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Jharkhand: राज्य के अधिकतर अस्पतालों के पास नहीं है अग्निशमन विभाग का एनओसी, एडवाइजरी लेकर बैठ जाते हैं संचालक

राज्य के अधिकतर अस्पतालों व नर्सिंग होम्स के पास अग्निशमन विभाग का नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट यानी एनओसी नहीं है। ऐसे अस्पतालों की संख्या हजारों में है जिन्होंने सिर्फ एडवाइजरी को ही अग्निशमन विभाग का एनओसी मान रखा है।

By Dilip KumarEdited By: Mohit TripathiPublished: Mon, 30 Jan 2023 10:23 PM (IST)Updated: Mon, 30 Jan 2023 10:23 PM (IST)
राज्य में संचालित अधिकतर अस्पतालों व नर्सिंग होम्स को नहीं है अग्निशमन विभाग का एनओसी

रांची, राज्य ब्यूरो: राज्य के अधिकतर अस्पतालों व नर्सिंग होम्स के पास अग्निशमन विभाग का नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट यानी एनओसी नहीं है। ऐसे अस्पतालों की संख्या हजारों में है जिन्होंने सिर्फ एडवाइजरी को ही अग्निशमन विभाग का एनओसी मान रखा है। एडवाइजरी के अनुसार अस्पताल संचालक अपने अस्पतालों में अग्निशमन उपकरण की व्यवस्था की या नहीं, इसकी चिंता वे नहीं करते और न ही उसका फायर ब्रिगेड से निरीक्षण करवाते हैं। यही वजह है कि उन्हें अंतिम रूप से एनओसी नहीं मिलता है।

मेडिकल एसोशिएशन का आरोप घूस दिये बिना नहीं मिलता एनओसी

एनओसी के लिए घूस की शिकायतें भी आती रही हैं। हाल ही में धनबाद की घटना में मेडिकल एसोसिएशन ने अग्निशमन विभाग पर यह आरोप लगाया है कि घूस नहीं देने पर एनओसी नहीं मिलता और उसे अग्निशमन विभाग लटकाकर रखता है।

अग्निशमन विभाग ने एनओसी के लिये घूस के आरोपों को किया खारिज

मेडिकल एसोसिएशन के इन आरोपों को अग्निशमन विभाग पूरी तरह खारिज कर दिया। प्रभारी राज्य अग्निशमन पदाधिकारी जगजीवन राम की मानें तो एनओसी की प्रक्रिया पारदर्शी है। एडवाइजरी के लिए आवेदन स्वीकृत होगा या खारिज होगा, यह एक महीने के भीतर तय हो जाता है। आवेदन ऑनलाइन होता है। राज्य में एडवाइजरी के लिए 2017 से अब तक अग्निशमन विभाग के पास दस हजार से अधिक मामले पहुंचे हैं। इस महीने जनवरी में 284 मामले आ चुके हैं और हर दिन आठ से दस आवेदन निष्पादित भी कराए जा रहे हैं।

एडवाइजरी को ही मान लेते हैं अग्निशमन विभाग का एनओसी

किसी भी अस्पताल के निर्माण से पहले फायर ब्रिगेड से एडवाइजरी लेनी पड़ती है। इसके लिए लाभुक ऑनलाइन आवेदन करते हैं। ऑनलाइन आवेदन मिलने पर अग्निशमन विभाग आवेदन को संबंधित स्टेशन फायर अफसर को देता है, जिन्हें एक सप्ताह के भीतर अपना मंतव्य उपलब्ध करवाना होता है। जिसके भवन का नक्शा पास होता है, उन्हें एडवाइजरी मिल जाती है। जिसका नक्शा पास नहीं होता है, उनके आवेदन अस्वीकृत होते हैं।

एडवाइजरी देने के दौरान अग्निशमन विभाग के विशेषज्ञ उक्त भवन के फायर फाइटिंग सिस्टम को स्थापित करने संबंधित अपना सुझाव देते हैं और नक्शा समझाते हैं। इस प्रक्रिया को पूरा होने के लिए एक महीने का समय निर्धारित है। इसके बाद भवन बनने के बाद फायर ब्रिगेड से निरीक्षण करवाना होता है, जिसके बाद ही एनओसी विधिवत रूप से मिलता है, लेकिन अधिकतर अस्पताल संचालक केवल एडवाइजरी लेकर ही बैठ जाते हैं, एनओसी नहीं लेते। वे एडवाइजरी को ही अपना एनओसी मान लेते हैं।

फायर ब्रिगेड खुद से किसी भी भवन का निरीक्षण नहीं कर सकता जब तक उस भवन के संचालक निरीक्षण के लिए आवेदन नहीं देते हैं। भवन निर्माण पूरा होने के बाद उक्त भवन संचालक को एक बार फिर अग्निशमन विभाग को आवेदन देना होता है और यह बताना होता है कि अग्निशमन विभाग ने जो सुझाव दिया था, उसे उन्होंने पूरा कर लिया है इसलिए उसका निरीक्षण कर एनओसी देने के लिए वे आग्रह करते हैं।


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