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झारखंड में 'खेला' कर पाएगी BJP? 32 सीटों पर रहेगा फोकस; शिवराज और हिमंत के कंधों पर जिम्मेदारी

झारखंड में भाजपा के समक्ष चुनौती फिर से राज्य में डबल इंजन सरकार बनाने की होगी। शिवराज और हिमंत की काबिलियत जगजाहिर है। 15 वर्ष तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर रहकर शिवराज सिंह चौहान ने अपार लोकप्रियता हासिल की है। उन्होंने विधानसभा चुनाव में सभी आकलन को ध्वस्त कर दिया। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का आभामंडल भी बड़ा है।

By Pradeep singh Edited By: Rajat Mourya Updated: Wed, 19 Jun 2024 06:02 PM (IST)
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शिवराज सिंह चौहान और हिमंत बिस्वा सरमा। (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, रांची। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने दो कद्दावर नेताओं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को झारखंड में विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assembly Election 2024) की कमान सौंपकर मजबूत तैयारी के संकेत दिए हैं। दोनों दिग्गजों को जिम्मेदारी देने से यह भी स्पष्ट हो गया है कि पार्टी पूरी गंभीरता के साथ विधानसभा चुनाव में उतरेगी।

भाजपा के समक्ष चुनौती फिर से राज्य में 'डबल इंजन' सरकार बनाने की होगी। दोनों नेताओं की काबिलियत जगजाहिर है। 15 वर्ष तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर रहकर शिवराज सिंह चौहान ने अपार लोकप्रियता हासिल की है। उन्होंने विधानसभा चुनाव में सभी आकलन को ध्वस्त कर दिया। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का आभामंडल भी बड़ा है।

दोनों नेताओं की जुगलबंदी से भाजपा राज्य में डबल इंजन सरकार की वापसी के लिए पूरा दम तो लगाएगी, लेकिन जमीनी परिस्थितियां चुनौतीपूर्ण भी हैं। 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा राज्य में बुरी तरह पिछड़ गई थी। क्षेत्रीय दल झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) कांग्रेस व राजद गठबंधन ने सत्ता हथियाने में कामयाबी पाई।

हालिया लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को राज्य में झटका लगा है। भाजपा पिछले लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन से पीछे चली गई। सभी पांच आदिवासी आरक्षित सीटों पर झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने कब्जा कर लिया। हालांकि, विधानसभा वार मिले वोटों में राजग काफी आगे हैं, लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मतों का झुकाव अलग-अलग होता है।

यही वजह है कि पिछले लोकसभा चुनाव में 12 सीटें हासिल करने के बाद भाजपा ने 65 प्लस के नारे के साथ विधानसभा चुनाव के अभियान की शुरूआत की थी, लेकिन सत्ता से हाथ धोना पड़ा। फिलहाल, भाजपा की तरकश के दो मारक तीर का रुख झारखंड की तरफ होने से सत्तारूढ़ खेमे में हलचल स्वाभाविक है। इसके मुकाबले तैयारी भी आरंभ हो गई है। जल्द ही झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), कांग्रेस समेत अन्य सहयोगी दलों की संयुक्त बैठक बनेगी, जिसमें रणनीति पर विचार होगा।

विवादों की भी छाया

लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद भाजपा में छिटपुट विवादों का दौर भी चल रहा है। दुमका से भाजपा की प्रत्याशी सीता सोरेन पार्टी नेताओं पर भितरघात का आरोप लगा कोपभवन में हैं। उनके तेवर तल्ख हैं। सीता सोरेन अपनी अनदेखी का आरोप लगाकर भाजपा में गईं थीं।

उनके आरोपों से प्रदेश भाजपा नेतृत्व में खलबली मच गई है। देवघर के भाजपा विधायक नारायण दास की भी नाराजगी सामने आई है। उनकी शिकायत गोड्डा के भाजपा सांसद डॉ. निशिकांत दुबे के प्रति है। यह प्रकरण थाने की चौखट तक जा पहुंचा है। इन विवादों की छाया से निकलना भाजपा के लिए चुनौती होगी।

संताल और कोल्हान पर करना होगा फोकस

लक्ष्य भेदने के लिए भाजपा को रणनीतिक तौर पर संताल परगना और कोल्हान प्रमंडल में मजबूत स्थिति दर्ज करानी होगी। संताल परगना की 18 विधानसभा सीटों में से सिर्फ तीन सीटें अभी भाजपा के पास है। झामुमो-कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में भी यहां स्थिति मजबूत की है। भाजपा के कब्जे वाली दुमका संसदीय पर झामुमो प्रत्याशी ने जीत हासिल की है। ऐसे में संताल परगना क्षेत्र में पांव जमाना होगा।

कोल्हान की स्थिति और विकट है। इस प्रमंडल की 14 विधानसभा सीटों पर तो भाजपा का खाता भी पिछले चुनाव में नहीं खुल पाया। जमशेदपुर पूर्वी से तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को भी हार का सामना करना पड़ा। उनके विरुद्ध पूर्व मंत्री सरयू राय ने निर्दलीय चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी। पार्टी से बागी होकर चुनाव लड़े बड़कुंवर गगराई चुनाव हार गए थे। वे पार्टी से निलंबित भी हुए थे। उन्हें वापस ले लिया गया।

कोल्हान में भाजपा का चुनाव अभियान संचालित कर चुके पूर्व प्रदेश प्रवक्ता अमरप्रीत सिंह काले को भी पार्टी ने निलंबित किया था। उनकी अभी तक वापसी नहीं हुई है। हालिया लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में सक्रिय होकर कार्य किया।

बताया जाता है कि कोल्हान में अपनी ताकत को वापस लाने के लिए चुनाव पूर्व ऐसे सभी निष्कासित नेताओं को वापस लेने पर पार्टी गंभीरता से चिंतन कर रही है ताकि खोई राजनीतिक जमीन हासिल हो सके।

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