Jharkhand News: आखिर क्यों उग्र हो रहे गांधीजी के बताए सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलने वाले टाना भगत
Jharkhand News टाना भगतों का देश की आजादी में योगदान है। सवाल यह भी है कि जिन्होंने लातेहार में कानून हाथ में लेकर पुलिस पर हमला किया न्यायाधीशों को बंधक बनाए रखा क्या वे सचमुच टाना भगत हैं या कोई और हैं?
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Fri, 14 Oct 2022 01:07 PM (IST)
रांची, शशि शेखर। गांधीजी के बताए सत्य-अहिंसा के रास्ते पर चलना, खादी का सादा लिबास व गांधी टोपी पहनना और रोज तिरंगे की पूजा करना, दशकों से टाना भगतों की पहचान रही है। झारखंड में मुख्य तौर पर लातेहार, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, खूंटी और चतरा में बसे टाना भगत गरीबी में जीवन जीते हुए भी समाज में आदर्श स्थापित करते रहे हैं। वर्ष 1917 में महात्मा गांधी रांची आए तो वह टाना भगतों से मिले।
बापू के व्यक्तित्व ने टाना भगतों पर ऐसी अमिट छाप छोड़ी कि वह हमेशा के लिए गांधी के होकर रह गए। नियम के पक्के टाना भगत अपने अधिकारों और अस्तित्व के लिए संघर्ष भी करते रहे हैं, लेकिन साेमवार को लातेहार में इनका अलग चेहरा देखने को मिला। यहां पांचवीं अनुसूची का हवाला देकर टाना भगतों ने न्यायालय परिसर को पांच घंटे तक घेरे रखा। शांतिपूर्ण आंदोलन करने वाले गांधी के ये अनुयायी इस दौरान उग्र और हिंसक नजर आए। ये बार-बार मुख्य द्वार को तोड़कर अंदर जाने की कोशिश कर रहे थे। पुलिस बल ने जब रोकने की कोशिश की तो टाना भगतों ने पत्थरों से हमला कर दिया। इससे पहले सितंबर 2020 में भी छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम के तहत मिलने वाले अधिकार को लेकर अखिल भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी के बैनर तले लातेहार के टोरी रेलवे क्रासिंग के समीप तीन दिनों तक रेलवे ट्रैक को जाम कर बैठे रहे और 55 घंटे तक ट्रेनों का आवागमन बाधित रखा।
हिंसक और अलोकतांत्रिक आंदोलन
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलने और उनके आश्वासन के बाद इनका आंदोलन खत्म हुआ था। इधर कुछ महीने पहले झारखंड में पंचायत चुनाव के समय भी टाना भगतों ने पांचवीं अनुसूची का हवाला देकर अनुसूचित क्षेत्र में चुनाव को संविधान विरुद्ध बताकर विरोध-प्रदर्शन किया था। इसके बाद अप्रैल में बड़ी संख्या में टाना भगत घंटी बजाते हुए लातेहार जिला मुख्यालय पहुंचे थे और सभी अफसरों और कर्मचारियों को कार्यालय से बाहर निकालकर ताला लगा दिया।
सवाल उठता है कि जिनका जीवन गांधी और खादी से चलता है, चरखा- तिरंगा जिनके जीवन का अभिन्न अंग है, वे इन दिनों इतने उग्र और हिंसक क्यों हो गए हैं? क्या इनके अंदर किसी बाहरी और अवांछित तत्व ने अपनी पैठ बना ली है? क्या खूंटी में चले संविधान विरोधी पत्थलगड़ी आंदोलन के सूत्रधारों ने अब इन्हें नया हथियार बनाना शुरू कर दिया है। इस आशंका को बल इसलिए भी मिलता है, क्योंकि अभी कुछ समय से लातेहार के महुआडांड़ इलाके में कुछ अवांक्षित तत्व पत्थलगड़ी जैसा ही हिंसक और अलोकतांत्रिक आंदोलन चलाने की कोशिश कर रहे हैं।