Jharkhand News : रांची का एक ऐसा 'आदर्श गांव'... जहां आज तक नहीं पहुंचे नेताजी, विलुप्त होने की कगार पर समाज
Jharkhand News रांची से 200 किलोमीटर दूर पोलपोल गांव है। दुर्गम क्षेत्र की जो परिकल्पना आपके मन में होती है उससे भी दुर्गम। सखुआ पानी गांव से ढाई किमी की दूरी बिना सड़क के। पहाड़ पर बसा गांव है। सखुआपानी और पोलपोल के बीच एक नाला है नदी भी कह सकते हैं। गांव वाले इसके कई नाम बताते हैं।
संजय कृष्ण, रांची। रांची से दो सौ किलोमीटर दूर गुमला के बिशुनपुर प्रखंड से 70 किमी दूरी पर पोलपोल गांव है। दुर्गम क्षेत्र की जो परिकल्पना आपके मन में होती है, उससे भी दुर्गम क्षेत्र। सखुआ पानी गांव से ढाई किमी की दूरी बिना सड़क के। पहाड़ पर बसा गांव है।
सखुआपानी और पोलपोल के बीच एक नाला है, नदी भी कह सकते हैं। गांव वाले इसके कई नाम बताते हैं। नाला पर अब पुल बन गया है और यहीं से फिर चढ़ाई चढ़ते हुए कच्चे रास्ते के सहारे हम 40 डिग्री तापमान में नेतरहाट के इस पाट इलाके में पहुंचते हैं। 2013 में घोषित इस आदर्श गांव में पिछले करीब 75 साल से इसी नाले में बने चुआं से पोलपोल की 140 घर की 756 की आबादी अपनी प्यास बुझाती है।
यहां महिला वोटर 256 और पुरूष मतदाता 245 हैं। देश-दुनिया को लोहा गलाने की तकनीक देने वाले असुरों का यह गांव अभी भी अपने आदिम रूप में जी रहा है। विकास के नाम पर इतना हुआ है कि बिजली पहुंच गई है। गांव से इस नाले की दूरी ढाई किमी है।
सुबह होते ही गांव की आबादी का दो घंटे का समय पानी उठाने में चला जाता है। पहाड़ी पर चढ़ना-उतरना इस गर्मी में इतना आसान नहीं। नहाना तो मुश्किल है ही। इस गांव के बीरेंद्र असुर की उम्र करीब साठ साल से ऊपर है। खेती-बारी ही आजीविका का एकमात्र साधन है।
हां, वे कहते हैं, 32 किलो अनाज मिल जाता है। इससे भी गुजर-बसर करने में आसानी हुई है। पीएम आवास के लिए आवेदन दिया है मगर बिशुनपुर प्रखंड में वह आवेदन कहां गुम हो गया पता नहीं। बहुत मायूसी से कहते हैं, बिशुनपुर प्रखंड भी हमारे लिए जाना आसान नहीं हैं। साठ-सत्तर किमी दूर। आने-जाने का साधन नहीं।
बीरेंद्र कहते हैं कि आबुआ आवास के लिए आवेदन दिए हैं। गांव में करीब 10-11 लोगों को पीएम आवास मिला है, लेकिन अभी बनना शुरू नहीं हुआ। अब लोग पीएम आवास से ज्यादा रुचि अबुआ आवास में ले रहे हैं।
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आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।मैट्रिक से आगे राह नहीं, जड़ी-बूटी पर निर्भर जीवन
मैट्रिक से आगे राह नहीं, जड़ी-बूटी पर निर्भर जीवन बहुत हुआ तो गांव में जिनके पास थोड़ा साधन हो, वे मैट्रिक तक पढ़ाई कर लेते हैं। मैट्रिक करना भी किसी दुर्गम पहाड़ की चढ़ाई से कम नहीं। गांव से ढाई किमी दूर सखुआ पानी में ही आवासीय विद्यालय है। यहां मैट्रिक तक ही पढ़ाई होती है। सो, इससे आगे के लिए उन्हें 70 किमी दूर जाना पड़ेगा। सामाजिक कार्यकर्ता विमलचंद्र असुर भी यहीं से मैट्रिक किए हैं। आगे नहीं पढ़ सके। वे अपने लोगों को राजनीतिक रूप से भी जागरूक करने में लगे हैं। मतदान को भी लेकर जागरूकता फैला रहे हैं। वे कहते हैं कि मैट्रिक के आगे यहां स्कूल-कालेज नहीं खुल सके। अस्पताल भी यहां नहीं हैं। इसके लिए भी हमें 70 किमी दूर बिशुनपुर जाना पड़ता है। वहां भी रेफरल अस्पताल है। यानी, वे भी रिम्स रेफर कर देते हैं। पानू असुर कहते हैं कि हम लोग जंगली-जड़ी-बूटी पर ही निर्भर हैं। पहली बारिश में जड़ी-बूटी होती है। हम लोग उसे तोड़ लेते हैं। बुखार हो, हड्डी टूटी हो, पेचिश आदि का इलाज कर लेते हैं।परंपरागत ज्ञान का बने म्यूजियम
संस्कृति संरक्षण के लिए परंपरागत ज्ञान का बने म्यूजियम इस गांव में सर्वाधिक जागरूक विमलचंद्र असुर कहते हैं कि हम चाहते हैं, गांव में ही म्यूजियम बने। असुर बहुत तेजी से विलुप्त हो रहे हैं। सरकार ने भी हमें विलुप्त जनजाति की श्रेणी में रखा है। हमारी भाषा आसुरी भी संकट में है। लोहा गलाने की तकनीक हमारे पास है। अब मात्र तीन लेाग ही लोहा गलाने की तकनीक जानते हैं। इसका दस्तावेजीकरण जरूरी है। म्यूजियम में हमारा जो पारंपरिक ज्ञान है, लोकगीत है, मिट्टी से लोहा निकालने और लोहा से औजार बनाने की जो पद्धति है, उसका संरक्षण जरूरी है।माइंस वरदान या अभिशाप
‘माइंस वरदान या अभिशाप’ पूरे पाट में बाक्साइट की खदानें हैं। खदानें असुर की जमीन पर ही हैं। असुर यहां उन्हीं खदानों में मजदूरी करते हैं। विमलचंद्र कहते हैं कि यहां माइंस है। बाक्साइट ढोने के लिए तो सड़कें बन गई हैं, लेकिन असुरों की शिक्षा-चिकित्सा पर कोई ध्यान नहीं है। सीएसआर का एक प्रतिशत भी असुरों के लिए खर्च नहीं होता है। हम समझ नहीं पा रहे हैं, यह हमारे लिए यह वरदान है या अभिशाप। यह बड़े दुख की बात है। इतनी मुश्किलों में सारा गांव जी रहा है। कोई देखने तक नहीं आता।सिर्फ मतदान ही करते हैं
75 साल के लोकतंत्र में सिर्फ मतदान कर रहा गांव लोकसभा का चुनाव शुरू हो गया। यहां के असुर अपना वोट डालने ढाई किमी दूर जाते हैं। लालदेव असुर कहते हैं कि हमने अपने होश में किसी नेता को यहां नहीं देखा है, जो वोट के लिए आया हो। आज तक कोई नेता गांव में नहीं पहुंचा।75 साल के इस लोकतंत्र में ये असुर बस वोट डालते हैं। पिछले दो दशक से असुरों के बीच काम करने वाले गुमला के हफिज उर्र रहमान कहते हैं, आदर्श गांव के बाद भी सूरत नहीं बदली। वे कहते हैं, एक समय यह पूरा क्षेत्र नक्सलियों का इलाका था। यहां लोगों की हिम्मत नहीं होती थी आने की। राहुल शर्मा जब डीसी थे तो किसी तरह उन्हें ले आया था और उन्होंने इसे आदर्श गांव घोषित किया था, लेकिन आज तक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। हो सकता है, लोकतंत्र के इस पर्व में बदलाव की हवा यहां से भी गुजरे।ये भी पढ़ें- शहरी क्षेत्र में वोट प्रतिशत बढ़ाना चुनौती, वोटर अवेयरनेस को लेकर क्या है तैयारी; पढ़ें रांची DC का साक्षात्कारआई अब आंटी की गारंटी... पत्थरांचल में 10 साल से चल रही 'सत्यनारायण कथा', अब नए सियासी संस्करण की बारी