झारखंड: अबला को फौलाद बनाने में जुटी काजल... सेना में बहाल होकर राष्ट्ररक्षा की है तमन्ना
Jharkhand Daughter Kajal Kumari ये कहानी है झारखंड के चतरा जिले की रहने वाली काजल कुमारी की। जो आजकल अबला युवतियों को फौलाद बनाने में जुटी है। खेलकूद दौड़ और जूडो-कराटे में किशोरियों को प्रशिक्षण दे रहीं है। सेना में बहाल होकर राष्ट्ररक्षा की तमन्ना रखने वाली काजल को जानिए...
By Sanjay KumarEdited By: Updated: Mon, 22 Aug 2022 10:51 AM (IST)
चतरा, जासं। Jharkhand Daughter Kajal Kumari बेटियां बेटों से किसी मामले में कमतर नहीं होती हैं। वह मौका मिलने पर खुद को सक्षम साबित करती आई हैं। हालांकि पितृ सत्तात्मक समाज उनकी राह में अब भी बाधक बना हुआ है। ऐसी ही कहानी झारखंड के चतरा जिले के लावालौंग प्रखंड की लमटा पंचायत के रखेद गांव की काजल कुमारी की है। रेखा देवी और सबरीत गंझू के घर 8 जनवरी 2000 को पैदा हुई यह कन्या बचपन से बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी। उसके मन में भी कुछ कर गुजरने की तमन्ना थी। सेना में भर्ती होकर राष्ट्ररक्षा को न्योछावर हो जाने की चाहत थी। तीन बहन और एक भाई में सबसे बड़ी इस कन्या ने 2019 में लावालौंग स्थित कस्तूरबा आवासीय विद्यालय से इंटरमीडियट परीक्षा पास की।
अपने सपने के अनुरूप स्कूली जीवन के दौरान उसने फुटबॉल क्रिकेट, जूडो-कराटे, दौड़-कूद जैसे खेलों के अलावा नृत्य विधा में निपुणता हासिल की। वह अपनी इस विधा से अन्य लड़कियों को लैस कर उन्हें फौलाद बनाना चाहती थी, ताकि न सिर्फ खुद की हिफाजत करें, अपितु बेटों की तरह भारत माता की रक्षा में न्योछावर हो जायें।मगर जैसे इंटरमीडियट पास करते ही उसके पांव सामाजिक बेड़ियों में जकड़ दिये गए। उड़ान के लिए उसके तैयार पंखों को अवसर के अभाव और पितृसत्तात्मक बंदिशों ने शिथिल कर दिया। उसके लिए घर की देहरी के भीतर ही दुनिया निर्धारित हो गई।
हालत यह कि इंडियन आर्मी में भर्ती के लिए आवेदन देने के बावजूद परिजनों के दबाव के कारण तैयारी नहीं कर पाई। इसी वर्ष जून महीने में उसकी मुलाकात स्वयंसेवी संस्था ग्रामोदय चेतना केंद्र की सचिव डॉ सविता बनर्जी से हुई। वह किशोरियों में नेतृत्व विकास कार्यक्रम के सिलसिले में रखेद गांव गई थीं। सविता उस गांव में प्रेरक गतिविधियां और पितृ सत्तात्मक समाज के विरुद्ध किशोरियों का प्रशिक्षण शिविर चला रही थीं। उस दौरान काजल उन गतिविधियों से जुड़ गई। किशोरियों के लिए कार्यक्रम होने के कारण किसी को कोई एतराज़ भी नहीं हुआ। प्रशिक्षण के दौरान काजल को संस्था की गतिविधियों में खुद के सपने को साकार होने का प्रतिबिम्ब झलका। संस्था ने भी उसका दर्द समझा। फिर उसने काजल के हौसले को उड़ान देने की ठान ली।
कहते हैं कि ठान लेने पर कुछ भी मुश्किल नहीं, हर बाधा दूर हो जाती है और कठिन लक्ष्य भी आसानी से हासिल हो जाता है। सविता की सूझबूझ से बंदिशों को तोड़ काजल बाहर निकली और आज संस्था में किशोरियों फुटबॉल और नृत्य का प्रशिक्षण दे रही है। उसकी तमन्ना खेलकूद, दौड़ और जूडो-कराटे में किशोरियों को पारंगत कर फौलाद बनाने की है, ताकि वह सेना में बहाल होकर देश की हिफाजत कर सकें। वह भी सेना में भर्ती होने के लिए खुद को तैयार कर रही है।
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