जयंती विशेष: खूंटी के लाल जयपाल ने कर दिया था कमाल, 19 उच्चतम पदों पर सेवा देकर बने आदिवासी समाज के गौरव
Jaipal Singh Munda Birth Anniversary मरंग गोमके की पढ़ाई 1910 से 1919 तक रांची के संत पॉल्स स्कूल में हुई। उनकी कुशलता को देखते हुए तत्कालीन प्राचार्य रेव्ह कैनन कसग्रेवे ने उन्हें उच्चतम शिक्षा हासिल करने के लिए इंग्लैंड भेजा। जहां 1920 में संत आगस्टाइन कॉलेज में दाखिला मिला।
रांची, जासं। Jaipal Singh Munda Birth Anniversary झारखंड में शायद कोई ऐसा व्यक्ति हो, जो मरंग गोमके के व्यक्तित्व और कृतित्व से परिचित ना हो। राज्य के आदिवासी महानायकों की सूची में अपना प्रमुख स्थान रखने वाले कहे मरंग गोमके की उपाधि से अलंकृत जयपाल सिंह मुंडा का जन्म 3 जनवरी, 1903 को खूंटी जिला के टकराहातू गांव में हुआ था, जबकि मृत्यु 20 मार्च, 1970 को हुई थी। रविवार को पूरे राज्य भर में मुंडा की 118वीं जयंती मनाई जाएगी। अपने जीवनकाल में 1939 से लेकर 1970 तक 19 उच्चतम पदों पर अपनी सेवाएं दीं। वे अखिल भारतीय आदिवासी महासभा में अध्यक्ष रहे।
झारखंड पार्टी के अध्यक्ष, अबुआ सकम के संपादक, सिविलयन एडवाइजर इस्टर्न कमांड सर्विस सेलेक्शन बोर्ड, मेंबर बोर्ड ऑफ सेकेंड्री एजुकेशन, चीफ बारडेन रांची एआरपी, ओनररी एसिस्टेंट टेबिनक्ल रिक्रूटिंग ऑफिसर, प्रेसिडेंट दिल्ली फ्तक्वईग क्लब, कॉमेंटेटर आनवर्ल्ड एंड पॉर्लियामेंटी अफेयर्स इन द एआईआर सर्विस, मेंबर इकॉनमी कमेटी जैसे विभागों और पदों पर रहे। इसके अलावा चेयरमैन ध्यानचंद हॉकी टूर्नामेंट, मेबर दिल्ली रोटरी क्लब, मेंबर रेलवे बोर्ड, मेंबर शिडयूल कास्टस, स्नेडयूत्त ट्राइब्स एंड अदर्स बैकवर्ड क्लाससेज स्कॉलरशिप कमेटी, मेंबर प्रेस कमिशन, मेंबर एस्टिमेट कमेटी, जेनरल सेक्रेटरी पार्लियामेंट स्पोर्ट्स क्लब के अलावा संविधान सभा के सदस्य व 1952 से 1970 तक सांसद रहे।
मरंग गोमके की पढ़ाई 1910 से 1919 तक रांची के संत पॉल्स स्कूल में हुई। उनकी कुशलता को देखते हुए तत्कालीन प्राचार्य रेव्ह कैनन कसग्रेवे ने उन्हें उच्चतम शिक्षा हासिल करने के लिए इंग्लैंड भेजा। जहां 1920 में संत आगस्टाइन कॉलेज में दाखिला मिला। 1922 में उन्होंने ऑक्सफोर्ड से एमए किया। खेल के प्रति समर्पित होने के कारण 22 वर्ष की उम्र में उन्हें विम्बलडन हॉकी क्लब व ऑक्सफोर्ड शायर हॉकी एसोसिएशन का सदस्य बनाया गया। इसके बाद भारतीय छात्रों को मिलाकर उन्होंने हॉकी टीम बनाई। जहां 1923 से 1928 तक बेल्जियम, फ्रांस, स्पेन और जर्मनी के विश्वविद्यालयों को अपनी अद्भुत खेल प्रतिभा का लोहा मनवाया। इसके बाद एम्सटरडैम ओलम्पिक में भारत को अपनी कप्तानी में विश्व विजेता बनाया।