Jharkhand Politics: अनलाक के साथ बढ़ेगा झारखंड का राजनीतिक तापमान
Jharkhand Politics कोविड महामारी की दूसरी लहर से उबर कर झारखंड अब लगभग पूरी तरह अनलाक हो गया है। रांची स्थित भाजपा कार्यालय में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में (बाएं से) अन्नपूर्णा देवी सुभाष सरकार दिलीप सैंकिया दीपक प्रकाश रघुवर दास सीटी रवि बाबूलाल मरांडी व धर्मपाल सिंह। जागरण आर्काइव
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 02 Jul 2021 12:22 PM (IST)
रांची, प्रदीप शुक्ला। कोविड महामारी की दूसरी लहर से उबर कर झारखंड अब लगभग पूरी तरह अनलाक हो गया है। राज्य का राजनीतिक तापमान भी बढ़ने लगा है। सत्ता पक्ष और विपक्ष कई मोर्चो पर एक-दूसरे के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार किए हुए हैं। पाबंदियों के चलते मुख्य विपक्षी दल भाजपा जहां सड़क पर नहीं उतर पा रही थी, वहीं अब सरकार को घेरने के लिए मंथन करने व आगे की रणनीति बनाने में जुट गई है। उधर, सत्ताधारी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा भी पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और भाजपा विधायक दल के नेता बाबू लाल मरांडी को चौतरफा घेरने में जुटा है। रघुवर दास को लेकर प्रदेश पार्टी संगठन भी कुछ दुविधा में दिख रहा है, जिसका सत्ता पक्ष भरपूर फायदा उठा रहा है।
कोरोना की पाबंदियों के चलते अभी तक राजनीतिक दलों की गतिविधियां सीमित थीं। कार्यक्रमों से लेकर बैठकों तक का आयोजन आनलाइन चल रहा है। झारखंड प्रदेश भाजपा की कार्यसमिति की बैठक भी इन्हीं पाबंदियों के बीच हो रही है। बैठक में प्रदेश में संगठनात्मक गतिविधियों का संचालन करने वाली टीम इस पर मंथन कर रही है कि राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार की घेराबंदी करने के लिए क्या रणनीति अपनाई जाए। तमाम मुद्दों को लेकर भाजपा बड़ा आंदोलन छेड़ने की रणनीति बना रही है।
दरअसल पिछले कुछ महीनों से भाजपा के खिलाफ सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा काफी हमलावर रुख अख्तियार किए हुए है। तीन विधानसभा उपचुनावों में भाजपा की शिकस्त ने भी सत्तारूढ़ गठबंधन का हौसला बढ़ा दिया है। भाजपा अब उपचुनावों की हार से उबर कर आगे बढ़ना चाहती है। प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में आंदोलनात्मक कार्यक्रमों की रूपरेखा पर खूब माथापच्ची हुई। पार्टी के समक्ष एक बड़ी चुनौती अपने नेताओं का बचाव करना भी है। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ कुछ मामलों में राज्य सरकार ने एंटी करप्शन ब्यूरो के जरिये जांच की कार्रवाई शुरू की है। भाजपा का प्रदेश नेतृत्व इसे लेकर असहज दिखता है। यही वजह है कि रघुवर दास के बचाव में पार्टी के बड़े नेता सामने नहीं आए। सत्तारूढ़ गठबंधन इसे भाजपा के अंदरूनी बिखराव के तौर पर प्रचारित कर रहा है।
भाजपा के लिए बड़ी मुश्किल सरयू राय भी खड़ी कर रहे हैं। कभी भाजपाई रहे पूर्व मंत्री सरयू राय ने पिछले चुनाव के वक्त टिकट नहीं मिलने के कारण पार्टी छोड़ दी थी। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ चुनाव लड़ा और जीत हासिल कर चर्चा में आए। इधर सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा ने मांग की है कि रघुवर दास के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों को देखते हुए राज्य सरकार एक आयोग बनाकर उनके पूरे कार्यकाल की जांच करा ले। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा को अपना स्टैंड स्पष्ट करना पड़ेगा। रघुवर दास भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं और उनके खिलाफ आरोपों से पार्टी को परेशानी का सामना करने और जवाब देने के लिए भी तैयार रहना होगा।
सत्तारूढ़ गठबंधन के रवैये को राजनीतिज्ञ रघुवर दास की कार्यशैली का प्रत्युत्तर भी मानते हैं। मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने विपक्ष के तत्कालीन नेता हेमंत सोरेन पर गलत तरीके से जमीन लेने के आरोप लगाए थे और विशेष जांच दल का गठन किया था। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को देखते हुए इसकी प्रबल संभावना है कि यह प्रकरण आने वाले दिनों में तूल पकड़ेगा।
अपनी-अपनी राजनीति : झारखंड में आदिवासियों की मिनी असेंबली कही जाने वाली झारखंड ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल (टीएसी) की नई समिति को लेकर विवाद पैदा हो गया है। इसके मूल में काउंसिल के नए नियम हैं, जिसके तहत यह प्रविधान किया गया है कि टीएसी के पदाधिकारियों और सदस्यों के मनोनयन में राजभवन की कोई भूमिका नहीं होगी। इससे पहले हेमंत सरकार ने दो बार टीएसी के सदस्यों की सिफारिश राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजी थी, लेकिन तकनीकी अड़चन बताकर इसे वापस कर दिया गया था। इसके बाद राज्य सरकार ने कल्याण विभाग के मार्फत टीएसी के गठन के लिए नई नियमावली को मंजूरी दी। मुख्यमंत्री ने नई कमेटी गठित कर दी। इसमें भाजपा के तीन विधायकों को भी सदस्य बनाया गया है। नवगठित टीएसी की पहली बैठक में भाजपा विधायक शामिल नहीं हुए। भाजपा ने इसका विरोध किया है। आरोप लगाया गया है कि टीएसी का गठन असंवैधानिक है। इसमें राजभवन को विश्वास में लेना चाहिए।
[स्थानीय संपादक, झारखंड]
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