Jharkhand Election: रांची में जुटने लगे कांग्रेस के सीनियर नेता, बनाएंगे रणनीति; राहुल गांधी पर टिकी नजरें
कांग्रेस झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 की तैयारियों में पूरी तरह से जुट चुकी है। कांग्रेस के सीनियर नेताओं का रांची में जमावड़ा भी लगना शुरू हो गया है। कांग्रेस नेता विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाने में लग गए हैं। राहुल गांधी भी 19 अक्टूबर को रांची आएंगे। कांग्रेस का फोकस राहुल गांधी के संविधान सम्मान समारोह की सफलता और पहले दौर के उम्मीदवारों के नाम फाइनल करने पर रहेगा।
राज्य ब्यूरो, रांची। Jharkhand Vidhan Sabha Election 2024 विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस के सीनियर नेताओं का रांची आगमन शुरू हो गया है। इन नेताओं के पास फिलहाल दो टास्क राहुल गांधी के संविधान सम्मान समारोह की सफलता और दूसरा पहले दौर के उम्मीदवारों का नाम फाइनल करना। राहुल गांधी के कार्यक्रम को लेकर पांच सौ लोगों को आमंत्रित किया गया है। सभी को सूचित भी कर दिया गया है।
वहीं, दूसरे टास्क को लेकर मंथन शुरू हो चुका है। पार्टी के वरिष्ठ पर्यवेक्षक तारिक अनवर, प्रदेश कांग्रेस प्रभारी गुलाम अहमद मीर आदि केंद्रीय स्तर के नेता यहां पहुंच चुके हैं। इनके साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष केशव महतो कमलेश और कांग्रेस विधायक दल के नेता डॉ. रामेश्वर उरांव भी नई दिल्ली से लौट आए हैं।
19 को रांची आएंगे राहुल गांधी
बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर पत्रकारों से बात करते हुए प्रभारी गुलाम अहमद मीर ने कहा कि झारखंड में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) 19 अक्टूबर को रांची आएंगे और डोरंडा के शौर्य सभागार में आयोजित संविधान सम्मान सम्मेलन में हिस्सा लेंगे।
गुलाम अहमद मीर (Ghulam Ahmad Mir) ने बताया कि 19 अक्टूबर के बाद कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली सूची जारी करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस 2019 से झारखंड में गठबंधन में शामिल है। सीटों के बंटवारे में कोई विवाद नहीं है। सीट शेयरिंग का फार्मूला तैयार हो चुका है और इसकी घोषणा सीईसी की बैठक के बाद की जाएगी। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस प्रत्याशियों के नामों की घोषणा राहुल गांधी के दौरे के बाद होगी।
दूसरे दलों को भी टटोल रहे कांग्रेसी
झारखंड के कांग्रेस नेता टिकट की संभावनाओं को लेकर दूसरे दलों को भी टटोलना शुरू कर दिए हैं। इसमें कोई नई बात भी नहीं है। कुछ लोगों के नाम सार्वजनिक भी होने लगे हैं। पार्टी की ओर से निर्णय लेने में अभी और भी देरी होने की संभावना है। ऐसे में नेताओं को तो छोड़िए कार्यकर्ताओं को भी बांधे रखना मुश्किल हो सकता है।
किसका झंडा ढोएं कार्यकर्ता?
कार्यकर्ताओं के लिए लगातार चल रहे कार्यक्रम फिलहाल ठप हो गए हैं और नेता अपने-अपने स्तर से जनसंपर्क चला रहे हैं। कार्यकर्ताओं को यह समझ में नहीं आ रहा है कि बेटिकट नेताओं में से किसका झंडा ढोया जाए। कार्यकर्ताओं से इतर नेताओं की भी परेशानी बढ़ती जा रही है।
कई जम-जमाए नेताओं में नाउम्मीदी इस कदर बढ़ गई है कि वे विपक्षी दलों को भी टटोलने लगे हैं। हालांकि, अब टिकट पक्की होने के बाद ही कोई दूसरे दल में जाएगा। पिछले चुनाव में भी कई कांग्रेसी ऐन वक्त पर दूसरे दलों से चुनावी मैदान में उतर गए थे। ऐसे लोगों को आजसू, बसपा आदि दलों में आश्रय मिला था।
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