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हेमंत सोरेन का लोकसभा चुनाव से पहले 'सनातन' प्रयोग, भाजपा को ऐसे मात देने की तैयारी में I.N.D.I.A

देश में आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियां तेज हो गई। सभी दलें अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुटी हैं। इसी तरह झारखंड में भी हेमंत सोरेन सरकार धार्मिक कार्ड से भाजपा का किला भेदने की तैयारी में जुट गई है। इसके लिए झारखंड के मुख्यमंत्री ने हाल फिलहाल में कई बड़े फैसले लिए हैं। इससे राज्य की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है।

By Jagran NewsEdited By: Shashank ShekharUpdated: Thu, 21 Sep 2023 09:20 PM (IST)
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हेमंत सोरेन का लोकसभा चुनाव से पहले 'सनातन' प्रयोग
प्रदीप सिंह, राज्य ब्यूरो प्रमुख, रांची: झारखंड सरकार ने पिछले दिनों महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए राज्य में गो सेवा आयोग और हिंदू धार्मिक न्यास बोर्ड का पुनर्गठन किया।

ये दोनों संस्थाएं लगभग निष्क्रिय थीं। नए सिरे से गठन के बाद सरकार में झामुमो की साझीदार कांग्रेस के हिस्से में इनके अध्यक्ष का पद आया और सदस्यों में झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता भी सम्मिलित किए गए।

हाल ही में हिंदू धार्मिक न्यास बोर्ड ने राज्य के प्रमुख मंदिरों में फेरबदल का काम आरंभ किया है। इसकी शुरुआत राजधानी रांची के प्रसिद्ध पहाड़ी मंदिर और चतरा जिले में स्थित इटखोरी के भद्रकाली मंदिर से की गई है। रांची के कुछ अन्य मंदिरों की प्रबंधक कमेटी में भी फेरबदल किया गया है।

माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में राज्य के सर्वाधिक प्रसिद्ध मंदिर देवघर के बैद्यनाथ धाम और दुमका जिले में स्थित बासुकीनाथ धाम के मंदिर प्रबंधन में भी हस्तक्षेप तय है।

धार्मिक कार्ड से भाजपा को घेरने की तैयारी  

उधर, गो सेवा आयोग ने भी गोशालाओं की स्थिति में बदलाव को लेकर गतिविधियां आरंभ की है। ये दृष्टांत इस मायने में महत्वपूर्ण हैं कि भाजपा के राजनीतिक विरोधी दलों में उस मुद्दे को लपकने की आपाधापी है, जो अब चुनावों में विजयी पताका लहराने की गारंटी बन चुका है।

याद कीजिए, कभी कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के नेता मुस्लिमों के धार्मिक जुलूस में तलवार भांजते और हरी पगड़ी धारण किए नजर आते थे। वही नेता आज मंदिरों में जाकर बहुसंख्यक समुदाय को रिझाने की कोशिश करते दिख रहे हैं।

सिद्धिविनायक मंदिर की तस्वीर हेमंत सोरेन ने की थी शेयर 

हाल ही में मुंबई में आईएनडीआईए की बैठक में भाग लेने जब झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन गए तो सिद्धिविनायक मंदिर में उन्होंने अपनी पत्नी के साथ दर्शन करने के बाद तस्वीर भी सोशल मीडिया पर पोस्ट की।

इसके कुछ दिनों बाद वह कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर के साथ राजधानी में जन्माष्टमी समारोह में नन्हे कान्हा को दुलारते दिखे। इन घटनाओं से समझा जा सकता है कि किस प्रकार राजनीतिक दल मौके देखकर मुद्दे पकड़ते और छोड़ते हैं। चुनाव आते-आते यह सिलसिला जोर पकड़ेगा।

कांग्रेस के नेतृत्व वाले हिंदू धार्मिक न्यास बोर्ड मंदिरों के प्रबंधन में हेरफेर करने के क्रम में इस बात का ध्यान रख रहा है कि इन समितियों में पहले से काबिज लोगों को हटाने की बजाय उन्हें बरकरार रखते हुए अपने कुछ लोगों को भी बहाल कर दिया जाए। इसमें उन्हें भी नहीं छेड़ा जा रहा है, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) या अन्य हिंदूवादी संगठनों से जुड़े हैं।

कांग्रेस की योजना मुहिम को और व्यापक करना 

कांग्रेस की योजना इस मुहिम को अभी और व्यापक करने की है ताकि हिंदुत्व के प्रति उनके नजरिये में आ रहा बदलाव नजर भी आए और विरोध का झंडा भी बुलंद नहीं हो। साथ ही ऐसे संगठनों की भी उन्हें सहानुभूति हासिल हो सके, जिनका वैचारिक झुकाव भाजपा की तरफ है।

कांग्रेस की योजना दुर्गापूजा समितियों में भी अपने नेताओं-कार्यकर्ताओं को ज्यादा से ज्यादा जोड़ने की है। यह कोशिश की जा रही है कि विभिन्न पूजा पंडालों में उनकी मजबूत उपस्थिति हो।

हालांकि, खुले तौर पर पार्टी नेता इस बात को स्वीकार नहीं करते, लेकिन मंदिर की समितियों को भंग कर नई समितियां बहाल करने में जिस तरह की शीघ्रता दिख रही है, उससे मंशा को आसानी से भांपा जा सकता है।

कमेटियों में बदलाव का विरोध भी हो रहा है, जो आने वाले दिनों में और जोर पकड़ सकता है, लेकिन कांग्रेस रणनीतिक तरीके से इस मामले में आगे बढ़ रही है। यह स्पष्ट है कि इस कवायद के माध्यम से उन हिंदू मतदाताओं तक पहुंचा जा सकता है जो किसी न किसी कारण से कांग्रेस से दूरी रख रहे थे।

धार्मिक आयोजनों में भी कांग्रेस के विधायक, सांसद और मंत्रियों की उपस्थिति आने वाले दिनों में दिखेगी तो इसके पीछे नया वोट बैंक तैयार करना उद्देश्य है।

एक्शन में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी 

उधर, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी राज्य में संकल्प यात्रा पर निकले हैं। वह भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राज्य सरकार पर निशाना साध रहे हैं।

संताल परगना में डेमोग्राफी बदलने और घुसपैठ का मुद्दा भी जोरशोर से उठाया है। सॉफ्ट हिंदुत्व को लेकर आगे बढ़ रहे भाजपा विरोधी दलों की रणनीति को देखते हुए ये मुद्दे कारगर हो सकते हैं। इसे परस्पर राजनीतिक काट के रूप में भी देखा जा रहा है।

संताल परगना में डेमोग्राफी के बदलाव का सीधा असर आदिवासी संताल समुदाय पर पड़ा है। बांग्लादेश की सीमा से करीब होने के कारण यहां आबादी का असंतुलन तेजी से बढ़ा है। यह क्षेत्र सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के व्यापक प्रभाव वाला है।

इसके अलावा राज्य के कुछ और जिले हैं, जहां ऐसे मुद्दे प्रभावी हो सकते हैं। समय-समय पर होने वाली घटनाओं को भी इसे जोड़कर देखा जा रहा है। आने वाले दिनों में इन मुद्दों के आसपास राजनीति तेज होगी। इससे राज्य में मतों का ध्रुवीकरण भी तय है।

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