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झारखंड की मिट्टी में 40 फीसद तक जिक की कमी

कोरोना संक्रमण से बचाव और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए जिंक लोग दवा के रूप में ले रहे हैं परंतु यहां की मिंट्टी में इसकी काफी कमी है।

By JagranEdited By: Updated: Fri, 11 Sep 2020 01:17 AM (IST)
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झारखंड की मिट्टी में 40 फीसद तक जिक की कमी
जागरण संवाददाता, रांची : कोरोना संक्रमण से बचाव और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए एक तरफ हम जहां जिक की गोली खा रहे हैं। वहीं मिट्टी में लगातार जिक की मात्रा कम होती जा रही है। आइसीएआर और बीएयू के राज्य मृदा सर्वेक्षण में मिट्टी की हालत काफी चिताजनक पाई गई है। इसमें माइक्रोन्यूट्रिएंट की काफी कमी दिखी। कुछ जिलों में तो जिंक की मात्रा 40 प्रतिशत तक कम पायी गई है। इससे फसलों का उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के विज्ञानियों ने झारखंड राज्य के 13 जिलों का मृदा सर्वेक्षण किया। इसमें मिट्टी में औसत 20 से 30 प्रतिशत जिक की कमी पायी गई। मृदा विज्ञानी डॉ. अरविद कुमार बताते हैं कि कुछ वर्ष पहले तक झारखंड के लाल एवं लेटेराइट भूमि में जिक पर्याप्त मात्रा में देखा गया। मगर अभी प्रदेश की भूमि में जिक की कमी चिंताजनक और शोध का विषय है। तीन जिलों में सबसे कम है जिक::

डॉ. अरविद कुमार ने बताया कि राज्य में खूंटी, साहिबगंज और लोहरदगा की मिट्टी में जिक की मात्रा सबसे कम पायी गई है। खूंटी में 30-40 प्रतिशत, साहिबगंज और लोहरदगा में 20-30 प्रतिशत जिक की कमी है। इस कारण से धान की खड़ी फसल में सबसे पहले ऊपर से तीसरी - चौथी पत्तियों पर धूलिया धब्बे दिखाई पड़ते हैं। बाद में यह धब्बे आकार में बड़े होकर पूरे पत्ते में फैल जाते हैं। पौधों में कल्लो की संख्या कम हो जाती है एवं जड़ों की वृद्धि रूक जाती है। बालियों में बांझपन आ जाता है। इसे खैरा रोग के नाम से जाना जाता है। इससे फसल का उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होता है। जबकि मकई फसल की मध्य पत्तियों पर हल्के रंग के सफेद धब्बे बनते हैं। डॉ. अरविंद ने बताया कि खेतों में जिंक के प्रयोग से उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। रांची, लोहरदगा एवं खूंटी जिले में इसका प्रयोग किया गाय है। जिक के अपर्याप्त सेवन का पड़ रहा स्वास्थ पर दुष्प्रभाव::

बीएयू के मुख्य मृदा विज्ञानी डॉ. बीके अग्रवाल ने बताया कि जिक मानव स्वास्थ्य के लिए जरूरी पोषक तत्वों में शामिल एक है। कुपोषण दूर करने के प्रयासों के बावजूद हमारे भोजन में जिक की मात्रा लगातार कम हो रही है। इससे स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ रहा हैं। इसके कुपोषण से छोटे बच्चों के मलेरिया, निमोनिया और दस्त संबंधी बीमारियों से पीड़ित होने का खतरा बढ़ गया है।

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