेल में बिरसा की मौत संदिग्ध अवस्था में हो गई। आनन-फानन डिस्टलरी पूल, कोकर, रांची के पास बिरसा के शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया। महान स्वतंत्रता सेनानी 'धरती आबा' अमर हो गए और चलकद से संसद तक का सफर भारतीय इतिहास में सदा के लिए दर्ज हो गया।

- डा. मोहम्मद जाकिर।

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