आजादी के बाद पहला गोलीकांड, जब पुलिस व आदिवासियों के बीच हुआ खूनी संघर्ष; कई हुए बलिदान... पर सरकारी आंकड़े अलग-अलग
आज ही के दिन 1948 में हुए खरसावां गोलीकांड में कई लोग बलिदान हुए थे। गैरसरकारी आंकड़ों के अनुसार सैकड़ों लोग मारे गए थे। हालांकि बिहार सरकार सौ बताती है और ओडिशा सरकार मात्र 40। पहली जनवरी 1948 को यह लोमहर्षक घटना घटी थी। इस कांड के अगले दिन यानी 2 जनवरी 1948 को पता चला कि खरसावां में कर्फ्यू लगा दिया गया है।
क्या था मामला?
आजादी के बाद देशी रियासतों का विलय हो रहा था। सरायकेला-खरसावां राज का भी विलय होना था। 14 दिसंबर 1947 को कटक में हुई बैठक में खरसावां राजा बिहार में विलय के पक्षधर थे। उन्होंने दो तर्क दिए थे। पहला, यह इलाका बिहार के सिंहभूम जिले का हिस्सा है और दूसरा, स्थानीय आदिवासी आबादी का बहुमत सिर्फ बिहार के साथ विलय को उत्सुक है।राजभवन में गोलियों की आवाज
दिन के लगभग तीन बजे राजभवन में ओडिशा मिलिट्री पुलिस घुस गई और राजपरिवार के सभी सदस्यों को नजरबंद कर दिया। करीब साढ़े तीन बजे गोलियों की आवाज राजभवन में सुनाई पड़ी। युवराज पूर्णेंदु नारायण सिंहदेव बाहर जाना चाहते थे पर उन्हें ओडिशा मिलिट्री पुलिस ने रोक दिया।अगले दिन यानी 2 जनवरी, 1948 को पता चला कि खरसावां में कर्फ्यू लगा दिया गया है और किसी को भी बाहर जाने की इजाजत नहीं है। बहुत आग्रह करने पर टिकैत प्रदीप चंद्र सिंहदेव जो दस साल के बालक थे, अपने ड्राइवर के साथ पोंटिएक गाड़ी में थाना परिसर तक गए एवं वहां अपने ड्राइवर इस्माइल के कहने पर कुछ फूल तोड़कर शहीदों के सम्मान में अर्पित किए।ये भी पढ़ें -Jharkhand Weather: कड़ाके की ठंड ने बरपाया कहर, सड़क और रेल यातायात तक प्रभावित; लोग घरों में दुबकने को मजबूरTrain Late: ठंड की जकड़न में ट्रेनों के पहिए, राजधानी समेत दर्जनों की रफ्तार धीमी; देखिए लिस्टखरसावां गोलीकांड में मेरे पिता मांगू सोय घायल हो गए थे। उनके पैर व हाथ में गोली लगी थी। उस समय उनकी उम्र 22 साल थी। 2018 में उनका निधन हुआ। वे इस घटना के बारे में बताया करते थे। झारखंड आंदोलन से प्रभावित होकर वे आदिवासी महासभा से से जुड़ गए थे। सरायकेला-खरसावां के विलय के सवाल को लेकर विशाल रैली थी। पिताजी भी खरसावां के हाट मैदान में जुटे थे। रैली को जयपाल सिंह संबोधित करने वाले थे, लेकिन वे नहीं आ सके। भीड़ अपने राजा से मिलना चाहती थी। जयपाल सिंह का जयकार लगाते हुए अपने पारंपरिक हथियारों के साथ आगे बढ़ रही थी कि अचानक गोलीबारी शुरू हो गई। पिताजी बताते हैं सैकड़ों लोग मारे गए। हाट मैदान में एक कुआं था, जो लाशों से पट गया था। - शंकर सोय, हेसा, सरायकेला।