आदिवासी बहुल क्षेत्रों में खुलेंगे 750 नए एकलव्य विद्यालय, झारखंड के बच्चों को भी मिलेगा लाभ
Eklavya Model Residential School जिन इलाकों में जनजातीय आबादी 50 फीसद से अधिक है वहां आवासीय स्कूल खुलेंगे। एकलव्य विद्यालय छात्रों शिक्षकों के लिए सभी सुविधाओं से लैस होंगे। प्रति विद्यालय की लागत 20 करोड़ से बढ़ाकर 38 करोड़ रुपये की गई।
By Sujeet Kumar SumanEdited By: Updated: Mon, 01 Feb 2021 06:27 PM (IST)
रांची, राज्य ब्यूरो। India Education Budget केंद्रीय बजट में आदिवासी बहुल क्षेत्रों में 750 नए एकलव्य विद्यालय खोले जाने की घोषणा की गई है। ये सभी विद्यालय वर्ष 2022 तक खोले जाएंगे। निश्चित रूप से इनमें से बड़ी संख्या में स्कूल झारखंड को भी मिलेंगे। इससे जनजातीय बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पास के विद्यालयों में ही उपलब्ध हो सकेगी। बजट में एकलव्य विद्यालयों की लागत अब 20 करोड़ से से बढ़ाकर 38 करोड़ रुपये कर दी गई है। पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों में यह लागत प्रति विद्यालय 48 करोड़ रुपये कर दी गई है।
अनुसूचित जनजाति के बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने के लिए एकलव्य विद्यालयों की स्थापना की जा रही है। देश में जनजातीय जनसंख्या के बच्चों के लिए उनके अपने परिवेश में गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों की वर्ष 1998-99 से स्थापना की जा रही है। जिन इलाकों में जनजातीय आबादी 50 फीसदी (कम से कम 20,000) से अधिक हैं, वहां वर्ष 2022 तक एक एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है।
इन विद्यालयों में छात्रावासों और स्टाफ क्वार्टरों सहित खेल के मैदान, छात्रों के लिए कंप्यूटर लैब, शिक्षकों के लिए संसाधन कक्ष आदि का भी प्रावधान किया गया है। देश में 288 ऐसे विद्यालय पहले से संचालित हैं, जबकि 452 नए स्वीकृत हुए हैं। पहले से संचालित विद्यालयों में लगभग 73 हजार बच्चे नामांकित हैं। झारखंड में सात एकलव्य विद्यालय पहले से संचालित हैं। पिछले साल यहां खुले 13 नए एकलव्य विद्यालयों में नामांकन के लिए प्रवेश परीक्षा ले ली गई थी, लेकिन कोरोना के कारण विद्यालय में कक्षाएं शुरू नहीं हो सकीं।
जहां ये विद्यालय खोले गए हैं, उनमें पाकुड़ के लिट्टीपाड़ा, दुमका के काठीकुंड, खूंटी के कर्रा, सिमडेगा के गरजा, लातेहार के नेगाई, गिरिडीह के पीरटांड़, जामताड़ा के फतेहपुर, पलामू के मनातू, पूर्वी सिंहभूम के बहरागोड़ा, सरायकेला-खरसावां के नीमडीह, चतरा के कान्हाचट्टी, पश्चिमी सिंहभूम के कुमारडुंगी और गुदरी शामिल हैं। इन स्कूलों में छठी, सातवीं और आठवीं कक्षा में नामांकन होना था। अनुसूचित जनजाति अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक व पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग अब नए सत्र से इन स्कूलों को खोलने की तैयारी कर रहा है।
एकलव्य विद्यालयों के बच्चे पहनेंगे खादी के पोशाक, निफ्ट ने तैयार की है डिजाइनझारखंड सहित पूरे देश के एकलव्य विद्यालयों के बच्चे खादी से बने पोशाक पहनेंगे। इसे लेकर जनजातीय मामलों के मंत्रालय और एमएसएमई मंत्रालय के बीच एमओयू हुआ है। जनजातीय कार्य मंत्रालय बच्चों की पोशाक के लिए वर्ष 2020-21 में 14.77 करोड़ रुपये मूल्य के 6 लाख मीटर से अधिक खादी का कपड़ा खरीदेगा। जैसे-जैसे हर साल एकलव्य विद्यालयों की संख्या में बढ़ोतरी होगी, उसी अनुपात में खादी के कपड़े की खरीदारी भी बढ़ेगी। एकलव्य विद्यालय के बच्चों की पाेशाक की डिजाइन निफ्ट, दिल्ली द्वारा तैयार की गई है।
'बजट में 750 एकलव्य विद्यालयों की स्थापना तथा लागत खर्च बढ़ाने की स्वीकृति आदिवासी बच्चों की शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन लाएगा। यह बजट अबतक का सर्वश्रेष्ठ बजट है, जिसमें सभी क्षेत्रों के गुणात्मक विकास को ध्यान मेें रखा गया है। आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्याें की प्राप्ति के साथ-साथ गांवों तक सबको बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिले, इसके लिए बजट में प्रावधान किए गए हैं।' -अर्जुन मुंडा, केंद्रीय मंत्री, जनजातीय मामले।
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