मायके वालों को अलविदा कह कैलाश पर्वत लौटीं देवी दुर्गा, महिलाओं ने 'सिंदूर खेला' खेलकर मां को किया विदा
मंगलवार को विजयादशमी के पर्व के साथ पांच दिवसीय दुर्गा पूजा का समापन हो गया। अपने बच्चों लक्ष्मी सरस्वती कार्तिक और गणेश के साथ धरती पर अपने मायके आईं मां दुर्गा दशहरे के पर्व के साथ अपने ससुराल कैलाश पर्वत लौट गई हैं। इस मौके पर भक्तजनों ने मां को धूमधाम से विदा किया। बंगाली समुदाय की महिलाओं ने सिंदूर खेला भी खेला।
रांची (झारखंड), एजेंसी। बीते मंगलवार को विजयादशमी के अवसर पर महिलाओं ने 'सिंदूर खेला' नामक पारंपरिक अनुष्ठान के साथ देवी दुर्गा को विदाई दी। रांची के दुर्गा बाड़ी मंदिर में भी इसका पालन किया गया। मंदिर में दुर्गोत्सव मनाने का सदियों पुराना इतिहास है।
विजयादशमी के साथ दुर्गा पूजा का समापन
जैसा कि हम जानते हैं कि विजयादशमी के पर्व के साथ पांच दिवसीय दुर्गा पूजा महोत्सव का समापन होता है। इस मौके पर सुबह से ही मंदिर में लोग तमाम विधि-विधान का पालन करने के लिए जुटने लगे।
महिलाओं ने भी जमकर 'सिंदूर खेला' में भाग लिया। इस दौरान शादीशुदा महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और पतियों की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं।
शादीशुदा महिलाएं सिंदूर खेला में हुईं शामिल
श्वेता नाम की एक दर्शनार्थी ने बताया, आज मां दुर्गा को विदा करते हुए हमने 'सिंदूर खेला' खेला व दोस्तों व परिवार के सदस्यों के साथ कुछ अच्छे पल भी बिताए।
'सिंदूर खेला' इसलिए खेला जाता है ताकि मां का आशीर्वाद सभी भक्तों पर बना रहे और वह हर बार इसी तरह आती रहे और हमें आशीर्वाद देती रहे।
बंगाली रीति-रिवाज है सिंदूर खेला
सिंदूर खेला आमतौर पर बंगाली हिंदू महिलाएं खेलती हैं। परंपरागत रूप से विवाहित महिलाएं इसे खेलती हैं ताकि सदियों पुरानी रीति-रिवाज का यह क्रम पीढ़ी दर पीढ़ी आगे भी बरकरार रहे।
महिलाएं इस विश्वास के साथ 'सिंदूर खेला' खेलती हैं कि इससे उनकी जिंदगी में खुशियां आएंगी और उनके पतियों की भी उम्र लंबी होगी।
सुहागिनें लगाती हैं एक-दूसरे को सिंदूर
सुहागिनों के लिए मांग में सिंदूर लगाना आवश्यक है और इस मौके पर 'सिंदूर खेला' के नाम से वे इसी परंपरा का पालन करती हैं। 'सिंदूर खेला' के वक्त शादीशुदा महिलाएं एक-दूसरे के चेहरे पर सिंदूर लगाती हैं।
मायके से ससुराल लौटीं मां दुर्गा
धरती पर अपने माता-पिता के यहां चार दिन गुजारने के बाद विजयादशमी के मौके पर मां अपने पति महादेव के घर कैलाश पर्वत को लौट जाती हैं।
इस दौरान भक्त सुनिश्चित करते हैं कि मां को धूमधाम के साथ विदा किया जाए। इसी तरह से दशहरा या विजयादशमी के समापन के साथ ही दिवाली की तैयारियां शुरू हो जाती है, जिसे विजयादशमी के बीस दिन बाद मनाया जाता है।
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