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Jharkhand Unique: झारखंड में पांचवी सदी का सनातनी शहर, ऐसी दिखती थी हनुमान जी की प्रतिमा

Jharkhand Unique City पांचवी सदी का सनातनी शहर कैसा रहा होगा यह देखना है तो चले आइए झारखंड। पश्चिम सिंहभूम के बेनीसागर में कई अवशेष देखने को मिल जाएंगे। यहां हनुमान जी की प्रतिमा के नीचे निर्वस्त्र महिलाओं की मूर्तियां अब भी अध्ययन का विषय हैं।

By M EkhlaqueEdited By: Updated: Wed, 14 Sep 2022 02:52 PM (IST)
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History of Jharkhand: बेनीसागर में खोदाई के दौरान मिली प्राचीन प्रतिमाएं।
चाईबासा, {मो. तकी}। Sanatan City in 16th Century झारखंड के कोल्हान प्रमंडल का एक जिला है- पश्चिमी सिंहभूम। इसका जिला मुख्यालय है- चाईबासा। इस जिला मुख्यालय से करीब 80 किलोमीटर दूर है- मझगांव प्रखंड का बेनीसागर। यह गांव अपने दामन में अब भी कई अनसुलझे रहस्यों को समेटे हुए है। इस रहस्य को सुलझाने का काम वर्षों से जारी है। शोधकर्ता और वैज्ञानिक इस काम में जुटे हैं। एक से बढ़कर एक नायाब चीजें यहां मिल रही हैं। अब तक मिले साक्ष्यों के आधार पर यह पुष्टि हो चुकी है कि यह पांचवीं से 16वीं शताब्दी में एक सनातनी शहर रहा होगा। यहां हनमुमान जी की विचित्र प्रतिमा भी मिली है।

बेनीसागर का इतिहास लगभग 500 साल पुराना

भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग झारखंड अलग राज्य गठन के बाद से यहां के इतिहास को तलाशने के लिए लगातार अनुसंधान कर रहा है। यह अनुसंधान सनातनी सभ्यता-संस्कृति को सहेजने के साथ अगली पीढ़ी के लिए धरोहर भी होगा। बेनीसागर का इतिहास लगभग 500 साल पुराना है। यहां प्राचीन भव्य धार्मिक स्थल भी पाया गया है। पुरातात्विक अवशेषों के आधार पर माना जा रहा कि यह स्थान 5वीं से 16वीं शताब्दी तक गुलजार रहा होगा।इस स्थान का नाम राजा बेनु के नाम पर रखा गया है। उन्होंने यहां प्रजा के लिए भव्य तालाब का निर्माण कराया था।

कर्नल टिक्केल ने किताब में भी इसका जिक्र

1840 में अपने भ्रमण के बाद कर्नल टिक्केल ने अपनी किताब में इसका जिक्र किया था। पुरातात्विक सर्वेक्षण के पूर्व यहां बेगलर नामक एक व्यक्ति को 1875 में पहली बार कुछ मूर्तियां मिली थीं। इसके बाद भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने जब खोदाई की तो यहां दो पंचायतन मंदिर परिसर व कुछ मूर्तियां मिलीं। यहां कई ग्रामीणों को उस समय प्रचलित मुद्राएं भी मिल चुकी हैं। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के अनुसंधान के दौरान सर्वप्रथम बेनीसागर से पत्थर पर उत्कीर्ण अभिलेख मिले थे, जो ब्राह्मिणी-संस्कृति से मेल खाते हैं।

प्राचीन प्रतिमाओं का यहां कर सकते दर्शन

पुरालिपिक विशेषज्ञों ने जब इन पत्थरों का अध्ययन किया तो पता चला कि बेनीसागर 5वीं से 16वीं शताब्दी तक आध्ययात्मिक क्षेत्र के रूप में बसा था। यहां वर्ष 2003 से लगातार वैज्ञानिकों की टीम शोध व उत्खनन कार्य कर रही है। खाेदाई के दौरान अब तक यहां कई देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्त्तियां मिल चुकी हैं। इनमें शिवलिंग, भैरव, सूर्या, गौतम बुद्ध, गणेश, अकुलिशा आदि प्रमुख हैं।

हनुमान जी की ऐसी प्रतिमा नहीं देखी होगी

खोदाई में मिली सबसे चौंकाने वाली चीज हनुमान जी की प्रतिमा है। यह प्रतिमा विशाल है। हनुमान जी ब्रह्मचारी माने जाते हैं, लेकिन यहां जो प्रतिमा है वह कुछ अलग है। हनुमान जी के पैरों के नीचे निर्वस्त्र महिलाओं की मुर्तियां दिखाई गई हैं। हनुमान जी की ऐसी प्रतिमा अबतक कहीं नहीं देखी गई है। अब इसके क्या मायने हो सकते हैं, यह अध्ययन का विषय हो सकता है। धार्मिक ग्रंथों में इस तरह का कहीं उल्लेख है या नहीं, यह धर्म विशेषज्ञ ही बेहतर बता सकते हैं।

पचास एकड़ में मंदिर परिसर के मिले अवशेष

भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने जब खोदाई की तो यहां मूर्तियों के अलावा मिट्टी के पेराकोट, मुद्राएं, मैथुन शिल्प आदि के साक्ष्य भी मिले हैं। इन साक्ष्यों को बेनीसागर में बने एक म्यूजियम में संग्रह‍ित कर रखा गया है। इस म्यूजियम से कुछ दूरी पर पुरानी सभ्‍यता से जुड़ी इमारतों के कुछ अवशेष भी देखने को मिल जाएंगे। इनकी वक्र बनावट को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि पुराने समय का स्नान गृह हो। इसके अलावा यहां 50 एकड़ क्षेत्र में फैले मंदिर परिसर के अवशेष भी मिले हैं।

यहां विशाल तालाब किसी ने सूखते नहीं देखा

इतना ही नहीं बेनीसागर तालाब करीब 350 मीटर लंबा और 300 मीटर चौड़ा है। तालाब के चारों ओर कमल के फूल अब भी इसकी शोभा बढ़ाते नजर आएंगे। ग्रामीण बताते हैं कि यह तालाब कभी सूखा नहीं। जबकि क्षेत्र के अन्य तालाब गर्मियों में अक्सर सूख जाया करते हैं। शोधकर्ताओं के लिए यह तालाब भी अध्ययन का विषय बना हुआ है। प्रशासन की ओर से तालाब के चारों तरफ पर्यटकों की सुविधा के लिए व्यू पाइंट बनाया जा रहा है, जहां बैठकर पर्यटक प्रकृति के सौंदर्य का लुत्‍फ प्राप्त कर सकते हैं। विशाल तालाब के मध्य में मंदिर के आकार का अवशेष भी मिला है। ऐसा माना जाता है कि राजा और उनका परिवार तालाब के मध्य पहुंचकर पूजा अर्चना किया करते थे।

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