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Jharkhand: अफीम के लिए बदनाम खूंटी में महिलाएं गेंदा फूल से महका रहीं अपना जीवन

Jharkhand News पहले यहां नक्सली अफीम की खेती कराते थे। अब किसान गेंदे के फूल से आत्मनिर्भर बन रहे हैं। को-आपरेटिव सोसायटी भी फूलों की खरीदारी करती है। जिले के 500 एकड़ में खेती हो रही है। हर वर्ष इसका दायरा बढ़ता जा रहा है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Updated: Tue, 24 Nov 2020 07:39 AM (IST)
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गेंदा फूल के साथ खूंटी में एक महिला। जागरण
खूंटी, [दिलीप कुमार]। खूंटी जिले के नक्सल प्रभावित इलाकों में पहले जहां चोरी छिपे अफीम की खेती की जाती थी, वहीं अब महिलाएं गेंदा फूल उगा कर जिंदगी संवार रही हैं। जिले में करीब दो दर्जन से अधिक गांवों में 500 एकड़ से अधिक भूमि पर गेंदा फूल की खेती की जा रही है। करीब साढ़े तीन हजार परिवार इस पेशे से जुड़े हैं। इससे महिलाएं जहां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रही हैं, वहीं बदनामी का दाग भी धूमिल हो रहा है।

ये महिलाएं दीपावली और छठ में अच्छी आमदनी करने के बाद अब क्रिसमस पर मुनाफा कमाने की तैयारी कर रही हैं। इस बार दोनों त्योहारों पर पश्चिम बंगाल की बजाय खूंटी के गेंदा फूल की ही बाजार में धमक रही। खूंटी, रांची, बुंडू और अन्य शहरों में इस फूल की बिक्री होती है। यहां को-आपरेटिव सोसायटी भी फूलों की खरीदारी करती है।

प्रदान नामक संस्था की प्रीति कहती हैं कि दीपावली को ध्यान में रखकर गेंदा फूल की खेती शुरू की जाती है। पौधे पश्चिम बंगाल से मंगाए जाते हैं। दीपावली से 70 दिन पूर्व रोपे गए पौधों में पहली बार लगी कली को तोड़कर फेंक दिया जाता है। इससे पौधे का रूप झाड़ीदार हो जाता है। एक पौधे से डेढ़ से दो माला तैयार करने वास्ते फूल निकल आते हैं। इसबार दीपावली पर एक माला की कीमत 25 रुपये थी।

इन चार प्रखंडों में अधिक हो रही खेती

जिले के चार प्रखंडों में सर्वाधिक खेती हो रही है। इसमें खूंटी, मुरहू, अड़की, तोरपा प्रखंड शामिल हैं। मुरहू क्षेत्र की सर्वाधिक महिलाएं इस पेशे से जुड़ी हैं। हेडगोवा, बाघमा, गनालोया, कोड़ाकेल, सारीगांव, इंदीपीढ़ी आदि गांवों में करीब एक हजार से अधिक परिवार गेंदा फूल की खेती कर रहे हैं। खूंटी क्षेत्र के सेनेगुटु, तारो, दुल्ली, दाड़ीगुटु, करोड़ा, बरबांधा व मारांगहादा आदि गांवों में भी लगभग इतने ही परिवार इस पेशे से जुड़े हैं।

वहीं, अड़की प्रखंड क्षेत्र के जोरको, कोया, अलिहातु, बाड़ी नीजकेल, सोनपुर, अड़की, बीरबांकी, तोडांग, तिरला आदि गांवों में करीब 500 परिवार खेती कर रहे हैं। तोरपा प्रखंड के झटीन टोली, जागु, रायकेरा, लोहाजिमी आदि गांवों में करीब 600 परिवार गेंदा फूल उगा रहे हैं। इसके अलावा अन्य क्षेत्रों में भी छोटे पैमाने में गेंदा फूल की खेती की जा रही है। इनमें कई ऐसे गांव भी शामिल हैं, जहां पहले चोरी छिपे अफीम की खेती होती थी। अब महिलाएं स्वतंत्र रूप से व समूह बनाकर जिंदगी संवार रही हैं।

तीन माह में तैयार होती है फसल

गेंदा फूल की फसल ढाई से तीन माह में तैयार हो जाती है। इसकी फसल दो महीने से प्राप्त की जा सकती है। किसानों को प्रति पौधा 50 पैसे चुकाने पड़ते हैं। खूंटी में कार्यरत प्रदान समेत कई एनजीओ किसानों को मदद करते हैं। 10 डिसमिल जमीन पर करीब एक हजार पौधे रोपे जाते हैं। इसकी लागत 500 रुपये आती है। इसके अलावा कीटनाशक पर करीब 200 रुपये व फूल तोडऩे व माला बनाने के लिए मजदूरों का खर्च आता है। फूल बेचकर 30 से 35 हजार की आमदनी हो जाती है। टांड़ भूमि को गेंदा फूल की खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।

डेढ़ एकड़ में पौधे रोपकर कमाए 60 हजार रुपये

खूंटी प्रखंड के सेनेगुटु, पारटोली निवासी विष्णु स्वांसी बताते हैं कि गेंदा फूल की खेती से उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है। इस वर्ष उन्होंने डेढ़ एकड़ जमीन में गेंदा फूल लगाया है। दीपावली व छठ पर्व पर फूल बेचकर सारे खर्च करने के बाद 60 हजार रुपये की आमदनी हुई है। विष्णु बताते हैं कि फूल बेचने में कठिनाई नहीं होती है। खूंटी बाजार के अलावा रांची में ही फूलों की खपत हो जाती है।

इसके अलावा को-आपरेटिव सोसायटी भी फूल खरीद लेती है। ऐसे ही कई किसान हैं जो फूलों की खेती कर खुशहाली की कहानी गढ़ रहे हैं। इनमें हेडगोव की सुनीता, तारो की बुद्धि कुजूर, तोडांग के रामनाथ मुंडा, जोरको के डोमन मुंडादुल्ली के हिरामुनी टुट्टी, राजोवाला देवी, सेनेगुटु, बेला देवी सेनेगुटु आदि शामिल हैं।

'गेंदा फूल की खेती कर खूंटी के किसान अच्छी आमदनी कर रहे हैं। इसे पूरे जिले में बढ़ाने की दिशा में काम किया जा रहा है। कर्रा प्रखंड के किसान भी गेंदा फूल की खेती करें, इसके लिए उन्हें खेतों का भ्रमण कराया गया है। किसानों को कृषि विभाग की ओर से प्रोत्साहित किया जा रहा है। हर वर्ष खेती का दायरा बढ़ता जा रहा है। इस वर्ष 500 एकड़ से अधिक भूमि पर गेंदा फूल की खेती हो रही है।' -कालीपद महतो, जिला कृषि पदाधिकारी, खूंटी।

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