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Jharkhand News: 'सहमति से बना संबंध दुष्कर्म नहीं...', जानें किस मामले में और क्यों प्रदेश हाई कोर्ट ने दिया ये बयान

झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस गौतम चौधरी की अदालत ने दुष्कर्म के एक मामले में आरोपित को बरी कर दिया और निचली अदालत के आदेश को निरस्त कर दिया। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि सभी तथ्यों को देखने के बाद यह स्पष्ट होता है कि आरोपित ने शादी का झांसा देकर नहीं बल्की युवती की सहमती से शारीरिक संबंध नहीं बनाए थे।

By Manoj Singh Edited By: Shoyeb Ahmed Updated: Sat, 16 Mar 2024 10:24 PM (IST)
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दुष्कर्म का आरोप लगे आरोपित को प्रदेश हाई कोर्ट ने किया बरी (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस गौतम चौधरी की अदालत ने दुष्कर्म के एक मामले में निचली अदालत के आदेश को निरस्त करते हुए युवक को बरी कर दिया।

अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि सभी तथ्यों को देखने के बाद यह स्पष्ट होता है कि आरोपित ने शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध नहीं बनाए थे, बल्कि युवती की सहमति से ही शारीरिक संबंध स्थापित हुआ। इसलिए यह दुष्कर्म नहीं माना जाएगा।

पाकुड़ सिविल कोर्ट ने साल 2012 में मोहिदुल को सुनाई थी सजा

पाकुड़ सिविल कोर्ट ने वर्ष 2012 में प्रार्थी मोहिदुल को युवती का दुष्कर्म करने का दोषी पाते हुए सात साल कारावास की सजा सुनाई थी। जिसके खिलाफ उसने हाई कोर्ट में अपील दाखिल कर सजा को चुनौती दी थी।

युवती ने नवंबर 2007 में मोहिदुल के खिलाफ शादी का झांसा देकर यौन शोषण का मामला दर्ज कराया था। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि इस मामले के प्राथमिकी दर्ज कराने में छह महीने की देरी हुई है। करीब छह महीने तक दोनों को बीच शारीरिक संबंध बने और जब पीड़िता गर्भवती हो गई तब मामले की जानकारी हुई।

पीड़िता ने बयान में ये कहा

पीड़िता ने अपने बयान बताया था कि आरोपित ने उससे शादी करने का वादा किया था। साक्ष्य में यह भी आया है कि अपीलकर्ता विवाह के पंजीकरण के लिए न्यायालय गया था, लेकिन वहां अन्य व्यक्तियों ने उसे रोक दिया। साक्ष्यों से शादी का झूठा वादा कर दुष्कर्म करने का आरोप साबित नहीं होता है।

कोर्ट ने ये कहा

गवाहों की गवाही को संयुक्त रूप से पढ़ने से यह पता चलता है कि पंचायत में अपीलकर्ता को पीड़ित लड़की से शादी करने के लिए कहा गया था, लेकिन दूसरों की आपत्ति के कारण ऐसा नहीं हो सका। सबूत स्पष्ट रूप से सहमति से संबंध बनाने की ओर इशारा करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पीड़िता गर्भवती हुई जिसके बाद मामला दर्ज किया गया।

पीड़ित की सहमति बलपूर्वक या धोखाधड़ी के तहत प्राप्त नहीं की गई थी। इसलिए अदालत का मानना है कि अभियोजन अपीलकर्ता के खिलाफ दुष्कर्म के आरोप को साबित करने में विफल रहा है।

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