'मशरूम की तरह उगे निजी अस्पताल गरीब जनता का कर रहे शोषण', झारखंड हाईकोर्ट की टिप्पणी
Jharkhand High Court झारखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए मौजूदा सरकार पर बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था के मामले में सवाल खड़ा किया है और पूछा कि स्वास्थ्य विभाग में दो तिहाई पद खाली हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर जिला अस्पतालों में न चिकित्सा उपकरण हैं और न ही स्वास्थ्यकर्मी हैं। ऐसे में स्वास्थ्य सेवा कैसे बेहतर हो सकती है?
राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस आर मुखोपाध्याय व जस्टिस पीके श्रीवास्तव की खंडपीठ ने गुरुवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि राज्य के स्वास्थ्य विभाग में दो तिहाई पद रिक्त हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर जिला अस्पतालों में न चिकित्सा उपकरण हैं और न ही स्वास्थ्यकर्मी हैं।
कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसे में राज्य की स्वास्थ्य सेवा कैसे बेहतर हो सकती है। मशरूम की तरह उगे निजी अस्पताल और क्लिनिक झारखंड की गरीब जनता का शोषण कर रहे हैं।
अदालत ने बेहतर स्वास्थ्य सुविधा बहाल करने के लिए उठाए गए कदम, चिकित्सा उपकरण खरीदने, रिक्तियों को भरने आदि के संबंध में सरकार को विस्तृत शपथ पत्र दाखिल करन का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 27 अगस्त को होगी। इससे पहले सरकार की ओर से जवाब दाखिल किया गया।
सरकार के जवाब पर कोर्ट ने जताया असंतोष
सरकार के जवाब पर कोर्ट ने असंतोष जताते हुए कहा कि झारखंड कल्याणकारी राज्य है। यहां की गरीब जनता स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव झेले, यह उचित नहीं है। ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, उप स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र आदि को बेहतर किया जाना जरूरी है। अभी बरसात का समय है। सांप काटने की दवा सुदूर ग्रामीण इलाकों में रहे, सरकार यह सुनिश्चित करे।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि केंद्र से झारखंड में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भेजे गए 256 करोड़ सरेंडर कर दिए गए। सभी जिलों में मेडिकल सुविधा बढ़ाने के लिए राज्य सरकार की ओर से तीन-चार माह पूर्व एक-एक करोड़ रुपये दिए गए हैं, लेकिन उसका क्या हुआ, इसका पता नहीं चल सका है।
रिक्त पदों को जल्द से जल्द भरना जरूरी- कोर्ट
अदालत ने आगे कहा कि जिलों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, स्वास्थ्य उप केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और जिला अस्पतालों के भवनों की मरम्मत और आधारभूत संरचना दुरुस्त करने के लिए राज्य सरकार ने 112 करोड़ दिए गए हैं। स्थितियां पहले जैसी ही है।
कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को झारखंड में मेडिकल सुविधा बेहतर बनाने के लिए दीर्घकालीन योजना बनाने की जरूरत है। स्वीकृत पद के विरुद्ध जितनी भी रिक्तियां हैं और उसे अविलंब भरना भी जरूरी है। बता दें कि हाई कोर्ट पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत दर में बढ़ोतरी पर स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रहा है।ये भी पढ़ें- Jharkhand News: सांसद निशिकांत दुबे को झारखंड HC से मिली राहत, बैल चोरी और मेडिकल कॉलेज खरीदने से जुड़ा है मामला
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