जिसकी वजह से उन्हें अलग राह चुनने को विवश होना पड़ा है। इससे यह भी स्पष्ट हो गया है कि मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के दौरान उन्होंने गहरी नाराजगी प्रकट की थी। वे उस वक्त बुलाए गए सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों की बैठक में जाने को भी तैयार नहीं थे।
चंपई सोरेन की अलग राजनीतिक पारी होगी आरंभ
बैठक के दौरान उन्हें अपमानजनक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था। उन्होंने वह तमाम विकल्प भी बताए, जो उनके सामने थे। चंपई सोरेन ने यह भी कहा है कि पार्टी के किसी सदस्य को शामिल करने या संगठन को किसी प्रकार की क्षति पहुंचाने का उनका इरादा नहीं है।ऐसा करने की वे सोच भी नहीं सकते। लिखित वक्तव्य का समापन करते हुए उन्होंने उल्लेख किया है - हालात ऐसे बना दिए गए हैं कि...। आधिकारिक वक्तव्य में उन्होंने किसी का नाम लेकर आक्षेप लगाने से भी परहेज किया है। चंपई सोरेन की स्वीकारोक्ति से यह तय हो गया है कि उनकी अगली राजनीतिक पारी भाजपा में आरंभ होगी।
नई दिल्ली में इससे संबंधित औपचारिकताएं जल्द पूरी की जाएगी। यह भी कयास लगाया जा रहा है कि कुछ विधायक उनके साथ जा सकते हैं। हालांकि, रविवार को जिन विधायकों के नाम गिनाए गए, वे सभी राज्य में हैं। विधायक रामदास सोरेन, चमरा लिंडा, दशरथ गगराई, समीर मोहंती ने स्पष्ट कहा कि वे किसी कीमत पर दल छोड़कर नहीं जाएंगे।
मैंने हमेशा जनसरोकार की राजनीति की
ऐसा क्या हुआ, जिसने गरीब किसान के बेटे को इस मोड़ पर लाकर खड़ा किया। चंपई सोरेन ने इसी पंक्ति से अपने आधिकारिक वक्तव्य की शुरूआत की है। आज समाचार देखने के बाद आप सभी के मन में कई सवाल उमड़ रहे होंगे।
आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसने कोल्हान के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक गरीब किसान के बेटे को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। सार्वजनिक जीवन की शुरुआत में औद्योगिक घरानों के खिलाफ मजदूरों की आवाज उठाने से लेकर झारखंड आंदोलन तक मैंने हमेशा जनसरोकार की राजनीति की है।
12वें मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की सेवा करने के लिए चुना
किसी भी पद पर रहा अथवा नहीं, लेकिन हर पल जनता के लिए उपलब्ध रहा। उन लोगों के मुद्दे उठाता रहा, जिन्होंने झारखंड राज्य के साथ,अपने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे। इसी बीच, 31 जनवरी को एक अभूतपूर्व घटनाक्रम के बाद इंडिया गठबंधन ने मुझे झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की सेवा करने के लिए चुना।
अपने कार्यकाल के पहले दिन से लेकर आखिरी दिन (तीन जुलाई) तक मैंने पूरी निष्ठा एवं समर्पण के साथ राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। इस दौरान हमने जनहित में कई फैसले लिए और हमेशा की तरह हर किसी के लिए सदैव उपलब्ध रहा। अपने कार्यकाल के दौरान मैंने कभी भी, किसी के साथ ना गलत किया, ना होने दिया।
स्थगित करा दिए मेरे कार्यक्रम
मना किया गया जाने से बकौल चंपई सोरेन हूल दिवस के अगले दिन मुझे पता चला कि मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है। एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का था।
पूछने पर पता चला कि गठबंधन द्वारा तीन जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है, तब तक आप सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते। क्या लोकतंत्र में इससे अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद करवा दे? अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद मैंने कहा कि नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है, जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी तो वहां से होते हुए मैं उसमें शामिल हो जाऊंगा। लेकिन, उधर से साफ इन्कार कर दिया गया।
मैं पहली बार भीतर से टूट गया
आत्मसम्मान को ठेस लगी चंपई सोरेन के मुताबिक, पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनैतिक सफर में मैं पहली बार भीतर से टूट गया। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। दो दिन तक चुपचाप बैठकर आत्ममंथन करता रहा। पूरे घटनाक्रम में अपनी गलती तलाशता रहा।सत्ता का लोभ रत्ती भर भी नहीं था, लेकिन आत्मसम्मान पर लगी इस चोट को मैं किसे दिखाता? अपनों द्वारा दिए गए दर्द को कहां जाहिर करता? जब वर्षों से पार्टी के केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक नहीं हो रही है और एकतरफा आदेश पारित किए जाते हैं तो फिर किसके पास जाकर अपनी तकलीफ बताता?
इस पार्टी में मेरी गिनती वरिष्ठ सदस्यों में होती है, बाकी लोग जूनियर हैं और मुझ से सीनियर सुप्रीमो जो हैं, वे अब स्वास्थ्य की वजह से राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, फिर मेरे पास क्या विकल्प था? अगर वे सक्रिय होते, तो शायद अलग हालात होते।
'मैं आंसूओं को संभालने में लगा था'
चंपई सोरेन कहते हैं कि कहने को तो विधायक दल की बैठक बुलाने का अधिकार मुख्यमंत्री का होता है, लेकिन मुझे बैठक का एजेंडा तक नहीं बताया गया था। बैठक के दौरान मुझसे इस्तीफा मांगा गया। मैं आश्चर्यचकित था, लेकिन मुझे सत्ता का मोह नहीं था, इसलिए मैंने तुरंत इस्तीफा दे दिया।
लेकिन आत्मसम्मान पर लगी चोट से दिल भावुक था। पिछले तीन दिनों से हो रहे अपमानजनक व्यवहार से भावुक होकर मैं आंसुओं को संभालने में लगा था, लेकिन उन्हें सिर्फ कुर्सी से मतलब था।मुझे ऐसा लगा, मानो उस पार्टी में मेरा कोई वजूद ही नहीं है, कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिस पार्टी के लिए हम ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। इस बीच कई ऐसी अपमानजनक घटनाएं हुईं, जिसका जिक्र फिलहाल नहीं करना चाहता। इतने अपमान एवं तिरस्कार के बाद मैं वैकल्पिक राह तलाशने हेतु मजबूर हो गया।
यह मेरा निजी संघर्ष
सभी विकल्प खुले हैं चंपई सोरेन ने यह भी स्पष्ट किया है कि किसी विधायक पर उनका दबाव नहीं है। सोरेन के मुताबिक - मैंने भारी मन से विधायक दल की उसी बैठक में कहा कि आज से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है। इसमें मेरे पास तीन विकल्प थे।पहला राजनीति से सन्यास लेना, दूसरा अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा इस राह में अगर कोई साथी मिले तो उसके साथ आगे का सफर तय करना। उस दिन से लेकर आज तक तथा आगामी झारखंड विधानसभा चुनावों तक इस सफर में मेरे लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं।
यह मेरा निजी संघर्ष है इसमें पार्टी के किसी सदस्य को शामिल करने अथवा संगठन को किसी प्रकार की क्षति पहुंचाने का मेरा कोई इरादा नहीं है। जिस पार्टी को हमने अपने खून-पसीने से सींचा है, उसका नुकसान करने के बारे में तो कभी सोच भी नहीं सकते। लेकिन, हालात ऐसे बना दिए गए हैं कि...
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