स्वास्थ्य के मामले में झारखंड में 10 में से छह परिवारों को 'आयुष' पर विश्वास, सर्वे में सामने आई जानकारी
Jharkhand News राज्य सरकार भले ही चिकित्सा की देसी एवं पारंपरिक पद्धति आयुष को लेकर उदासीन हो लेकिन यहां के लोग इस पद्धति को लेकर काफी जागरुक हैं। इस पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के प्रति लोगों में काफी विश्वास भी है। केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के नेशनल सैंपल सर्वे कार्यालय द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है।
नीरज अम्बष्ठ, रांची। राज्य सरकार भले ही चिकित्सा की देसी एवं पारंपरिक पद्धति 'आयुष' को लेकर उदासीन हो, लेकिन यहां के लोग इस पद्धति को लेकर काफी जागरुक हैं। इस पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के प्रति लोगों में काफी विश्वास भी है।
यह बात दूसरी है कि इसकी दवा के उपयोग की बात हो तो आधे से अधिक लोग इसका उपयोग नहीं करते। केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के नेशनल सैंपल सर्वे कार्यालय द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है। पिछले दिनों जारी इसकी रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि 10 में छह परिवाराें को इस चिकित्सा के प्रति पूरा विश्वास भी है।
नेशनल सैंपल सर्वे के 79वें राउंड के तहत कराए गए आयुष सर्वेक्षण के अनुसार, झारखंड के ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में इस चिकित्सा प्रति के समान जागरुकता है। दोनों ही क्षेत्रों में 95 प्रतिशत परिवार आयुष चिकित्सा पद्धति के तहत आनेवाले आयुर्वेद, यूनानी, होम्याेपैथी, सिद्धा आदि से अवगत हैं।
'सरकारी आयुष औषधालयाें में चिकित्सकों की कमी'
राष्ट्रीय स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में 94.8 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्रों में 96 प्रतिशत परिवारों के प्रति यह जागरूकता है।झारखंड में आयुष के तहत आनेवाली दवा के उपयोग की बात करें तो यहां ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में एक वर्ष के भीतर 30 से 50 प्रतिशत परिवारों ने ही इसकी दवा का उपयोग किया।
इस क्षेत्र के विशेषज्ञ रहे चिकित्सक डा. रवींद्र राय का मानना है कि यहां के सरकारी आयुष औषधालयाें में चिकित्सकों की भारी कमी है। सृजित पदों के विरुद्ध ही इसके 500 पद रिक्त हैं। इस कारण इसकी दवा का उपयोग नहीं हो पाता। दवा के उपयोग नहीं होने का यह कारण हो सकता है।
9,800 परिवारों के बीच कराया गया सर्वेक्षण
झारखंड में यह सर्वेक्षण 9,800 परिवारों के बीच कराया गया। इनमें 4,865 परिवार ग्रामीण तथा 4,935 परिवार शहरी क्षेत्रों के थे। इस सर्वेक्षण का उद्देश्य स्वास्थ्य सेवाओं की पारंपरिक प्रणाली के उपयोग, घरेलू उपचार, औषधीय पौधों तथा लोक चिकित्सा के बार में जागरुकता कायम करना था।
इस सर्वेक्षण में एक परिवार के 15 वर्ष या इससे अधिक आयु के उस सदस्य को आयुष के बारे में जागरूक माना गया जो कभी भी आयुष चिकित्सा पद्धति का उपयोग करके उपचार लिया हो। चाहे वह चिकित्सक के पर्चे के साथ या इसके बिना उपचार लिया हो।साथ ही उसने किसी आयुष पद्धति जैसे आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्धा, होम्योपैथी आदि के बारे में सुना हो। वह औषधीय पौधों, घरेलू उपचार या रोकथाम के लिए पारंपरिक प्रथाओं के बारे में जानता हो।
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