Jharkhand में कफन पर सियासत, हेमंत सरकार की ‘मुफ्त कफन योजना’ पर मीडिया का बखेड़ा
झारखंड सरकार की मुफ्त कफन देने की घोषणा के बाद इंटरनेट मीडिया पर शुरू हुआ विवाद काफी चर्चा में है। इस घोषणा का वायरल वीडियो इस बात की बानगी है कि कैसे किसी वक्तव्य को तिल का ताड़ बनाया जा सकता है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 28 May 2021 02:47 PM (IST)
रांची, प्रदीप शुक्ला। कहावत है, झूठ के पैर नहीं होते हैं। पर कई बार जब तक सच सामने आता है, काफी देर हो चुकी होती है। झारखंड सहित देशभर के गांवों में वैक्सीन को लेकर फैले भ्रम से इसे बखूबी समझा जा सकता है। ताजा विवाद अब राज्य सरकार के उस ऐलान को लेकर पैदा हुआ है, जिसमें पीड़ित परिवारों को मुफ्त कफन देने की बात कही गई है। विवाद की जड़ में इंटरनेट मीडिया पर प्रस्तुत वह अधूरा सच है जिसे बार-बार दोहराया जा रहा है। ऐसे ज्यादातर विवाद सूचनाओं को गलत मंशा से प्रस्तुत करने पर उत्पन्न होते हैं और बाद में पूरा सच सामने लाने के लिए सरकारों को बड़ी कवायद करनी पड़ती है।
खैर, केंद्र सरकार ने ऐसे तमाम मंचों के लिए नए नियम-कानून बना दिए हैं। आने वाले कुछ दिनों तक इस पर भी खूब हो हल्ला होने वाला है, लेकिन यह जरूरी है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर जो झूठ और भ्रम फैलाया जा रहा है इससे समाज में वैमनस्यता बढ़ रही है। ऐसी अभिव्यक्तियों को तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि इससे राज्यों के सामने कानून-व्यवस्था सहित कई मोर्चों पर नई मुसीबतें खड़ी होती दिख रही हैं। झारखंड सरकार की मुफ्त कफन देने की घोषणा के बाद इंटरनेट मीडिया पर शुरू हुआ विवाद काफी चर्चा में है। इस घोषणा का वायरल वीडियो इस बात की बानगी है कि कैसे किसी वक्तव्य को तिल का ताड़ बनाया जा सकता है।
दरअसल, तीन दिन पहले राज्य कैबिनेट की बैठक में कई मंत्रियों ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सामने यह मुद्दा उठाया था कि सख्त लाकडाउन में दुकानें बंद होने के कारण कई बार ऐसे परिवारों को दिक्कतें हो रही हैं जिनके घर में कोई अनहोनी हो गई है। उन्हें मृत व्यक्ति के अंतिम संस्कार के लिए सामग्री और कफन तक नहीं मिल पा रहा है। इसी संदर्भ में मुख्यमंत्री ने कहा कि वह हर पीड़ित परिवार के साथ खड़े हैं। मृत शरीर के लिए कफन एक सम्मान की वस्तु है और हर किसी का अंतिम संस्कार सम्मान के साथ होना चाहिए। ऐसे परिवारों को अंतिम संस्कार के लिए कफन उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व है। सरकार उन्हें मुफ्त में कफन उपलब्ध कराएगी। ऐसे पीड़ितों के लिए ही ‘मुफ्त कफन योजना’ की घोषणा की गई थी। इसमें विपक्ष को भी कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए थी, लेकिन हुआ इसके ठीक उलट।
भाजपा की राज्य आइटी सेल ने मुख्यमंत्री के संबोधन से सिर्फ ‘मुफ्त कफन योजना’ वाला अंश निकाल कर वायरल कर दिया। इसके बाद इंटरनेट मीडिया पर इसके पक्ष-विपक्ष और निंदा सराहना को लेकर टिप्पणियों की बाढ़ आ गई। भाजपा ने इसे मुद्दा बना लिया। कौआ कान ले गया कि तर्ज पर बिना जाने-समझे बयान की निंदा होने लगी। किसी ने यह नहीं पूछा, किसका कान ले गया? क्यों ले गया? कहां ले गया? ले भी गया कि यह अफवाह और बकवास है। साजिशन परोसा गया यह अधूरा सच कुछ घंटों में ही इंटरनेट मीडिया पर टाप ट्रेंडिंग में आ गया। सत्तापक्ष और विपक्ष में तू-तू, मैं-मैं शुरू हो गई। इंटरनेट मीडिया के वीर धड़ाधड़ इसे शेयर करने लगे, जैसे कोई ऐसा फार्मूला मिल गया हो, जिससे राज्य कोरोना मुक्त होने जा रहा हो। सत्ता पक्ष और विपक्षी दल भाजपा की आइटी सेल टीमों के एक-दूसरे पर ताबड़तोड़ हमलों के बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद मीडिया के समक्ष पूरे तथ्य समेत आ गए और इस सफेद झूठ की हवा निकाल दी। यह घटना तो सिर्फ एक उदाहरण भर है। इंटरनेट मीडिया पर प्रतिदिन ऐसी शरारतें हो रही हैं। इससे कई बार शासन-प्रशासन के सामने बड़ी चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं, लेकिन इसका असल नुकसान तो आम लोगों को ही हो रहा है।
देश के तमाम गांवों में कोरोना से बचाव के लिए दी जाने वाली वैक्सीन को लेकर फैला भ्रम और अंधविश्वास भी ऐसी ही तमाम अधकचरी सूचनाओं की देन है। वैक्सीन को लेकर हर गांव में जितने मुंह उतनी कहानियां सुन सकते हैं। इसका नुकसान यह हो रहा है कि कई जगह टीकाकरण अभियान गति नहीं पकड़ पा रहा है। जनप्रतिनिधियों को ग्रामीणों को समझाने में पसीना छूट रहा है। हर किसी को समझना चाहिए कि किसी पार्टी, व्यक्ति विशेष अथवा संस्था को नीचा दिखाने के लिए साजिशन किया जाने वाला ऐसा कोई भी कृत्य समाज के लिए कितना घातक बन जाता है।
कुछ रियायतों के साथ बढ़ा लाकडाउन : राज्य में स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह के तहत लागू लाकडाउन को एक सप्ताह यानी तीन जून तक बढ़ा दिया गया है। राज्य में संक्रमण दर बहुत नीचे आ गई है और जिस तरह से कोरोना संक्रमितों के स्वस्थ होने का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है, कोई बड़ी बात नहीं अगले एक सप्ताह तक संक्रमितों का आंकड़ा दो-तीन हजार तक आ जाए, लेकिन असल चुनौती तब शुरू होगी, जब फिर से लाकडाउन खुलेगा। मतलब, भयावह दूसरी लहर देख चुके लोग क्या मास्क और शारीरिक दूरी सहित कोरोना से बचने के अन्य तमाम दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करेंगे? जैसे-जैसे लहर कम हो रही है गांवों में लगने वाली हाट-बाजारों में भीड़ की तस्वीरें सामने आने लगी हैं। कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ है। सख्त लाकडाउन और लोगों के घरों में कैद हो जाने से बस इसका प्रसार कुछ कम हुआ है। बचाव और सावधानी के उपाय जारी रखने होंगे।[स्थानीय संपादक, झारखंड]
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