राजग सभी 14 सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहा है। प्रत्याशियों के नाम की घोषणा के बाद क्षेत्र में आरंभिक जनसंपर्क से लेकर उनका प्रचार अभियान जोर पकड़ चुका है। इसके मुकाबले विपक्षी महागठबंधन की रफ्तार काफी सुस्त है जो इनके द्वंद्व की ओर संकेत कर रहा है। महागठबंधन में कई सीटों को लेकर पेंच फंसा हुआ है।
प्रदीप सिंह, रांची। लोकसभा चुनाव की आधिकारिक अधिसूचना जारी होने के पूर्व झारखंड में भाजपा ने 14 में से 11 सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नाम घोषित कर दिए थे। दो सीटों पर भी बाद में उम्मीदवारों के नाम का एलान हो चुका है। एक सीट राज्य में भाजपा की सहयोगी आजसू पार्टी को गठबंधन के तहत दी जाएगी।
यह राज्य में राजग की पुख्ता चुनावी तैयारी की बानगी है। राजग सभी 14 सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहा है। प्रत्याशियों के नाम की घोषणा के बाद क्षेत्र में आरंभिक जनसंपर्क से लेकर उनका प्रचार अभियान जोर पकड़ चुका है। इसके मुकाबले विपक्षी महागठबंधन की रफ्तार काफी सुस्त है, जो इनके द्वंद्व की ओर संकेत कर रहा है।
मार्च माह समाप्त होने को है, लेकिन महागठबंधन में सीटों को लेकर स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं होने के कारण प्रत्याशियों के नाम पर जिच है। अभी तक दो सीटों सिंहभूम और लोहरदगा को लेकर झामुमो और कांग्रेस के बीच खींचतान चल रही है। झामुमो सिंहभूम के साथ-साथ लोहरदगा संसदीय सीट भी लेने पर अड़ा है।
सिंहभूम को लेकर कांग्रेस आलाकमान झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की बात मानने को तैयार है, लेकिन लोहरदगा को लेकर बात नहीं बन रही है। झामुमो के समक्ष संकट यह है कि सीट नहीं मिलने की स्थिति में आंतरिक विवाद बढ़ सकता है। विधायक चमरा लिंडा यहां से चुनाव लड़ना चाहते हैं, जबकि लोहरदगा से झारखंड प्रदेश कांग्रेस के दो पूर्व अध्यक्षों डा. रामेश्वर उरांव और सुखदेव भगत की दावेदारी है।
डॉ. रामेश्वर उरांव राज्य सरकार में मंत्री भी हैं। ऐसे में महागठबंधन के दोनों दलों के सम्मुख एक ओर कुंआ, दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति है। उधर. लालू प्रसाद की राजद भी दो सीटों से कम पर मानने को तैयार नहीं है। राजद को चतरा और पलामू संसदीय सीट चाहिए। ऐसे में महागठबंधन के समक्ष धर्मसंकट की स्थिति पैदा हो गई है।
नए व दमदार चेहरों का भी टोटा
भाजपा ने प्रत्याशियों के नाम काफी विचार मंथन के बाद तय किए हैं। चार निवर्तमान सांसद को टिकट नहीं दिया गया है। नए चेहरों को चुनाव में उतारा गया है। इसके मुकाबले महागठबंधन में नए चेहरों का टोटा है। ज्यादातर सीटों पर दमदार चेहरे नहीं मिल रहे हैं जो भाजपा प्रत्याशी को टक्कर दे सकें। इस कवायद में खींचतान भी चल रही है।
पुराने और घिसे-पिटे चेहरों को सामने लाने का जोखिम भी है। ऐसे में महागठबंधन में रणनीतिकारों के समक्ष ज्यादा विकल्प नहीं है। ज्यादा देरी होने के कारण भाजपा को मनोवैज्ञानिक बढ़त मिलना स्वाभाविक है।
खल रही हेमंत सोरेन की अनुपस्थिति
महागठबंधन में सीटों को लेकर जिच की स्थिति की एक बड़ी वजह सर्वमान्य चेहरे की कमी भी है। पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कमी ऐसे मौके पर रणनीतिकारों को खल रही है। हेमंत सोरेन राजनीतिक निर्णय लेने में देरी नहीं करते थे और सटीक निर्णय लेते थे।
कई मौके पर उन्होंने आगे बढ़कर जोखिम भी लिया। अपने कैबिनेट के दिवंगत मंत्री हाजी हुसैन अंसारी और जगरनाथ महतो के उत्तराधिकारियों को चुनाव जीतने के पहले मंत्री बनाना इसका उदाहरण है। इसके अलावा राष्ट्रपति चुनाव एवं राज्यसभा चुनाव के दौरान भी उन्होंने फौरी और सटीक निर्णय लेने सबको चौंकाया था।
महागठबंधन के दलों के साथ कई दौर की बैठक हो चुकी है। कहीं कोई परेशानी नहीं है। जल्द ही प्रत्याशियों के नाम की घोषणा चरणबद्ध तरीके से कर दी जाएगी। महागठबंधन सभी सीटों पर जीत हासिल करेगा। - विनोद पांडेय केंद्रीय महासचिव सह प्रवक्ता, झामुमो
झारखंड में मतदान चौथे, पांचवें एवं छठे चरण में होगा। हमलोग विस्तृत विचार-मंथन के बाद प्रत्याशी की घोषणा करेंगे। सीट शेयरिंग का फॉर्मूला भी जल्द ही घोषित कर दिया जाएगा। - राजेश ठाकुर प्रदेश अध्यक्ष, झारखंड कांग्रेस
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