बूढ़े मां-बाप की सेवा करना बेटे का कर्तव्य, झारखंड HC ने दिया आदेश; पिता ने कहा था लड़का नहीं करता है मेरी देखभाल
झारखंड हाई कोर्ट ने गुरुवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि बूढ़े मां-बाप की सेवा करना बेटे की जिम्मेदारी है। कोर्ट ने हिंदू धर्म में कही गई बातों का हवाला देते हुए कहा कि एक व्यक्ति पर जन्म लेने के कारण कुछ ऋण होते हैं और उसमें पिता और माता का ऋण भी शामिल होता है जिसे हमें चुकाना होता है।
राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस सुभाष चंद की अदालत ने एक मामले में सुनवाई करते हुए छोटे बेटे को अपने पिता को भरण पोषण के लिए तीन हजार रुपये का गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया है। हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए बूछोटे बेटे मनोज साव की याचिका खारिज कर दी।
माता-पिता का ऋण चुकाना जरूरी
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अपने वृद्ध पिता का भरण-पोषण करना पुत्र का पवित्र कर्तव्य है। कोर्ट ने हिंदू धर्म में बताए गए माता-पिता के प्रति दायित्व का हवाला देते हुए कहा कि पिता तुम्हारा ईश्वर है और मां तुम्हारा स्वरूप है। वे बीज हैं और आप पौधा हैं। आपको अपने माता-पिता की अच्छाई और बुराई दोनों विरासत में मिलती हैं। एक व्यक्ति पर जन्म लेने के कारण कुछ ऋण होते हैं और उसमें पिता और माता का ऋण भी शामिल होता है, जिसे हमें चुकाना होता है।
छोटे बेटे ने नहीं किया भरण पोषण
अदालत ने कहा कि पिता के पास कुछ कृषि भूमि है, फिर भी वह उस पर खेती करने में सक्षम नहीं हैं। वह अपने बड़े बेटे पर भी निर्भर है, जिसके साथ वह रहता है। पिता ने पूरी संपत्ति में अपने छोटे बेटे मनोज साव को बराबर-बराबर हिस्सा दिया है, लेकिन छोटे बेटे ने 15 साल से अधिक समय से उनका भरण-पोषण नहीं किया।फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ मनोज साव ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। बता दें कि पिता ने मनोज कुमार से प्रति माह दस हजार रुपये की भरण-पोषण राशि मांगी थी। फैमिली कोर्ट ने पिता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए पिता को भरण-पोषण के लिए तीन हजार रुपये प्रति माह देने का आदेश दिया था।
पत्नी के दावे के लिए शादी का सबूत देना जरूरी नहीं
झारखंड हाई कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि पत्नी के रूप में साथ रह रही महिला को भरण-पोषण का हक हासिल करने के लिए शादी के पुख्ता सबूत देने की आवश्यकता नहीं है। खास कर वैसे मामले में जब महिला के संबंधित व्यक्ति के साथ पत्नी की तरह साथ रहने का साक्ष्य रिकाॅर्ड पर मौजूद हो।अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत शादी के दस्तावेजी साक्ष्य पर जोर देना हर मामले में अनिवार्य नहीं है। इसके साथ जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की अदालत ने रांची फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली राम कुमार रवि की याचिका खारिज कर दी।
हालांकि, इस मामले में अदालत ने पति की कम आय को देखते हुए भरण-पोषण की राशि को प्रतिमाह पांच हजार रुपये से कम कर तीन हजार रुपये प्रतिमाह कर दिया। पिछले दिनों रांची के फैमिली कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए महिला के पति राम कुमार रवि को आदेश दिया था कि वह अपनी पत्नी को प्रतिमाह पांच हजार रुपये भरण पोषण के लिए दे। फैमिली कोर्ट के इस आदेश को राम कुमार रवि ने हाई कोर्ट में चुनौती दी।
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