1929 से रांची में निकल रहा रामनवमी का जुलूस
रांची में रामनवमी शोभायात्रा निकालने का गौरवशाली इतिहास रहा है। 1929 से लगातार यह सिलसिला बना हुआ। इसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं।
By JagranEdited By: Updated: Sun, 25 Mar 2018 01:38 AM (IST)
रांची : भगवान श्रीराम अयोध्या में प्रकट हुए थे, लेकिन रामनवमी पर रांची में ऐसी भव्य, नयनाभिराम शोभायात्रा निकाली जाती है कि लाखों लोग उसे देखने रांची के मुख्य मार्गो पर उमड़ पड़ते हैं। ऐसी शोभायात्रा दूसरे प्रदेशों में नहीं निकलतीं। हर हाथ में महावीरी झंडा, तलवार, शस्त्र..प्रदर्शन और उद्घोष करते रामभक्त..हनुमान सेवक..।
रामनवमी पर पूरा झारखंड महावीरी झंडों से पट जाता है। रांची की सभी सड़कों के किनारे शान से महावीरी झंडे लहरा रहे हैं। रविवार को रामनवमी है। डेढ़ बजे जुलूस की शुरुआत होगी और इसके बाद संध्या रात दस बजे तक चलता रहेगा। हर हाथ में पताका, तलवार और कटार होंगे। शक्ति का प्रदर्शन होगा। प्रभु राम का जयकारा लगेगा। रोचक और गौरवशाली रहा है इतिहास रामनवमी का इतिहास गौरवशाली और रोचक रहा है। प्रसिद्ध साहित्यकार और 'रांची : तब और अब' के लेखक श्रवणकुमार गोस्वामी कहते हैं, 1929 में पहली बार रामनवमी के अवसर पर एक छोटा सा जुलूस निकला था। इस जुलूस में केवल दो महावीरी झंडे थे। इस शोभायात्रा को संभव बनाने वाले व्यक्तियों में कृष्णलाल साहू, रामपदारथ वर्मा, राम बड़ाइक राम, नन्हकू राम, जगदीश नारायण शर्मा, लक्ष्मण राम मोची, जगन्नाथ साहू, गुलाब नारायण तिवारी आदि प्रमुख थे। 1930 में जो शोभायात्रा निकाली गई, उसमें महावीरी झंडों की संख्या बढ़ गई। उस साल शोभायात्रा रातू रोड स्थित ग्वाला टोली से नन्हू भगत के नेतृत्व में निकाली गई थी। हर वर्ष शोभायात्रा में झंडों की संख्या में वृद्धि होती चली गई और लोग उत्साह के साथ इसमें सम्मिलित होने लगे। इस आयोजन को व्यवस्थित रूप प्रदान करने के लिए पांच अप्रैल 1935 को एक बैठक संतुलाल पुस्तकालय, अपर बाजार में की गई। बैठक में महावीर मंडल का गठन किया गया। इसके प्रथम अध्यक्ष महंत ज्ञान प्रकाश उर्फ नागा बाबा तथा महामंत्री डा. रामकृष्ण लाल बनाए गए। तब से रामनवमी के अवसर पर यह शोभायात्रा, 1964 को छोड़कर, नियमित रूप से निकाली जा रही है। 17 अप्रैल को निकली पहली शोभायात्रा रांची में पहली रामनवमी की शोभायात्रा 17 अप्रैल, 1929 को निकली थी। यहा रामनवमी की शुरुआत हजारीबाग के रामनवमी जुलूस को देखकर की गई थी। हजारीबाग में रामनवमी जुलूस गुरु सहाय ठाकुर ने 1925 में वहा के कुम्हार टोली से प्रारंभ की थी। राची के श्रीकृष्ण लाल साहू की शादी हजारीबाग में हुई थी। 1927 में रामनवमी के समय वे अपने ससुराल में थे और वहा का रामनवमी जुलूस देखा। राची आकर अपने मित्र जगन्नाथ साहू सहित अन्य मित्रों को वहा की रामनवमी के बारे में बताया। इसके बाद मित्रों में उत्सुकता जगी और 1928 में वहा की रामनवमी को देखने लोग हजारीबाग गए और इसके बाद 1929 में राची में इसकी शुरुआत कर दी। रातू रोड से निकलती थी
शुरुआती सालों में मुख्य शोभायात्रा रातू रोड से निकाली जाती थी, जो धीरे-धीरे बढ़ते हुए मेन रोड पहुंचती थी। इसमें अपर बाजार, भुतहा तालाब, मोरहाबादी, कांके रोड, बरियातू रोड, चडरी, लालपुर, चर्च रोड, मल्लाह टोली, चुटिया, ¨हदपीढ़ी आदि अखाड़ों के झंडे भी सम्मिलित होने लग गए। रतन टाकीज तक पहुंचते-पहुंचते शोभायात्रा अत्यंत विशाल रूप ग्रहण कर लेती थी। सभी अखाड़ों के झंडे निवारणपुर स्थित तपोवन मंदिर के सामने वाले मैदान में पहुंचते थे। आज भी यहीं पहुंचते हैं और यहीं इसका समापन या विसर्जन होता है। आज करीब पंद्रह सौ से ऊपर अखाड़े हैं। अब पंडरा शोभायात्रा का प्रस्थान बिंदु बन गया है। यहां से सबसे पहले शोभायात्रा निकलती है। अपर बाजार के श्री महावीर चौक स्थित महावीर मंदिर पहुंचती है। यहां पूजन होता है। 1929 के पहले झंडे का भी यहां पूजन होता है। इसके बाद यहां से शोभायात्रा आगे बढ़ती है। लगता है मेला
पूरे शहर से निकली शोभायात्रा तपोवन मंदिर पहुंचती है। अलबर्ट एक्का चौक पर भी अखाड़ों द्वारा विशाल झंडों का प्रदर्शन किया जाता है। इसके बाद तपोवन मंदिर मैदान में विशाल झंडों को खड़ा किया जाता है। पहले मैदान बड़ा था। अब छोटा हो गया। इस छोटे से मैदान में झंडों की कतार लग जाती है। एक छोटा सा मेला भी लग जाता है। मंदिर में भगवान का दर्शन-पूजन झंडाधारी करते हैं। इसके बाद यहां से वापसी।
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