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Ranchi News: आपने जो कृत्य किया है, वह... कैबिनेट सचिव वंदना दादेल का वह पत्र जिसपर भड़की ED, दे डाली यह सख्त चेतावनी

ईडी ने झारखंड सरकार की कैबिनेट सचिव वंदना दादेल के उस पत्र पर कड़ी आपत्ति जताई है जिसमें उन्होंने राज्य के अधिकारियों-कर्मियों को समन नहीं करने दस्तावेज नहीं मांगने का निर्देश दिया था। ईडी ने कैबिनेट सचिव वंदना दादेल को सचेत भी किया है कि उन्होंने जो कृत्य किया है वह गैरकानूनी और अनुसंधान को प्रभावित करने की कोशिश है।

By Dilip Kumar Edited By: Mohit Tripathi Updated: Wed, 17 Jan 2024 06:23 PM (IST)
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ईडी ने वंदना दादेल को लिखा पत्र। (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, रांची। राज्य के अधिकारियों-कर्मियों को समन नहीं करने, दस्तावेज नहीं मांगने और केस का पूरा ब्योरा देने संबंधित झारखंड सरकार की कैबिनेट सचिव वंदना दादेल के पत्र पर ईडी ने कड़ी आपत्ति जताई है। ईडी ने कैबिनेट सचिव वंदना दादेल को सचेत भी किया है कि उन्होंने जो कृत्य किया है, वह गैरकानूनी और अनुसंधान को प्रभावित करने की कोशिश है।

पीएमएल अधिनियम में इसके विरुद्ध मुकदमा चलाने व कार्रवाई करने की भी शक्तियां अनुसंधानकर्ता को मिली हुई है। ईडी के अनुसंधानकर्ता ने कैबिनेट सचिव वंदना दादेल को पीएमएल अधिनियम की शक्तियों से अवगत कराया है।

ईडी ने लिखा है कि राज्य सरकार का कोई आदेश-निर्देश पीएमएल अधिनियम के अनुसंधानकर्ता पर लागू नहीं होता है। ईडी के अनुसंधानकर्ता को समन करने और दस्तावेज मांगने का अधिकार है।

अनुसंधान में हस्तक्षेप करने वाला व उसे प्रभावित करने वाला भी उतना ही दोषी माना जाएगा, जितना की आरोपित। ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध पीएमएल अधिनियम में मुकदमा चलाने का अधिकार है। ईडी ने वंदना दादेल को उस व्यक्ति के नाम से अवगत कराने को कहा है कि जिसके निर्देश पर उन्होंने पत्र जारी किया था।

अनुसंधानकर्ता व साहिबगंज DC को भेजा गया पत्र गैरकानूनी

ईडी ने लिखा है कि उनके माध्यम से अनुसंधानकर्ता व साहिबगंज के डीसी को भेजा गया अवांछित निर्देश यह साबित करता है कि उन्होंने जानबूझकर एक संवेदनशील मामले में चल रहे अनुसंधान को प्रभावित करने का प्रयास किया है। यह पीएमएल अधिनियम में निहित प्रविधानों का उल्लंघन है।

याद रहे कि इस अवैध हस्तक्षेप के लिए भी कानून में दंड का प्रविधान है। यदि इस तरह का कोई भी प्रयास अनुसंधान को प्रभावित करने के लिए किया जाता है तो अनुसंधानकर्ता उस व्यक्ति के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने से नहीं हिचकेगा। यह आपराधिक प्रयास है, जिसकी कानून इजाजत नहीं देता है। इसके लिए लोकसेवक को नौकरी से भी हाथ धोना पड़ेगा और वह साजिश रचने का दोषी माना जाएगा।

कैबिनेट सचिव का हस्तक्षेप समझ से परे

ईडी ने कैबिनेट सचिव को भेजे गए पत्र में बताया है कि वैभव कुमार, मोहम्मद नौशाद आलम, राजा मित्रा, रामनिवास यादव व अवधेश कुमार को ईडी ने समन किया था।

वंदना दादेल को व्यक्तिगत रूप से समन नहीं किया गया है। जांच एजेंसी यह समझ में नहीं पा रही है कि वे इस मामले में हस्तक्षेप क्यों कर रही हैं।

पीएमएल अधिनियम की सेक्शन 50 (2) व सेक्शन 50 (तीन) यह अधिकार नहीं देता है कि जिसको समन नहीं किया गया है, वह इसमें हस्तक्षेप करे।

इस केस का अनुसंधान पदाधिकारी कानूनी रूप से कोई भी सूचना शेयर करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। आप सूचना मांगने के लिए अधिकृत नहीं हैं।

इस परिदृश्य में आपसे आग्रह है कि आप बताएं कि कौन से कानून व अधिकार के तहत तथा पीएलए अधिनियम के किस सेक्शन के तहत ईडी में चल रहे अनुसंधान के संबंध में जानकारी मांगना चाह रही हैं और इस केस में हस्तक्षेप कर रही हैं।

ईडी को आदेश-निर्देश जारी करने का नहीं अधिकार

ईडी ने कैबिनेट सचिव को लिखा है कि पीएमएल अधिनियम के तहत अनुसंधान के मामले में वह कानूनी रूप से भी सरकुलर, प्रशासनिक आदेश, आंतरिक निर्देश आदि जारी करने के लिए अधिकृत नहीं हैं। यहां तक कि उनका कोई भी आदेश-निर्देश पीएमएल अधिनियम के अनुसंधानकर्ता को बाध्य नहीं कर सकता है।

अनुसंधानकर्ता को इस अधिनियम में तमाम शक्तियां मिली हुई हैं। यह स्पष्ट है कि केवल केंद्र सरकार के पास निर्देश पास करने व पीएमए अधिनियम में संशोधन करने का अधिकार है, जो संसद की स्वीकृति के बाद पारित होता है। इसके लिए पीएमएल अधिनियम का सेक्शन 73 भी पढ़ा जा सकता है।

जिसको किया जा रहा है समन, वह सच्चाई से कराए अवगत

ईडी ने आगे यह भी बताया है कि पीएमएल अधिनियम के तहत अनुसंधान करने वाले पदाधिकारी को यह शक्ति मिली है कि वह अगर चाहे कि उसे अपने अनुसंधान में उस व्यक्ति से पूछताछ करनी है, उससे दस्तावेज लेना है तो वह उसे समन कर सकता है।

समन में बाध्यता है कि वह व्यक्ति उपस्थित हो और सच्चाई से अनुसंधानकर्ता को अवगत कराए। जारी समन पर बयान व दस्तावेज उपलब्ध कराना आवश्यक है।

पीएमएल अधिनियम के तहत अनुसंधान कर रहे अनुसंधानकर्ता की शक्ति को राज्य सरकार का कोई सरकुलर, प्रशासनिक आदेश, आंतरिक निर्देश प्रभावित नहीं कर सकता है।

इस तरह यह माना जा सकता है कि आपके माध्यम से गलत तरीके से अनुसंधान को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है।

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