EWS Reservations: झारखंड और उससे सटे बंगाल के इलाकों में आरक्षण के कारण बनती टकराव की पृष्ठभूमि
EWS Reservations राज्य में पिछड़ी जाति का आरक्षण प्रतिशत बढ़ाकर 27 प्रतिशत (अत्यंत पिछड़ा वर्ग 15 प्रतिशत और पिछड़ा वर्ग 12 प्रतिशत) करने का निर्णय किया गया है। इससे संबंधित प्रस्ताव विधानसभा में पेश कर अनुशंसा केंद्र की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा।
रांची, प्रदीप सिंह। सामान्यतया आगे बढ़ने के लिए संघर्ष समझ में आता है, लेकिन कोई अगर खुद को सबसे पिछली जमात में फिर से शामिल करने की जद्दोजहद करे तो उस समाज का विरोध स्वाभाविक है। झारखंड और उससे सटे बंगाल और ओडिशा के इलाकों में कुछ ऐसा ही हो रहा है। यहां दो प्रभावी समुदायों में इस बात को लेकर टकराव हो रहा है। एक आदिवासी का दर्जा पाना चाहता है तो दूसरा अपने हिस्से के अधिकार बंट व छिन जाने के डर से विरोध में मुट्ठी ताने बैठा है।
पिछले सप्ताह ऐसे ही घटनाक्रम ने पूरे देश का ध्यान खींचा, जब पिछड़ी जाति में शामिल कुड़मी समुदाय के लोगों ने झारखंड-बंगाल सीमा पर स्थित पुरुलिया जिले के कुस्तौर और खड़गपुर के पास खेमाशुली में रेल ट्रैक जाम कर छह दिनों तक ट्रेनों का परिचालन ठप करा दिया। इससे आद्रा, खड़गपुर, चक्रधरपुर और रांची रेल मंडल की ट्रेनों का संचालन बुरी तरह प्रभावित हुआ। कुड़मियों के इस रेल रोको आंदोलन की वजह से छह दिनों के दौरान दक्षिण-पूर्व रेलवे को 150 से अधिक ट्रेनें रद करनी पड़ीं, जबकि बड़ी संख्या में ट्रेनों को मार्ग बदलकर चलाया गया।
दरअसल झारखंड, ओडिशा और बंगाल में रहने वाले कुड़मी जाति के लोग स्वयं को आदिवासी बताते हुए अनुसूचित जनजाति में शामिल किए जाने की मांग कर रहे हैं। लंबे समय से यह मांग उठती रही है। वर्ष 1931 तक संयुक्त बिहार में कुड़मी अनुसूचित जाति में शामिल रहे भी हैं। उनका तर्क है कि उनकी संस्कृति और रहन-सहन आदिवासियों से मिलती-जुलती है। कुड़मियों की अच्छी-खासी आबादी को ध्यान में रखते हुए उनकी इस मांग का लगभग सभी राजनीतिक दल समर्थन करते हैं।
आम तौर पर चुनाव के पूर्व वोट बैंक को आकर्षित करने के लिए यह मुद्दा उछलता भी रहती है और फिर शांत हो जाता है, लेकिन इस बार एकाएक उग्र आंदोलन हुआ, जिसमें तीनों राज्यों के कुड़मियों ने धरनास्थल पर एकजुट होकर धरना दिया। उधर, आदिवासी ससमाज कुड़मियों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग का विरोध करता है। इस बार भी आदिवासियों की ओर से प्रतिक्रिया हुई और सेंगेल अभियान समेत आधा दर्जन आदिवासी संगठनों ने कुड़मियों की मांग का विरोध किया। इस बीच इस मुद्दे को हवा देने वाले राजनीतिक दलों ने चुप्पी साध रखी है। कुड़मियों ने तीनों राज्यों के संगठनों को मिलाकर संयुक्त समिति बनाई तो रांची में आदिवासी संगठनों से जुड़े बुद्धिजीवियों ने उपवास और धरना का आयोजन कर विरोध जताया। उन्होंने अपने तर्कों और पूर्व में हुए शोध के आधार पर इस मांग को सिरे से नकार दिया।
फिलहाल यह मामला ठंडा पड़ता नहीं दिख रहा है। जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने इस मांग को विचाराधीन बताया है। दूसरी ओर कुड़मी संगठनों ने जल्द ही आंदोलन का दूसरा चरण आरंभ करने की चेतावनी दी है। जाहिर है, इसकी तत्काल प्रतिक्रिया आदिवासी समुदाय में होगी। ऐसे में यह दो प्रभावी समुदायों में टकराव की वजह बन सकता है। आदिवासी संगठनों के बुद्धिजीवियों का तर्क है कि कुड़मी संगठनों की मांग का धरातल पर आधार नहीं है और यह राजनीतिक दलों द्वारा अपने फायदे के लिए प्रेरित किया गया आंदोलन है।
बता दें कि झारखंड सरकार ने वर्ष 2005 और बंगाल सरकार ने वर्ष 2017 में कुड़मियों को आदिवासी का दर्जा देने संबंधी अनुशंसा केंद्र सरकार से की थी। नए सिरे से आंदोलन होता देख बीजू जनता दल ने भी इसकी अनुशंसा कर केंद्र को प्रेषित करने का आश्वासन दिया है। इससे जाहिर है कि यह मुद्दा राजनीतिक दलों द्वारा कुड़मी समुदाय की सहानुभूति पाकर वोट बटोरना है। फिलहाल यह केंद्र के रुख पर निर्भर करता है, लेकिन आने वाले दिनों में इसे लेकर खींचतान बढ़ने और दो समुदायों के बीच पाला खींचने की उम्मीद से इन्कार नहीं किया जा सकता। आरक्षण से जुड़ा एक फैसला हाल ही में झारखंड सरकार ने लिया भी है।
राज्य में पिछड़ी जाति का आरक्षण प्रतिशत बढ़ाकर 27 प्रतिशत (अत्यंत पिछड़ा वर्ग 15 प्रतिशत और पिछड़ा वर्ग 12 प्रतिशत) करने का निर्णय किया गया है। इससे संबंधित प्रस्ताव विधानसभा में पेश कर अनुशंसा केंद्र की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। इसके अलावा अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 28 प्रतिशत, अनुसूचित जाति का प्रतिशत बढ़ाकर 12 प्रतिशत किया गया है। कमजोर आर्थिक वर्ग के लिए 10 प्रतिशत का आरक्षण निर्धारित है। कुल मिलाकर अब राज्य में आरक्षण 77 प्रतिशत हो चुका है। यह मसला भी देर-सवेर कोर्ट की दहलीज पर जाएगा। पहले भी हाई कोर्ट बाबूलाल मरांडी की सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक बता चुका है, लेकिन इस बार हेमंत सोरेन सरकार इस प्रविधान को नौवीं अनुसूची में शामिल कर लागू करने की मांग कर रही है। अब देखना है आगे क्या होता है।
[राज्य ब्यूरो प्रमुख, झारखंड]