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Draupadi Murmu: भारत की राष्ट्रपति बनीं द्रौपदी मुर्मू के सामने चुनौतियां, ईसाई मिशनरियों का अब क्या होगा?

Draupadi Murmu President भारत की नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू शिव भक्त हैं। वह सरना-सनातन में विभेद करने वालों की विरोधी हैं। ऐसे में सरना धर्म कोड की मांग करने वालों को झटका लगेगा। क्योंकि इसके पीछे ईसाई मिशनरियों का हाथ माना जाता है।

By M EkhlaqueEdited By: Updated: Thu, 21 Jul 2022 09:05 PM (IST)
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Draupadi Murmu: भगवान शिव की पूजा के बाद नंदी के कान में कुछ कहतीं द्रौपदी मुर्मू का फाइल फोटो।

रांची, राज्य ब्यूरो। आदिवासी बहुल इलाकों में ईसाई मिशनरियों का कुचक्र लगातार चल रहा है। मिशनरियों ने जनजातीय समुदाय के भीतर सेवा के नाम पर पैठ बनाया और इसी को आधार बनाकर मतांतरण की प्रक्रिया बढ़ाई। सांस्कृतिक आधार पर भी जनजातीय समुदाय को अलग-थलग करने की कोशिशें हुई। मिशनरियों ने सनातन परंपरा से जनजातीय समुदाय को अलग करने की मुहिम आरंभ की, जबकि पूजा पद्धति से लेकर विभिन्न तीज-त्योहार समान हैं। सांस्कृतिक और सामाजिक तानाबाना से इतर इस मांग को हवा देने के पीछे का उद्देश्य समाज में विभेद पैना करना था।

सरना-सनातन में विभेद करने वालों को झटका

जनगणना में इसका कालम बनाने का लाभ ईसाई मिशनरियों द्वारा चलाई गई मुहिम का हिस्सा है। अभी यह मांग परवान पर है। ईसाई मिशनरियों की आड़ में आदिवासियों के लिए जनगणना में विशेष धर्म कोड की दलील दी जा रही है। संताल आदिवासी समुदाय से आने वालीं द्रौपदी मुर्मू का रहन-सहन और विचार और उनका आध्यात्मिक रुझान ऐसी शक्तियों और प्रवृतियों को झटका देगा जो आदिवासियों को सनातन परंपरा से इतर करने का सपना पाले बैठे हैं। यह उन लोगों को भी जवाब देगा तो हिन्दू परंपरा से इतर आदिवासी परंपरा की दुहाई देते हैं। द्रौपदी मुर्मू की शिवभक्ति, उनका ब्रह्माकुमारी संस्था से गहरा लगाव और विभिन्न अवसरों पर प्रकट किए गए विचार ऐसी प्रवृतियों को हतोत्साहित करेंगे जो जनजातीय समुदाय को सनातन परंपरा से अलग करने संबंधी विचारों को हवा देते हैं।

ईसाई बनकर भी आरक्षण लेने वाले होंगे हतोत्साहित

ईसाई मिशनरियों ने जनजातीय समुदाय की आर्थिक-सामाजिक स्थिति का लाभ उठाकर धर्मांतरण कराया। सरना संगठनों की मांग है कि ईसाई बनने वाले जनजातीय समुदाय के लोग आदिवासी आरक्षण का लाभ उठाना बंद कर दें। इस मांग के खिलाफ ईसाई मिशनरियां हैं। ताजा राजनीतिक परिस्थितियों में राष्ट्रीय स्तर पर इस मांग को बल मिल रहा है कि आदिवासी आरक्षण का सर्वाधिक लाभ उठाने वाले धर्मांतरित जनजातीय समुदाय का आरक्षण बंद किया जाए।

400 से अधिक सांसदों ने विरोध में सौंपा है ज्ञापन

जनजाति सुरक्षा अभियान ने इस संबंध में मुहिम तेज की है। 400 से अधिक लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों ने इससे जुड़े मांगपत्र पर हस्ताक्षर किया है। लोकसभा में यह मांग उठ चुकी है। तर्क दिया गया है कि धर्मांतरण होने के बाद मूल आरक्षण का लाभ उठाना सरासर गलत है। केंद्र सरकार इस संबंध में कानून बनाकर हस्तक्षेप करे। इसका दूरगामी असर पड़ेगा। आदिवासी समुदाय का अधिकार इससे मिलेगा और मतांतरण करने के बाद आरक्षण का लाभ उठाने वाले हतोत्साहित होंगे। इससे ईसाई मिशनरियों के प्रभाव में आकर मतांतरण करने की प्रवृति भी खत्म होगी।

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