नौकरियों की बहार ला रहे CM हेमंत सोरेन... अफसर करा रहे किरकिरी... Jharkhand Assembly
Hemant Soren Jharkhand Assembly झारखंड विधानसभा में कई बार सरकार के सवालों के जवाब इतने उलझाने वाले होते हैं कि वह या तो मूल विषय से भटक जाते हैं या सवालों पर ही सवाल उठा नई पेचीदगी पैदा कर देते हैं। इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता।
रांची, राज्य ब्यूरो। Hemant Soren, Jharkhand Assembly झारखंड विधानसभा में गतिरोध की स्थिति समाप्त होने के बाद अब सामान्य कामकाज हो रहा है और जनहित से जुड़े विषयों पर सार्थक चर्चा हो रही है। राज्य की सबसे बड़ी पंचायत से ऐसे ही कामकाज की अपेक्षा की भी जाती है। सार्थक विषयों को उठाना और उसे समाधान के मुकाम तक पहुंचाने की अपेक्षा हम अपने जनप्रतिनिधियों से करते भी हैं। हालांकि कई बार सरकार के सवालों के जवाब इतने उलझाने वाले होते हैं कि वह या तो मूल विषय से भटक जाते हैं या सवालों पर ही सवाल उठा नई पेचीदगी पैदा कर देते हैं। इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता।
झारखंड विधानसभा में कामकाज के दौरान अक्सर ऐसी स्थिति देखी जा रही है कि सदन में आने वाले जवाब राज्य सरकार की किरकिरी करा दे रहे हैं। कहीं न कहीं इसके लिए अफसरों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। कुछ शब्दों को आधार बना सरकारी अफसर ऐसे जवाब देते हैं कि उनका देना न देना बराबर है। मंशा जवाब देने की कम, टालने की अधिक दिखती है।
इसका असर यह देखा जाता है कि सदन में अक्सर मंत्री सवालों के जवाब में उलझे नजर आते हैं। मजे हुए मंत्री तो अपने राजनीतिक कौशल का सहारा ले किसी तरह निकल जाते हैं लेकिन सभी मंत्रियों के लिए ऐसा संभव नहीं है। अक्सर ऐसा देखा जा रहा है कि नेता सदन या संसदीय कार्यमंत्री को उठकर स्थितियों को संभालना पड़ता है। यदि स्पष्ट और सटीक जवाब दिए जाएं तो सरकार के समक्ष ऐसी असहज स्थिति नहीं आएगी।
सरकार को सवालों में घेरेन का विपक्ष का राजनीतिक एजेंडा कुछ हद तक हो सकता है लेकिन जब सत्ता पक्ष के सदस्य ही अफसरों के जवाब पर सवाल उठाएं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि कमी सिस्टम में ही है। अब सदन चल रहा है तो ऐसी तमाम विसंगतियां सामने आ रहीं है। जवाबों से खिन्न वरिष्ठ सदस्य विशेषाधिकार के तहत सूचना दे रहे हैं।
सवालों का जवाब ऐसा होना चाहिए कि उस पर पूरक प्रश्न पूछने की स्थिति ही न पैदा हो और सदस्य ये कहें कि वे जवाब से संतुष्ट हैं। ऐसा नहीं कि सभी महकमों का जवाब टालने वाला होता है, लेकिन हम अधिकतर को इस श्रेणी में रख सकते हैं। विशेषकर कार्य विभागों के जवाब में ऐसी विसंगतियां कुछ ज्यादा ही सामने आ रहीं हैं। राज्य सरकार को इसे गंभीरता से लेना होगा।