जैन मुनि विशुद्ध सागर बोले, कौलेश्वरी से पारसनाथ तक जैन आस्था का केंद्र
Jain Religion Chatra News जैन मुनियों ने कोल्हुआ तीर्थ के दर्शन किए। आचार्य सागर ने कहा कि तीर्थंंकर शीतलनाथ के जन्मस्थान को लेकर कोई मतभेद उचित नहीं है। शास्त्रों में उनके जन्म स्थान के रूप में कोल्हुआ तीर्थ के निकट निरंजना नदी तट पर बसे भदिलपुर गांव का उल्लेख है।
By Sujeet Kumar SumanEdited By: Updated: Thu, 28 Jan 2021 04:32 PM (IST)
हंटरगंज (चतरा), जासं। कोल्हुआ से लेकर पारसनाथ स्थित समवेत शिखर तक की भूमि जैन तीर्थंकरों के साम्राज्य में आती है। यह बातें दिगंबर जैन मुनि आचार्य विशुद्ध सागर ने कही। वे गुरुवार को दैनिक जागरण के संवाददाता से बातचीत कर रहे थे। जैन धर्मावलंबी कौलेश्वरी को कोल्हुआ तीर्थ कहते हैं। आचार्य सागर ने कहा कि तीर्थंंकर शीतलनाथ के जन्मस्थान को लेकर कोई मतभेद उचित नहीं है। शास्त्रों में उनके जन्म स्थान के रूप में कोल्हुआ तीर्थ के निकट निरंजना नदी के तट पर बसे भदिलपुर गांव का उल्लेख है।
प्राकृतिक उथल-पुथल में इलाकों की तस्वीर बदलती रही है। गांवों के नाम भी बदले हैं। ऐसे में भदिलपुर को भोंदल अथवा भदुली होने के दावे अपने हिसाब से हैं। चूंकि पूरा इलाका जैन आस्था का केंद्र रहा है। ऐसे में हंटरगंज के भोंदल अथवा इटखोरी के भदुली को उनकी जन्मभूमि बताया जाना अनुचित नहीं है। जिसकी जहां आस्था, वहां शीतलनाथ की पूजा-अर्चना कर सकता है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इस धरती के सभी तीर्थ क्षेत्रों के समुचित विकास की जरूरत है। उन्हें जब बताया गया कि कौलेश्वरी पर्वत पर एक ही मूर्ति को जैन आस्था से जुड़े लोग तीर्थंंकर पारसनाथ, बुद्धिष्ट गौतम बुद्ध और सनातनी भैरवनाथ के रूप में सदियों से निर्विघ्न पूजते आए हैं, तो उन्होंने प्रसन्नता जताई और कहा कि यही भारत का सौंदर्य है। उल्लेखनीय है कि जैन मुनि आचार्य विशुद्ध सागर अन्य 23 दिगंबर मुनियों और 15 ब्रह्मचारियों के साथ कोल्हुआ तीर्थ पर पधारे हैं।
उस क्रम में वह समस्त मुनियों के साथ हटवरिया स्थित कौलेश्वरी विकास प्रबंधन समिति के भवन में रात्रि विश्राम के लिए ठहरे थे। गुरुवार सुबह मुनियों ने कौलेश्वरी पर्वत पर पारसनाथ के दर्शन किए। इसके बाद दंतार स्थित जैन मंदिर पहुंचे। वहां विश्राम के बाद वह सीधे जोरी गांव के लिए प्रस्थान कर गए। गुरुवार को जोरी में उनका रात्रि विश्राम है। उल्लेखनीय है कि जैन मुनियों का जत्था पैदल विहार करता है। जत्था प्रतिदिन औसतन 30 किलोमीटर की यात्रा करता है। जत्थे के साथ श्रद्धालु पूरी व्यवस्था से लैस होकर चल रहे हैं।
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