Move to Jagran APP

Jharkhand Trible Pride: गया मुंडा ने अंग्रेजों को दी थी टक्कर, धरती आबा बिरसा मुंडा के थे सेनापति

Jharkhand Trible Pride गया मुंडा ने बिरसा मुंडा के आंदोलन को कैसे धार दिया था इसका पता कुमार सुरेश सिंह की पुस्तक बिरसा मुंडा और उनका आंदोलन से चलता है। कुमार सुरेश सिंह भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहे। एंथ्रोपॉलिजकल सर्वे आफ इंडिया के महानिदेशक भी रहे।

By Kanchan SinghEdited By: Updated: Wed, 17 Nov 2021 10:01 AM (IST)
Jharkhand Trible Pride: गया मुंडा ने अंग्रेजों को दी थी टक्कर, धरती आबा बिरसा मुंडा के थे सेनापति
धरती आबा बिरसा मुंडा के सेनापति गया मुंडा ने अंग्रेजों को टक्कर दी थी।

रांची, जासं।  सरदार गया मुंडा, बिरसा मुंडा के अनुयायी। उन्हें बिरसा मुंडा का सेनापति भी कहा जाता है। जिस अदम्य साहस और निर्भीकता के साथ गया मुंडा ने अंग्रेजों को टक्कर दी थी, उसकी गूंज अभी भी सुनाई पड़ती है। गया मुंडा खूंटी के ऐटकेडीह के रहनेवाले थे। रांची से खूंटी होते हुए सैको पहुंचने पर सबसे पहले किताहातु में पत्थर पर उकेरा हुआ गया मुंडा का नाम दिखता है।  सरदार गया मुंडा शहीद चौक किताहातु। दिसुम नगेन दड़ेन जन उडु:नम दिरी। इस चौक से आगे रूगड़ी होते हुए ऐटकेडीह जब पहुंचेंगे तो सबसे पहले गया मुंडा की प्रतिमा दिखाई देगी। एक हाथ में कुल्हाड़ी और दूसरे हाथ में तीर धनुष। प्रतिमा देखते ही उस ओज का पता चलता है जो कभी इस इलाके में बिरसा मुंडा के इस सेनापति ने दिखाया था।

गया मुंडा ने बिरसा मुंडा के आंदोलन को कैसे धार दिया था, इसका पता कुमार सुरेश सिंह की पुस्तक बिरसा मुंडा और उनका आंदोलन से चलता है। कुमार सुरेश सिंह भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहे। एंथ्रोपॉलिजकल सर्वे आफ इंडिया के महानिदेशक भी रहे। कुमार सुरेश सिंह ने बताया है कि कैसे सरदार गया मुंडा ने अंग्रजों को चुनौती दी थी। 1899-1900 में जब उलगुलान अपने चरम पर था, तब गया मुंडा कैसे विद्रोहियों की बैठक करते थे। एक तरफ अंग्रेज पोरहाट के जंगलों में बिरसा की तलाश कर रहे थे, दूसरी ओर गया मुंडा अलग-अलग इलाकों में विद्रोहियों की बैठकें करते और पुलिस पर हमले की योजना बनाते। कुमार सुरेश सिंह बताते हैं कि 5 जनवरी 1900 को विद्रोहियों की बैठक ऐटकेडीह में बुलाई गई थी। बैठक गया मुंडा के घर पर होनी थी। इसकी सारी तैयारी कर ली गई। पुलिस को भी इसकी भनक थी।

जब बैठक हो रही थी, तब पुलिस ने उन्हें तजना नदी के पास घेरना चाहा। इस पर गया मुंडा और उनके सहयोगियों ने हमला किया। इसमें एक कांस्टेबल बुरी तरह घायल हुआ जिसकी बाद में मौत हो गई। अंग्रेजों की पूरी टीम को भागना पड़ा। बाद में जब गया मुंडा और उनके सहयोगी घर लौटे तो उनका फूल-माला पहनाकर गांव वालों ने स्वागत किया। इसके ठीक अगले दिन तब के डिप्टी कमिश्नर स्ट्रीटफील्ड से गया मुंडा की मुठभेड़ हो गई। स्ट्रीटफील्ड ने इसे विस्तार से बताया है कि कैसे गया मुंडा और उसके परिवार के लोग कुल्हाड़ी और तलवार से लैश थे। उन्हें काबू में करने के लिए कोई तरकीब काम नहीं कर रही थी। गया मुंडा के घर में आग लगा दी गई। जब गया मुंडा बाहर निकले तो स्ट्रीटफील्ड ने उन्हें गोली मार दी। गोली कंधे में लगी। गया मुंडा के वंशज रमय मुंडा कहते हैं घायल अवस्था में ही पुलिस गया मुंडा को ले गई। कहा जाता है कि उन्हें कालापानी भेज दिया गया, जहां उनकी मौत हो गई।

गया मुंडा के वंशज रमय मुंडा अभी ऐटकेडीह में ही रहते हैं। गया मुंडा के वंशज का एक और घर यहां है। रमय अधेड़ उम्र के हैं। कहते हैं कई पीढ़ियां गुजर गईं, पर जो गौरव गया मुंडा ने स्थापित किया उससे उनका सीना गर्व से फूल उठता है। रमय कहते हैं वह खेतीबाड़ी करते हैं। धान, मड़ुआ आदि की खेती करते हैं। पर इससे घर नहीं चल पाता। दिहाड़ी के लिए बाहर जाना पड़ता है। रमय बताते हैं कि पहले अस्पताल की गाड़ी चलाता था। अब वो भी छूट गई। उनके चार बच्चे हैं। बच्चे पढ़ रहे हैं। उसे आवास आवंटन हुआ है। एक लाख 30 हजार मिला है। उसी से एस्बेस्टस वाला मकान बना है। पर पक्का आवास नहीं है।

स्मारक की देखरेख करना वाला कोई नहीं : गया मुंडा के सम्मान में एक स्मारक का निर्माण किया गया है। पर इसकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है। पास में ही एक सामुदायिक भवन बनाया गया था। कुछ समय पहले इसके हिस्से को नक्सलियों ने उड़ा दिया था। रमय मुंडा कहते हैं सामुदायिक भवन में ताला लटका है। इसकी चाबी भी पुलिस वालों के पास है।

गांव में है सुविधाओं की कमी : ऐटकेडीह में सुविधाओं की कमी साफ दिखती है। पीने के पानी की किल्लत है। पीएम आवास योजना का लाभ भी सबको नहीं मिल सका है। आयुष्मान कार्ड का लाभ लोगों को मिल रहा है। गांव में स्वास्थ्य सुविधाओं की भी कमी है।