Jharkhand Language: झारखंड की ये पांच जनजातीय भाषा विलुप्त होने की कगार पर, CUJ में तैयार किए जा रहे शब्दकोष
Jharkhand Tribal Languages झारखंड की पांच जनजातीय भाषाएं अब विलुप्त होने के कगार पर हैं। इन भाषाओं के विकास और बचाने के लिए झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय में शोध टीम कार्य कर रही है। बाकायदा शब्दकोष भी तैयार किए जा रहे हैं।
रांची, [कुमार गौरव]। Jharkhand Tribal Languages झारखंड की पांच जनजातीय भाषाएं अब विलुप्त होने के कगार पर हैं। यदि सार्थक प्रयास नहीं किए गए तो बेशक इन भाषाओं का अस्तित्व ही मिट जाएगा। इसके लिए सेंट्रल यूनिवर्सिटी आफ झारखंड की शोध टीम कार्य कर रही है। सहायक प्राध्यापक रजनीकांत पांडेय ने कहा कि वे इस दिशा में पिछले सात वर्षों से कार्य कर रहे हैं। उनकी टीम झारखंड के अलावे उत्तराखंड के सुदूरवर्ती इलाकों में जाकर अध्ययन कर रही है। ताकि इस बात का पता चल सके कि किन किन जनजातीय भाषाओं के लोगों की कितनी संख्या शेष बची है और वे अपनी भाषा को कितना इस्तेमाल में ला रहे हैं।
ये भाषा गायब होने की कगार पर
बता दें कि झारखंड में तुरी, बिरिजिया, बिरहोर, असुर और मालतो भाषा गायब होने के कगार पर है। इन भाषाओं के लोगों की संख्या भी लगातार कम होती जा रही है। यदि समय रहते इनके संरक्षण व संवर्द्धन की दिशा में प्रयास नहीं किए गए तो बेशक इनका अस्तित्व ही मिट जाएगा। रजनीकांत पांडेय ने बताया कि तुरी के 400-500, बिरिजिया के 6700, बिरहोर के 6000, असुर के 20 हजार और मालतो भाषा बोलने वाली जनजाति करीब 20 हजार ही शेष बची है। जिसके बारे में हमारे शोधार्थी लगातार जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं। बता दें कि इन भाषाओं की जनजाति आमतौर पर गुमला, लातेहार व चैनपुर के सुदूरवर्ती हिस्सों में मौजूद हैं।
तैयार किए जा रहे शब्दकोष
रजनीकांत पांडेय ने बताया कि विलुप्त हो रही जनजातीय भाषाओं को समृद्ध व जन जन तक पहुंचाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इन भाषाओं के विकास के लिए बाकायदा शब्दकोष भी तैयार किए जा रहे हैं। प्रो चामू कृष्णा शास्त्री के नेतृत्व में कमेटी का भी गठन किया गया है। जिनकी मदद से इन भाषाओं के शब्दों को हिन्दी में परिवर्तित कर जन सामान्य बनाने का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही पांच विभिन्न हिस्सों में बांटकर इसे तैयार किया जा रहा है। ताकि इन जनजातियों की भाषा को समृद्ध व स्पष्ट रुप दिया जा सके। हालांकि इन कार्यों में यूजीसी की फंडिंग भी आड़े आ रही है। एक साल पूर्व इसे लेकर यूजीसी ने फंड का आवंटन किया था। लेकिन इसे आजतक अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है। जिस कारण शोध कार्य पर असर पड़ रहा है।
बताया गया कि यदि इन भाषाओं के संरक्षण व संवर्द्धन की दिशा में सार्थक प्रयास किए जाएं तो बेशक पर्यावरण से संबंधित कई बातें जो राज बनी हैं उभरकर सामने आएंगी। उन्होंने बताया कि आदिवासी जनजाति पर्यावरण के बेहद करीब है और उनकी भाषाएं पर्यावरण को समझने में सटीकता प्रदान करती हैं।
जनजातीय गौरव दिवस पर दी जाएगी रिपोर्ट
बता दें कि सीयूजे में नवंबर माह में जनजातीय गौरव दिवस पर विलुप्त हो रही जनजातीय भाषाओं से संबंधित रिपोर्ट भी पेश की जाएगी। जिसमें पांच हिस्सों में यानी एस्ट्रो एशियाटिक लैंग्वेज, इंडो आर्यन लैंग्वेज, द्रविड़ियन तेलगू लैंग्वेज, सिनो-तिब्बतन लैंग्वेज व अंडमानिज ग्रुप के लैंग्वेज को शामिल किया गया है।
यही नहीं असुर भाषा के लिए शब्दकोष के अलावे चार विभिन्न सीरिज भी तैयार किए गए हैं। जिसमें इस बात की जानकारी मिलेगी कि असुर समुदाय के लोग किस तरह से भाषाई तालमेल आमजनों से बिठाते हैं।
असुर भाषा के शब्दकोष में 2000 से अधिक शब्दों को तैयार किया गया है। जबकि बिरिजिया व बिरहोर जनजाति की भाषाओं को समृद्ध बनाने की दिशा में 500-500 शब्दों को आसान शब्दाें में परिवर्तित किया गया है। इन भाषाओं के शब्दकोष को तैयार करने के लिए सीयूजे की टीम लगातार प्रयास कर रही है। जिसका लाभ शोधार्थियों को मिलेगा।