न रासायनिक खाद न दवा फिर भी खेती चकाचक... झारखंड में नाबार्ड संग मिलकर इस तरीके को अपना रहे किसान; कमाई भरपूर
झारखंड में इन दिनों जैविक खेती को खूब बढ़ावा दिया जा रहा है। यहां किसान बिना रासायनिक खाद दवा के नाबार्ड के साथ मिलकर मिश्रित खेती कर रहे हैं। इससे धीरे-धीरे जैविक खेती का दायरा बढ़ रहा है। अभी इससे राज्य के 37 हजार किसान जुड़े हुए हैं। इससे खेत की उर्वरता बरकरार रहने के साथ ही कमाई भी अच्छी होती है।
संजय कृष्ण, रांची। देवलाल मुंडा मिश्रित खेती करते हैं। अपनी खेती का नाम दिया है-एटीएम। यानी एनी टाइम मनी। इसे नकदी फसल कह सकते हैं। वे रासायनिक खाद व दवा का इस्तेमाल नहीं करते। वह खाद खुद बनाते हैं। बीज भी वे बाजार से नहीं लेते। देसी बीजों का इस्तेमाल करते हैं। देवलाल कहते हैं, पहले जिस खेती के लिए दस हजार लगते थे, वह पांच सौ में हो जाती है। खेत की उर्वरता भी बरकरार रहती है। हर महीने सब्जी से पांच से दस हजार रुपये कमाई भी हो जाती है।
37,000 से अधिक आदिवासी परिवार लाभान्वित
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) 2003 से आदिवासी समुदायों के विकास के लिए आदिवासी विकास परियोजनाओं को कार्यान्वित कर रहा है। झारखंड के सभी 24 जिलों में नाबार्ड ने 59 परियोजनाओं के लिए 169.52 करोड़ के वित्तीय परिव्यय को मंजूरी दी।
इन परियोजनाओं ने राज्य के 37,000 से अधिक आदिवासी परिवारों को लाभान्वित किया है। उद्यान विकास, मुर्गी पालन, बकरी पालन, सुअर पालन, मछली पालन, लाख की खेती और सूक्ष्म उद्यम विकास गतिविधियों के माध्यम से आदिवासियों को आजीविका मुहैया करा रहा है।
देवलाल पतरातू में खेती कर रहे हैं। कहते हैं, पहले एक प्लाट में एक ही खेती करते थे। अब कई फसलें उगा लेते हैं। टमाटर, बैगन, आलू, गाजर, बीन, गोबी, मूली आदि जिसका जो सीजन होता है, लगा देते हैं। इसके लिए अतिरिक्त परिश्रम नहीं करना पड़ता है। इससे समय की भी बचत होती है। बाहर से कुछ लाना नहीं पड़ता है। पिछले छह माह से कर रहे हैं। नाबार्ड का भी सहयोग मिल रहा है।
नाबार्ड हर स्तर पर कर रहा किसानों की मदद
जैविक खेती में करीब-करीब 150 किसान जुड़ गए हैं। लोगों को अब समझ में भी आ रहा है। देसी बीज स्वस्थ भी होता है। गांव में मिल जाता है। वे अकेले नहीं हैं। चास बोकारो की शकुंतला हों या रामकुमार उरांव सब अपनी तकदीर बदलने में लगे हैं। नाबार्ड हर स्तर पर उनकी मदद कर रहा है।
कहां-कहां चल रही हैं योजनाएं
यही नहीं बगीचे के माध्यम से राज्य में 33,000 एकड़ को कवर किया गया है, जिससे किसान आम, अमरूद, नींबू, आंवला, काजू, कस्टर्ड सेब आदि की कई किस्मों की खेती कर रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में नाबार्ड ने टीडीएफ के तहत कई परियोजनाओं को मंजूरी दी है: लोहरदगा, बोकारो, खूंटी और सरायकेला-खरसावां जिलों में कुल मिलाकर 1500 एकड़ से अधिक क्षेत्र में आम और अमरूद के बगीचे का विकास किया गया है।
जनजातीय विकास निधि के तहत खूंटी व हजारीबाग जिले में लाह की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। किसानों को लाख की खेती के लिए सेमियालाटा (लाख होस्ट) पौधे की खेती, ब्रूड लाख टीकाकरण, प्राथमिक प्रसंस्करण और विपणन आदि की मदद की जा रही है।
रामगढ़ जिले के गोला ब्लाक में बागवानी के साथ संकर वाडी के साथ मसालों की खेती, मुर्गी पालन, बत्तख पालन, सुअर पालन, बकरी पालन, मछली पालन, सब्जियों के लिए नर्सरी तैयार करने सहित एकीकृत जनजातीय विकास परियोजना चलाई जा रही है।
आदिवासी समुदाय आजीविका के लिए मुख्य रूप से कृषि, वनों और पशुधन पर निर्भर है। आदिम कृषि पद्धतियों के कारण घटते वन संसाधनों ने कृषि और पशुधन उत्पादकता को खतरे में डाल दिया है, जल संसाधनों में कमी आई है और ईंधन और चारे की आपूर्ति कम हो गई है। इससे आदिवासियों की पारिवारिक आय काफी हद तक प्रभावित हुई है। नाबार्ड ने अपनी जनजातीय विकास परियोजनाओं के माध्यम से जनजातीय परिवारों को उनकी अपनी भूमि का उपयोग करके आय के अवसर प्रदान करके उनकी आजीविका में सुधार किया है। भूमिहीन परिवारों को भी आजीविका के अवसर उपलब्ध कराए जा रहे हैं- सुनील कृष्ण जहागीरदार, मुख्य महाप्रबंधक, नाबार्ड।
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