Jagannath Temple Ranchi: 328 साल पुराना है रांची का जगन्नाथ मंदिर, दर्शन के लिए भक्तों की उमड़ती है भीड़
Jagannath Temple Ranchi पुरी मंदिर की तर्ज पर अलबर्ट एक्का चौक से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जगन्नाथ मंदिर 328वां स्थापना दिवस मना रहा है।
खास बातें
- 1691 में राजा एनी नाथ शाहदेव ने मंदिर का निर्माण कराया था
- 328 साल का हुआ जगन्नाथ मंदिर
- 1979 में मंदिर को ट्रस्ट बना दिया गया
- राजा साहब ने सभी धर्म के लोगों को मंदिर की व्यवस्था से जोड़ा था
- कभी मंदिर की पहरेदारी में तैनात रहते थे मुस्लिम युवक
रांची, [जागरण स्पेशल]। Jagannath Temple Ranchi प्रकृति ने झारखंड पर दोनों हाथों से सौंदर्य लुटाया है। झारखंड की पहचान प्राकृतिक संसाधनों तक ही सीमित नहीं है। देवघर में बाबा धाम, रांची जगन्नाथ मंदिर, रामगढ़ में छिन्नमस्तिका मंदिर देश-दुनिया के लोगों के लिए आस्था के प्रमुख केंद्र हैं। ईश्वर के दर पर हाजिरी लगाने लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। इसी में से एक है रांची का जगन्नाथ मंदिर। पुरी मंदिर की तर्ज पर अलबर्ट एक्का चौक से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जगन्नाथ मंदिर 328वां स्थापना दिवस मना रहा है। प्रकृति की गोद में अध्यात्म का यह महत्वपूर्ण केंद्र है।
इसका निर्माण नागवंशी राजा ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने करीब 327 साल पूर्व 1691 में करवाया था। खास बात ये है कि पुरी की तरह यहां भी भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को रथ यात्रा का विहंगम दृष्य देखने को मिलता है। ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने मंदिर के रख-रखाव के लिए तीन गांव जगन्नाथपुर, आमी और भुसु की जमीन मंदिर को दान में दी थी। हाल के दिनों तक मंदिर का प्रबंधन राजपरिवार के द्वारा ही होता था। 1979 में मंदिर को ट्रस्ट बनाया गया। इसका प्रबंधन ट्रस्ट के अधीन कर दिया गया। उपायुक्त ट्रस्ट के पदेन अध्यक्ष होते हैं। साथ ही, ट्रस्ट में राजपरिवार के भी सदस्य हैं।
ठाकुर शाहदेव ने सभी जाति धर्म के लोगों को मंदिर से जोड़ा
जगन्नाथपुर मंदिर अध्यात्मिक केंद्र के साथ-साथ सर्वधर्म सद्भाव का भी केंद्र माना जाता है। ठाकुर शाहदेव ने आसपास रहने वाले सभी जाति धर्म के लोगों को मंदिर से जोड़ा था। 326 साल पहले यहां हर जाति और धर्म के लोग मिल-जुलकर रथयात्रा का आयोजन करते थे। श्री जगन्नाथ को जहां घंसी जाति के लोग फूल मुहैया कराते थे, वहीं उरांव घंटी प्रदान करते थे। मंदिर की पहरेदारी मुस्लिम किया करते थे। राजवर जाति द्वारा विग्रहों को रथ पर सजाया जाता था। मिट्टी के बर्तन कुम्हार देते थे। बढ़ई और लोहार रथ का निर्माण करते थे। वहीं, ट्रस्ट बनने के बाद अब इस रथयात्रा का आयोजन ट्रस्ट के द्वारा कराया जाता है।
अंगेजों ने सीज कर लिया था मंदिर की जमीन
1857 में ठाकुर एनी नाथ शाहदेव के वंशज ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध बिगुल फूंक दिया। इस युद्ध के बाद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के रियासत के 84 गांव ब्रिटिश सरकार अपने कब्जे में ले लिया। इसमें मंदिर के तीन गांव भी शामिल थे। उस समय मंदिर के मुख्य पुजारी बैकुंठ नाथ तिवारी ने ब्रिटिश अधिकारी से मंदिर की जमीन लौटा देने की अर्जी दी। मंदिर की अर्जी पर ब्रिटिश सरकार ने तीन में से एक जगन्नाथपुर गांव मंदिर को वापस लौटा दी। यहां तक कि लिखित रूप में जगन्नाथपुर गांव की 859 एकड़ जमीन मंदिर के नाम कर दी गई थी। वर्तमान में मंदिर के पास सिर्फ 41 एकड़, 27 डिसिमल जमीन बची है।
रथ यात्रा के दौरान नौ दिन तक मौसीबाड़ी में रुकते हैं भगवान
ऐतिहासिक जगन्नाथ रथ यात्रा पर भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ नौ दिन के लिए मौसी के घर जाते हैं। मौसी गुडिचा देवी के घर नौ दिन आतिथ्य सत्कार स्वीकार करने के बाद प्रभु वापस अपने धाम लौट आते हैं। प्रभु की अनन्य भक्ति के कारण ही जगन्नाथ मंदिर के समीप ही गुडिचा देवी(मौसीबाड़ी) का मंदिर बनवाया गया। मंदिर के मुख्य पुजारी ब्रज भूषण मिश्र के अनुसार कृष्णावतार में भगवान विष्णु से एक बार सुभद्रा कहती है, भैया आपकी पूजा को हर कोई करेगा। भैया बलराम और मैं आपके भाई-बहन हैं हमारी भी पूजा होनी चाहिए। बहन की विनती सुनकर भगवान आशीष देते हैं कि कलयुग में जगन्नाथ रूप में मेरे साथ भैया बलराम और तुम्हारी भी पूजा होगी। इसी मान्यता के तहत जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ के साथ भाई बलराम और बहन सुभद्रा की भी पूजा होती है।