Electoral Bonds: 'ना खाता ना बही...', कांग्रेस के कटाक्ष पर BJP की तीखी प्रतिक्रिया; याद दिला दी पुरानी बात
इलेक्टोरल बॉन्ड को देश की राजनीति गरमाई हुई है। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियां भाजपा को घेरने में लगी हुई है। झारखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने चुनावी चंदे को लेकर भाजपा पर कटाक्ष किया है तो वहीं भाजपा ने उसपर तीखी प्रतिक्रिया दी है और पुरानी बातें याद दिलाई है। भाजपा नेता ने कहा कि ना खाता ना बही जो कांग्रेस अध्यक्ष कहे वही सही।
राज्य ब्यूरो, रांची। कांग्रेस ने चुनाव बॉन्ड की आड़ में शुक्रवार को भाजपा पर हमला बोला। प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कहा कि भाजपा पहले चंदा लेती है और फिर धंधा देती है। भाजपा की यही नीति रही है।
कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि भाजपा नेताओं ने गैंग बनाकर चुनाव बॉन्ड के जरिए रकम की वसूली की। 15 फरवरी को बॉन्ड को असंवैधानिक घोषित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से मोदी सरकार एसबीआई के माध्यम से लगातार इस बात को सामने आने से रोकने या देरी करने की कोशिश कर रही थी ताकि भ्रष्टाचार पर दोहरी नीति का पर्दाफाश नहीं हों।
उन्होंने आगे कहा कि 20 फरवरी को ईडी, सीबीआई या आईटी विभाग के छापे या जांच के तुरंत बाद 30 कंपनियों से बीजेपी को 335 करोड़ रुपए तक का चंदा मिलना यह साबित करता है कि भाजपा संवैधानिक संस्थाओं को इस्तेमाल डरा-धमका कर वसूली में लगी है। सेबी ने जिन चार कंपनियों को फर्जी स्माल कंपनीज बताया है, उनसे भाजपा ने 4.9 करोड़ का चंदा लिया।
उन्होंने सवाल उठाया कि इन कंपनियों के माध्यम से भाजपा के पास किसका कालाधन आया। कोरोना के दौरान टीके बनाने का एकमात्र अधिकार सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को दिया गया। सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया ने भी 50 करोड़ का चंदा दिया। उससे मन नहीं भरा तो बूस्टर डोज लगवाया, जिसका परिणाम यह देखने को मिला रहा है कि युवा और बुजुर्ग को हार्ट अटैक हो रहे हैं। भाजपा को इसका जवाब देना पड़ेगा।
भाजपा का कांग्रेस पर पलटवार
भाजपा प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कांग्रेस के आरोपों पर पलटवार किया। कहा कि कांग्रेस इस देश में भ्रष्टाचार की जननी रही है। पहले कांग्रेस के यहां प्रचलित कहावत था- ना खाता ना बही, जो कांग्रेस के अध्यक्ष कहे वही सही। पहले कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल चुनाव संबंधी लेनदेन कच्चे पैसे में करते थे।यह भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का बड़ा कदम था। अटल बिहारी वाजपेयी के समय में इनकम टैक्स कानून में संशोधन करके चुनाव में चंदा देने वाले कॉरपोरेट्स को टैक्स में रियायत देने की सार्थक पहल हुई। चुनाव बॉन्ड लाकर राजनीतिक पार्टियों को स्वच्छ तरीके से चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित करने का सार्थक प्रयास किया गया। यह पारदर्शी सिस्टम का बेहतरीन नमूना था। आज अनर्गल आरोप लगा रहे हैं।
यह मामला विचाराधीन है और आर्थिक शुचिता व पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए और अपेक्षित सुधार की गुंजाइश है। भाजपा और भाजपा के सहयोगी दलों की सरकार 18 प्रदेशों में है। भाजपा के 303 सांसद हैं, जबकि कांग्रेस महज दो-तीन प्रदेशों में है।फिर भी मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा को 6000 करोड़ के आसपास चुनाव बॉन्ड से प्राप्त हुआ है, जबकि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के आंकड़ों को मिला दें तो यह 3000 करोड़ हो जाता है। इससे स्पष्ट दिख रहा है कि वजूद नहीं होने के बावजूद भी कांग्रेस शेल कंपनी के जरिए अपनी फंडिंग करवा रही है।
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